केमिकल लोचे के शिकार.....

पहचान कौन???

मेरी फ़ोटो
मैं कौन हूँ, मैं क्या कहूं? तुझमे भी तो शामिल हूँ मैं! तेरे बिन अधूरा हूँ! तुझसे ही तो कामिल हूँ मैं!

आपको पहले भी यहीं देखा है....!!!

शनिवार, 23 नवंबर 2013

आई फाउंड गॉड!!!


बस तू ही तू!


मुल्ला की अजानें सुन के गया,
मस्जिद में तू मुझे मिला नहीं!

मंदिर भी गया मैं तेरी खातिर,
तेरे बुत ने मुझसे बात ना की!!

भटका दर-दर तेरी तलाश में मैं,
काबा काशी कहाँ गया नहीं!?

जब से तू बनके मेरा यार आया,
मुझे हुआ यकीं, तुझपे प्यार आया!

तेरे नूर से ज़ुल्मत है अब रोशन,
बेचैनी को मेरी क़रार आया!

तेरे इश्क़ में सूफ़ी ये काफ़िर बना,
सजदा जो किया एतबार आया!

अन्दर भी तू, बाहर भी तू,!
कभी पोशीदा, कभी ज़ाहिर तू!

सबसे उम्दा नक्काश कभी,
सुखनवर तू, शायर तू!

अब तो ये आलम है मौला!
मैं नहीं हूँ मैं, बस तू ही तू! 
फोटो ऑफ़ गॉड: लवली गूगल  

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

आई मिस यू!!!

प्यारी सहेलियों और यारों, 
पिछले महीने मुखातिब नहीं हो सका. और इस बार भी वक़्त से कुछ लम्हे चुरा के अपनी ठरक पूरी कर रहा हूँ. नौकरी छोड़ कर पढ़ाई शुरू की है फिर से! 'आ बैल मुझे मार' का एकदम धाँसू एक्जाम्पल बन गया है मेरा डिसीजन! खैर, नौकरी छूटी, घर छूटा, शहर छूटा……… और जहाँ  ज़िंदगी ले आई है मुझे, वहाँ बस दो ही मौसम होते हैं, एक ज़्यादा बारिश और उससे भी ज़्यादा बारिश! और कभी बाई चांस बारिश ना भी हो, तो बादल धमकाते ज़रूर रहते हैं………….! 
खैर, जेहड़े रंग विच रब्ब राज़ी………!
 
ये बारिशें मुझे सोने नहीं देतीं!!!
इन बारिशों ने दूरियों को और दुशवार कर दिया है: 

 (1)
बूँदें छूती हैं तन को,
मगर मन को नहीं भिगोती!
अगर तू साथ होती,
तो कुछ और बात होती!
ये बारिशें मुझे,
सोने नहीं देती!
हाँ मगर…. 
अगर तू साथ होती,
तो कुछ और बात होती!


(2)
ये नमकीन पानी,
मेरे घाव हरे करता है!
मेरे जिस्म से,
मेरी रूह को परे करता है!
मेरी खुशदिली कमबख्त,
मुझे रोने नहीं देती!
हाँ मगर…. 
अगर तू साथ होती,
तो कुछ और बात होती!


(3)
खुद से खुदी को,
जुदा कर चुका हूँ!
तेरे इश्क़ में तुझको,
खुदा कर चुका हूँ!
तेरी बन्दगी  मुझे,
काफ़िर होने नहीं देती!
हाँ मगर…. 
अगर तू साथ होती,
तो कुछ और बात होती!


(4)
तेरी तिशनगी का,
ये आलम है हमदम!
मुझमें नहीं मैं,
अब तू ही है हर दम!
तेरी जुस्तजू
मुझे खोने नहीं देती!
हाँ मगर…. 
अगर तू साथ होती,
तो कुछ और बात होती!

उर्दू हैल्पडेस्क:
खुदी: Ego
काफ़िर: Infidel, Non-believer
तिशनगी: Desire, Longing
जुस्तजू: Search, Quest
बारिश का फोटू: गूगल बरसाती

गुरुवार, 13 जून 2013

थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!

प्यारी सहेलियों और यारों,  
जब से एक, दो, तीन..................... बारह का तेरह हुआ है, पाँव में चक्कर सा लग गया है, मैं घनचक्कर सा हो गया हूँ, पंख लगाकर बस उड़े ही जा रहा हूँ! और सच कहूँ तो ये एक ख्वाब को जीने जैसा है! भीतर का बंजारा फुल एन्जॉय कर रहा है इस आज़ादी को, और इस ढ़पोरनामे में कुछ घुमक्कड़ी के किस्से ही शेयर करना चाहता हूँ: 

पोस्टर का पोस्ट से कुछ लेना देना नहीं!
बस यही बताना है कि 'देयर इज़ नो फ्री लंच'!
दान दो और धर्म लाभ उठाओ!




ब्रैड स्टिक्स विद टोमेटो सूप
राजधानी एक्सप्रेस में ये मेरा पहला सफ़र था: नयी दिल्ली से अहमदाबाद! केटरिंग वाला भैय्या एक ट्रे सी पकड़ा गया जिसमे एक अमूल मक्खन की टिकिया थी, एक खाली कप था, कुछ नमक और काली मिर्च और एक पाऊच में मुलैठी जैसी दो लकडियाँ! पढ़ा तो पाया के वो ब्रैड स्टिक्स थीं! बहुत सखत थीं! फिर जब सूप सर्व किया गया तो सामने वाले को देख-देख सब आपस में एडजस्ट किया! ये वैसी ही सिचुएशन थी जैसी के पहली मर्तबा एक हाई-फाई रेस्तरां में खाने के बाद 'नींबू-स्लाईस इन वार्म वाटर इन ए बाउल' दिए जाने पर हुई थी! मुझे लगा के हाजमे के लिए होगा! फिर पता चला हस्त-प्रच्छालन के लिए है!!! वैसे सूप बकवास था! (बाद में इसी ट्रेन के फर्स्ट एसी में भी ट्रैवल किया, बहुत मज़ा आया) 

मोदीफाईड 
अहमदाबाद पहुँच के कालूपुर स्टेशन के बाहर पान्ज्रापोल जाने वाली बस का इंतज़ार कर रहा था! ऑटो वाले भयंकर पीछे पड़ गए, पर मेरी आत्मा भी बनिए के वश में है! निश्चय पक्का कर खड़ा रहा बस की वेट में! इस बीच एक ऑटो वाले भैय्या ने मुझ पर बहुत सारी गुजराती गिरा दी! मैंने कन्फ्यूज़ होकर फाइनली कहा: "गुजराती आतो नथी"! वो ऑटोभाई ज़ोर से हँसे और बोले: "सीख लीजिये! मोदी पीएम होने जा रहे हैं!" 

होटल सिगार
सिगार से पुरानी फिल्मों के बैड मैन अजीत याद आ जाते हैं या फिर खरी-खरी कहने वाले श्रद्धेय बालासाहेब! मलयालम थर्टीन में बता चुका हूँ के केकड़े, झींगे, मछलियाँ, और ना जाने क्या-क्या अल्लम-बल्लम की बहुतायत में घनघोर वेजिटेरियन होने से कितनी परेशानी हुई! हल ढूँढते-ढूँढते हमें होटल सिगार के बारे में पता चला! साथ वाले लड़कों को शराब और सुट्टे की भी तलब थी! और होटल का नाम सुनके तो उन्होंने मन-ही-मन में जाने कितनी बार गा लिया होगा: "तेरा प्यार प्यार प्यार, हुक्का बार!!!" जिज्ञासा तो मेरे मन में भी थी के ये क्या नाम हुआ?! खैर सूंघते-सूंघते जब हम मंज़िल पर पहुँचे तो हमें 'होटल स्वीकार' मिला! मेरी जान में जान आई और साथ वालों का हो गया पोपट! मल्लू प्रोननसिएशन ने खामखां लड़कों से कसरत करा दी!!!  

वैज जयपुरी इन कोज्हिकोड
थक हार कर जब तशरीफ़ के टोकरे रखे तो एक वेटर पानी रख गया! मैंने ग्लास छूते ही बिजली की गति से वापिस खींच लिया! कारण? पानी खौलता हुआ गर्म था! क्यूँ? पता नहीं! ऑर्डर देने के समय समझ ही नहीं आया के क्या मंगायें! किस्मत अच्छी थी के ऑर्डर लेने वाला लड़का बंगाली था! वो हमारी स्थिति समझ गया और हेल्प की चूज़ करने में! हमने भी कम्प्लीट सरंडर कर दिया! खैर वो जो लाया 'नॉर्मल' कंडीशन में तो ना खाऊँ मैं, पर "नींद ना देखे टूटी खाट और भूख ना देखे झूठा भात"! एक सब्ज़ी तो टमाटर की प्यूरी जैसी थी, आधी-अधूरी टोमैटो कैचप समझ लो! और दूसरी जिसे  वो वैज जयपुरी कह रहा था, उसमें टमाटर-प्याज़ की पतली सी ग्रेवी में शिमला मिर्च और काजू तैर रहे थे! और दोनों ही सब्ज़ियों में नारियल की प्रचंड घुसपैठ! रोटी अधपकी सी थी! टूट पड़े तीनों! वैसे मैं वैचारिक तौर पर ग्लोबलाईज़ेशन का विरोध करता हूँ, पर कसम से अगर वहां मैकडॉनल्ड होता तो क्या मस्त होता!!! 

द डिफिकल्ट लाईफ इन हिल्स
गढ़वाल वाले श्रीनगर गया तो अहसास हुआ के हमारी लाईफ कितनी आसान है! टेढ़े-मेढ़े पहाड़ों पर रेंगती मिनी-बस से खाई में पाताल नहीं सीधा ब्रह्मलोक नज़र आता था! एक-दो जगह तो फ्रेश चट्टानें गिरी हुई मिलीं! और किसी-किसी मुश्किल मोड़ पर मुझमें और मौत में इंचों का फासला था! बस ड्राईवर की सावधानी और एलर्टपने पर कितनी ज़िंदगियाँ निर्भर थीं! और तब ख्याल आया के हम कितनी चीज़ों को 'टेकन फॉर ग्रांटेड' लेते हैं! बस ये समझ लो बद्रीनाथ के आधे रास्ते से वापिस आ गया! वैसे मैंने बद्री अंकल से पहले मुलाक़ात की है! पर फूलों की घाटी छूट गई थी! जायेंगे कभी, इंशा'अल्लाह! और दिल तो मेरा ऋषिकेश में राफ्टिंग और कैम्पिंग पे भी आ गया था!  

ए सरदार इन इंदौर
इंदौर में कुछ भी बेगाना या नया नहीं लगा! सब कुछ अपने उल्टे आई मीन उत्तम, अरे उत्तर प्रदेश जैसा! वही चिर परिचित मम्मी-सिस्टर की गालियाँ, वही गंद, और वो सब कुछ जिसकी वजह से मैं यूपी से इलेवन टू थर्टीन होना चाहता हूँ! एअरपोर्ट से निकला तो टैक्सी वालों ने घेर लिया! बचता-बचाता मैं ऑटो स्टैंड पे पहुँचा, ये सोचकर के ऑटो जेब पर भी हल्का पड़ेगा और आर-पार की हवा भी मिल जाएगी! साथ में एक सरदार भी मिल गया! ऑटो भी शेयर किया और अगले दिन में होटल का रूम भी! बंदा जॉली गुड था! जब खुल गए आपस में तो पता था के बात दारू तक पहुंचेगी ही! जब मैंने कहा के मैं नहीं पीता तो वो ऐसे ही चौंका जैसे पंजाब प्रवास के दौरान मेरे दारुलैस वेजिटेरियन होने पर सब चौंकते थे! खैर सिंह इज़ किंग मुझे सोशल-साईकोलोजीकल-बायोलोजीकल लोजिक्स देकर अपने साथ इंग्लिस ठेके (अरे प्रॉपर बार था!!!) पर ले गया! एक किंगफिशर की बीयर और एक पैग व्हिस्की पीते-पीते उसने मुझे समझाया के मैं ज़िन्दगी में कितना कुछ मिस कर रहा हूँ! वैसे पीनट-चाट टेस्टी थी!!!

रोड-साईड पोहे एण्ड हैल्दी फ्लर्टिंग 
वापसी में सुबह एअरपोर्ट के सामने एक ढ़ाबे टाईप झोंपड़े में पोहे खाए, वो भी रज के! सरदार ने सिर्फ मैंगो शेक पिया! अब चौंकने की बारी मेरी थी! इस दुनिया में पोहे कौन नहीं खाता!? एअरपोर्ट में दो युवा महिला यात्रियों से सिर्फ 'निर्मल आनंद' हेतु फ्लर्टिंग करी! वो भी एन्जॉय कर रही थीं! मसलन, किसी बात पर एक बोली: "आई कैन सी थ्रू ए लॉट ऑफ़ थिंग्स (मैं बहुत सी चीज़ों के आर-पार देख सकती हूँ)!" मैंने तुरंत अपने लज्जा-वस्त्रों को हाथों से ढ़का और बोला: "व्हाट आल थिंग्स आर यू टॉकिंग अबाउट!!!" और फिर हम चारों हँसते रहे! वैसे फ्लर्टिंग सेहत के लिए अच्छी होती है! जस्ट लाईक योगा! मैं नहीं कह रहा हूँ, रणबीर कपूर ने कहा है, 'ये जवानी है दीवानी' में! झूठ थोड़े ही बोलेगा? ऋषि कपूर का लड़का है!!! 

टू-एंड-फ्रो इंदौर
मेरे साथ मुनीमजी की दी हुई रेवोल्यूशन 20-20 थी! और इरादा भी था उसे पढ़ने का, मगर बड़े बाउजी (सरल भाषा में भगवान) को कुछ और ही मंज़ूर था! अरे भई, होई-सोई जो राम रचि राखा! हाथ में लिखा हुआ प्रोज़ था और बराबर वाली सीट पे जीती-जागती पोएट्री आकर बैठ गई! फिर भी मैं चेतन का भगत बना रहा! लेकिन जब पोएट्री को नींद आई और मेरे कंधे पर सिर एडजस्ट करके सो गई, तो मन-ही-मन चेतन से पूछा, के भगत बाबू, ऐसे में आप क्या करते? मैंने भी वही किया! किसी को कच्ची नींद से जगाना अच्छी बात है क्या? 
आते समय सन ऑफ़ सरदार साथ था! उसे सोना था और मुझे रेवोल्यूशन 20-20 में खोना था! लेकिन अगली सीट पर बैठे एक परिवार ने ऐसा होने ना दिया! एक मियाँ, एक बीवी, और दो बच्चे! चारों ने धूप के चश्में पहने हुए थे! बच्चों ने रो-धो के ब्रह्माण्ड सिर पर उठाया था! मियाँ-बीवी केवल इंग्लिश में बतिया रहे थे और वो भी इतने एटिकेट्स के साथ, मन में ख्याल आ ही गया के ये चिंटू-चिंकी कैसे हो गए?! फ्लाईट इंडिगो थी! नो फ्री लंच! शायद उन्हें पता नहीं था! उन्होंने उड़न-तश्तरियां सजवा लीं! फिर जब एयर होस्टेस ने मुस्कुराते हुए पैसे माँगे, तो उन्होंने आईटमें कम करवाईं! मुझे लगा चलो जितनी देर खायेंगे, चुप रहेंगे! लेकिन उन्होंने अपने-अपने स्नैक्स भी डिस्कस किये, वो भी इंग्लिश में! 

गंगा-स्नान ऑन बुद्ध-पूर्णिमा 
मुझे गंगा में नहाने का बचपन से ही बहुत शौक़ रहा है! शुरू-शुरू में धार्मिक फीलिंग भी होती थी! फिर धीरे-धीरे पापा द्वारा पैदा की गई ये फीलिंग्स भी गंगा में बेइंतेहा पापों के साथ धो दीं! अबकी बार हुआ यूँ के बिजली बहुत तंग कर रही थी! इनवर्टर हाथ खड़े कर चुका था! और तभी अचानक रात को साढ़े दो बजे बिजली के तारों में भयंकर स्पार्किंग हुई! मन में ख्याल आया के अब तो बिजली आएगी नहीं, तो क्यूँ ना बुद्ध-पूर्णिमा का फायदा उठा लिया जाए! बस पौने-तीन तक पिरोगराम बना और इससे पहले पिताजी को किन्तु-परन्तु का मौका मिलता, मैं उन्हें बाईक पर बैठा चुका था और हम निकल पड़े थे बिजनौर के लिए! पाँच बजे सुबह हमने पहला गोता लगाया! पापा के हर ग्यारह गोतों पर मैंने तेरह गोते लगाये! पता नहीं ये कैसा है तेरह का फेर! गंगा में नहा कर मम्मी और याद आती है! खैर पब्लिक ने जबतक घरों से गंगाजी के लिए निकलना शुरू नहीं किया था, हम गंगाजी से घर के लिए निकल गए!

शेयर्ड बर्थ इन आश्रम एक्सप्रेस
फिर से अहमदाबाद गया! इस बार मुनीमजी साथ थे! एक अंकल वेटिंग में सफ़र कर रहे थे! रात को जब सब सीधे होने लगे तो अंकल फर्श पर चादर बिछाने लगे! अटपटा तो लगा लेकिन रिज़र्वेशन तो था नहीं, फिर क्या करते?! तभी मुनीमजी ने कहा हम अपनी एक बर्थ अंकल को दे देते हैं! अंकल ने झूठ-मूठ में ना-नुकुर की, और फिर ऐसे पसर गए जैसे बर्थ घर से ही लाये हों! सोच रहे होंगे, 'अच्छे फुद्दू मिले'!!! सोना तो हमें वैसे भी नहीं था, अब एक बहाना मिल गया! फिर? फिर क्या! लाईटें बंद हो गईं! यार को मैंने, मुझे यार ने सोने ना दिया!!! सुबह कब हुई, पता नहीं चला! ये ज़िन्दगी भर का पॉइंट मिल गया मुझे मुनीमजी को छेड़ने का कि उन्होंने ग़ैर की मदद का बहाना बना कर सोची-समझी साजिश के तहत मुझे फँसा लिया!!!

होटल डिसेंट या डिसेंट होटल
'जब वी मेट' में घंटे के हिसाब से अवेलेबल होटल डिसेंट याद है?! ऐसे तीन होटल डिसेंट अहमदाबाद से मेहसाणा के रास्ते में अडालज के पास हमें मिले! वाशरूम मेरी प्रायोरिटी होती है! अगर साफ़ है तो कमरा उन्नीस भी चल जाएगा, पर अगर गन्दा है तो कमरा फिर चाहे पच्चीस भी क्यूँ ना हो! जब हमने इंचार्ज को दिखाया के कोमोड टूटा है, फ़्लश चल नहीं रहा, तो उसने कहा के ये प्रोब्लम तो सभी रूम्स में है! हमने कहा: "मतलब?" तो उसने बताया के सर यहाँ पर कपल्स आते हैं, उन्हें इस सब की ज़रुरत नहीं होती!!! हमने कहा: "हैं!!!" और फिर मैं और मुनीमजी खूब हँसे! कमोबेश यही हाल बाकी दोनो होटल्स का था! उन्होंने साफगोई से एक्सेप्ट तो नहीं किया! पर उनके हाव-भाव से स्पष्ट था के वे सभी होटल डिसेंट ही थे! फाइनली हम अहमदाबाद में एक 'डिसेंट' होटल में ठहरे!

फर्स्ट टाईम इन फर्स्ट एसी
रिटर्न जर्नी का टिकट राजधानी फर्स्ट एसी से था! अपने कैबिन में मैं, मुनीमजी, एक राजस्थानी दीदी और एक एक्स एमपी थीं! बोले तो, फीमेल:मेल का रेशिओ थ्री:वन था! टीसी अंकल भी मस्त नमस्ते बोले! वैलकम ड्रिंक के तौर पर फ्रूटी पिलाने के बाद एक बंदा सबको लाल गुलाब दे गया! मैं क्या करता? नहीं लिया! फिर रिफ्रेश्मेंट्स! और डिनर से पहले सूप! हाँ, यहाँ सूप में चॉइस थी! एमपी आंटी ने पता नहीं क्या मंगाया! शायद कुछ मंचूरियन सा था! दीदी ने मिक्स्ड वेज, मुनीमजी ने स्वीटकोर्न, मैंने वही टमाटर! बाकायदा बाउल्स में सर्व किया गया! अब तक मुझे पता था के ब्रैड स्टिक्स का क्या करना है!!! एक भैय्या फ्रूट बास्केट रख गए! अच्छे रसीले सेब और नॉर्मल से केले! खाना भी प्रॉपर बर्तनों (बॉन चाइना?) में खिलाया गया! कुल मिलाके, ठीक ठीक लगायें तो वैल्यू फॉर मनी! एमपी आंटी कभी सत्तर के दशक में एमपी रही होंगी, पर फीलिंग पूरी ले रही थीं! वहीँ, राजस्थानी दीदी, मुनीमजी और मैं, तीनों 'फर्स्ट टाईम इन फर्स्ट एसी' थे! सोने का नंबर आया तो पहले एमपी आंटी का, फिर मुनीमजी का, फिर राजस्थानी दीदी का बिस्तर लगाया! दीदी बोले, "चलो आपका बिस्तर भी लगा देते हैं!" मैंने मुनीमजी की बर्थ की तरफ इशारा किया और कहा, "ये लग तो गया!" दीदी मुस्कुराये और फिर इधर-उधर देखने लगे! 

द नेक्स्ट डेस्टिनेशन 
अगर आप अब भी पढ़ रहे हैं तो ये भी जान लीजिये: मेरे मस्तक की रेखाओं में स्पष्ट लिखा है के अगली यात्रा निकट भविष्य में दक्षिण दिशा में होगी! कोई ऐसा स्थान जहाँ पर्वतों का समागम समुद्र से होगा! और एक और यात्रा जो नुसरत बाउजी की क़व्वालियों को ज़रिया बनाकर रूहों को इश्क़ की मैराज तक ले जाएगी..... या शायद उससे भी आगे! क्यूंकि, आसमां के पार शायद एक नया आसमां होगा.......!!! 

सोमवार, 13 मई 2013

थर्टीन एक्सप्रेशंस ऑफ़ लव!!!

असां इश्क़ नमाज़ जदों नीती  है, तदों भुल गए मंदर-मसीती है!!!

(१)
मेरे जिस्म में तेरी रूह!
मेरी आँखों में तेरा नूर!
मेरे ज़हन में तेरा अक्स!
मेरी साँसों में तेरी खुशबू!
मेरी नींद में तेरे ख्व़ाब!
मेरी यादों में तेरे ख्याल!
लगता है…
तू मैं हो गई है… 
मैं तू हो गया हूँ...
हम 'हम' हो गए हैं!!!

(२)
हम पंछियों की कौन ज़ात?
जिस पर बैठे वो अपनी शाख!
ज़रा पंख फैला ओ सोहणे यार!
आ उड़ चलिए अम्बर के पार!
जाने किस दम होवें शिकार!
हर दम हमदम अब करिये प्यार!

(३)
मैं बादल तू हवा बन जा!
जहाँ चाहे वहाँ मुझे लेकर जा!
तेरे इश्क में मैं जोगी बन झूमूँ!
कोई गीत मुहब्बत वाला गा!
कोई देखे हमें तो बस यही कहे:
बंजारन के संग बंजारा!
कोई महसूस करे तो ये सोचे: 
आवारगी के संग आवारा!

(४)
पहले तुझमें रब दिखता था!
अब रब में भी तू दिखता है!
काफ़िर कह लो या दीवाना कहो!
अब सब में भी तू दिखता है!
यूँ बसा है तू मेरी आँखों में,
कोई देखे उनमें, तू दिखता है!

(५)
साँसों ने साँसों को छुआ!
हल्का-हल्का उन्स हुआ!
बाहर के चिराग बुझते गए!
भीतर कुछ रोशन सा हुआ!
फिर जिस्म जिस्म से मिला गले!
रूह ने रूह को रूह से छुआ!

(६)
उलझी ज़ुल्फें, सुलगी साँसें!
बोझिल आँखें, प्यारी बातें!
पंख लगा कर उड़ते लम्हे!
लगता है के तेरे साथ,
ये ज़िन्दगी यूँही गुज़र जाएगी!

(७)
तुझे ओढ़ लूँ मैं, तुझे ही बिछा लूँ!
तेरे अक्स को अपने दिल में बसा लूँ!
तुझे देख लूँ फिर किसी को ना देखूँ!
पलकों के चिल्मन में ऐसे छुपा लूँ!
बंदा-परवर मुझे माफ़ कर दे!
अगर बेख़ुदी में तुझे खुदा बना लूँ!

(८)
मस्जिद के रस्ते से गुज़रा था कल!
किसी ने काफ़िर कह कर पुकारा मुझे!
वो नमाज़ी पाँच वक़्त का था!
और मैं हर वक़्त पढ़ता हूँ तेरे इश्क़ की नमाज़!!
उसे जन्नत नसीब होगी क़यामत के रोज़!
मुझे तो तेरे दिल में एक कोना मिल जाए बस !

(९)
किसी शराब से नशा होता नहीं!
ए साक़ी! तेरी आँखों से पीने के बाद!
नज़रें मिला कर दिल चुराने वाले!
क्या मज़ा आता है मुझे सताने के बाद?
तेरे इश्क़ में मस्त रहता हूँ, चूर रहता हूँ!
आँखों में तेरा तसव्वुर और ज़हन में तेरी याद!

(१०)
सय्याद नहीं हूँ मैं हमदम!
जो उड़ते पंछी का शिकार करूँ!
या बंध जाऊँ दुनियावी झमेलों में!
या तुझको मैं गिरफ़्तार करूँ!
आ उड़ते जाएँ अर्श-ए-मुहब्बत पे!
तेरे संग मेराज-ए-इश्क़ पार करूँ!

(११)
निशान-ए-ज़ीस्त, मेरी साँसों पे अब बस तेरा नाम है!
तुझे चाहना, तुझे पाना बस मेरा काम है!
तू सुबह है मेरी, तू ही अब मेरी शाम है!
जो मुझको सबसे ख़ास, तू वो ही आम है!
मैं रिंद बेपरवाह, तू मेरा जाम है!
तू ही अल्लाह है अब, बस तू ही राम है!

(१२)
रास्ता देखूँ!
या रास्ता बन जाऊँ?
तू ना आये,
तो मैं तुझ तक आऊँ!
तेरी मैं हबीब!
परछाई बन जाऊँ!
रोशनी में,
तेरे संग घूमूँ!
अँधेरे में,
तुझमें मिल जाऊँ!

(१३)
जब दम मेरा निकले, तेरी बाहों में ए हमदम!
तेरी धानी चुनर का मुझे कफ़न ओढ़ा देना!
तेरी बगिया के फूलों से, मेरी मय्यत सजा देना!
मेरे सुकून पर रफीक़, ज़रा भी सोज़ मत करना!
दुनिया को दिखाने को चंद आँसू बहा देना!
ये जो इश्क़ है अपना, रूहानी है, नूरानी है!
देख कर मेरी मिट्टी, एक बार मुस्कुरा देना! 

ढ़पोरप्रश्न:
लगता है प्रेम वैज्ञानिक ढ़पोरशंख को मुहब्बत की प्रयोगशाला में असंख्य असफल एक्सपेरिमेंट्स के बाद 'द एल्युसिव फ़ॉर्मूला ऑफ़ लव' मिल गया है! तो क्या लैब में ताला लगाने का वक़्त आ गया है? आप बताओ!!!
फोटू: गूगल प्रेमी

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

मलयालम थर्टीन!!!

प्यारी सहेलियों और यारों,
ट्वाईस अपोन ए टाईम इन द बचपन, एक पहेली का जवाब मुझे बेहद पसंद था। पहेली थी किसी ऐसी भारतीय भाषा का नाम जो उल्टा-सीधा कैसे भी बोलो, रहेगा एकदम सेम-टु-सेम! और उत्तर ओबवियस्ली था: मलयालम! और मुझे इस शब्द की आवाज़ अच्छी लगती थी और बोलने में आता था स्वाद! इनफैक्ट, आज के चीफ मिनिस्टर के पापा को भी मैंने पहले-पहल 'मलयालम सिंह' कहना शुरू किया था! जब इंग्रेजी आ गयी, तो उनका नाम मेरे लिए 'सॉफ्ट लायन' हो गया! तब मैं छोटा बच्चा था, लेकिन अब मैं बड़ा बच्चा हूँ, इसलिए मुलायम सिंह जी क्षमा करें!
ए पिक्चर इज़ वर्थ ए थाउजेंड वर्ड्स, 
फिर भी ज़्यादा जानकारी के इच्छुक फोटू में दिए फ़ोन पर संपर्क करें!


खैर लेट्स कम बैक टु मलयालम थर्टीन! मलयालम इसलिए के केरल गया था और थर्टीन इसलिए के 'मेरी पोस्ट है, मैं कुछ भी टाईटल रखूँ'! जब जाना तय हुआ तो एकमात्र मलयाली (शॉर्ट में मल्लु) मित्र दीपक से संपर्क किया। आपको 'दीपक' नॉर्थ-इन्डियन सी फीलिंग दे रहा होगा! चलो इसे मल्लुफाई कर देते हैं! 'अलाथुर भरथन दीपक' मेरा ग्रेजुएशन के समय से फ्रैंड है। उसकी और इंटरनेट मलयाली की हैल्प से मैं मुंबई और कोयम्बतूर होता हुआ, पहुँच गया कोज्हिकोड।

एयरपोर्ट से निकला तो प्रीपेड टैक्सी वाले से जीके बढ़ाने लगा। उसने बात करते-करते बिल फाड़ दिया आठ सौ साठ रुपये का! जब मुझे महसूस हुआ के पैसे बटुए से जाने वाले हैं, मैंने सारी पंजाबी इकट्ठी की और धावा बोल दिया! वो खालसा पंथ से थोड़ा घबराया और मैं मौका पाते ही वहाँ से 'इलेवन टू थर्टीन' हो गया! जान बची सो आठ सौ साठ पाए!

थोड़ा पैदल चलके, शेयर्ड ऑटो में पाँच रुपये देकर हाईवे पहुँचा। ये भी इंटरेस्टिंग है। ऑटो वाले से हिंगलिश में अपने गंतव्य के बारे में पूछता रहा और वो मलहिंगलिश में बताता रहा! फिर जब हाईवे पर छोड़ा तो किराया पूछने पर उसने उंगलियाँ खोलके पंजा दिखाया और कुछ बोला तो मुझे ऐसा लगा पचास मांग रहा है! मन में इम्मिडियेटली ख़याल आया, मुए ऑटो वाले होते ही ठग हैं, चाहे दिल्ली के हों या केरल के! मैंने कहा, नो फिफ्टी, ओनली ट्वेंटी! तब वो बोला, 'फाईव रुपीज़'! पाँच रूपए के साथ मैंने उसे जी भर के असीसा! खैर पूछते-पाछते, देखते-भालते उन्नीस और बारह रुपये देकर मैं पहुँच गया, जहाँ मुझे जाना था: कुन्नामंगलम।

एक चीज़ जो मुझे बेहद लिबरेटिंग लगी वो थी लुंगी! लोगों को आर-पार की हवा लेते देख मुझे अपनी जींस में ज़्यादा गर्मी लगने लगी! होटल के कमरे में बड़े से तौलिये को बाँध के लुंगी की आज़ादी का अनुभव किया! स्वाद आ गया जी स्वाद!

सबसे बड़ी दिक्कत जो पेश आयी वो थी खाने की! केरल का मालाबार क्षेत्र विशिष्ट रूप से अपने सी-फूड के लिए विख्यात है। पर मेरे जैसे घनघोर वेजिटेरियन के लिए ये सरवाईवल का प्रश्न था। जिधर भी रुख किया वहीं केकड़े, झींगे, मछलियाँ, और ना जाने क्या-क्या अल्लम-बल्लम आईटम मौजूद थे! उसके ऊपर से जलेबी सी नज़र आने वाली मलयालम में छपे हुए मेन्यू!! और उसके भी ऊपर मुख से जलेबियाँ बरसाते मल्लू वेटर्स!!! हम जिन मद्रासी खानों से परिचित हैं, मसलन इडली, डोसा, वडा, उत्तपम, साम्भर आदि, वो ऐसे गायब थे जैसे इस दुनिया से मेरी माँ! वैसे भी भूखे पेट वो ज़्यादा याद आती है!!!

एक बात जो अंडरलाईन की जा सकती है के बाई एंड लार्ज, मल्लूज़ हैल्पफुल होते हैं, बोले तो एकदम गुडमैन दी लालटेन! केरल में एकदम हरी-हरी हरियाली का प्रचंड साम्राज्य है! फेफड़े ऑक्सीजन से भर जाते हैं एकदम! कहावत है के सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नज़र आता है! केरल में कोई किसी भी मौसम में अंधा हो, गारंटी से हरा ही हरा नज़र आएगा!

'मैं क्यूँ गया? कहाँ घूमा?', ये सब फ़िर कभी के लिए! फिलहाल तो टीवी में हरी भरी मिसेज नेने और मिसेज जूनियर बच्चन नाच रहीं हैं और गा रहीं हैं: हमपे ये किसने हरा रंग डाला.........

बुधवार, 13 मार्च 2013

थ्री में ना थर्टीन में!!!

प्यारी सहेलियों और यारों,
अनसरटेनिटी से आपको-मुझे, गाहे-बगाहे, कभी-ना-कभी दो-चार होना ही पड़ता है. समझ नहीं आता के घर जाएँ या घाट! और प्रचंड बेचैनी होती है इस बात की के धुंध में कोई किरण नज़र आये धूप की! और कभी कभार तो ऐसी भी स्थिति आ जाती है, जो इस मुहावरे से बयान होती है:
तीन में ना तेरह में 
घनश्याम गधैय्या घेरे में 

'थ्री में ना थर्टीन में' मन में क्या चलता है घनश्याम गधैय्या के, प्रस्तुत है:

द अरावलीज़ एज़ सीन फ्रॉम ए डिस्टेंट ट्रेन 

(१) 
सामने पर्वत बड़ा!
जाने कबसे यहीं खड़ा!
तू क्यूँ बता, हारे है हिम्मत?
जब वो भी है ज़िद पर अड़ा!

कोसता क़िस्मत को क्यूँ?
जो सामना इससे पड़ा!
होगा ये क़दमों तले!
प्रयास कर, जो तू चढ़ा!


(२)
तूने ही मनमर्ज़ी से!
ख़ुद ही छोड़ा घोंसला!
फिर क्यूँ यूँ घबराये है?
क्यूँ गंवाए होंसला!

डूबा है किस सोच में?
अब ज़रा पंख फैला!
परवाह ना कर अंजाम की!
आप ही होगा भला!

सुन ले बेशक सब की तू!
मान पर ख़ुद की सलाह!
प्रयास कर, साकार कर उसे,
जो ख़्वाब आँखों में पला!



(३)
क्यूँ है परेशां?
ये सोच के.....
भविष्य के गर्भ में,
क्या है छुपा!?

जो आज, है कल!
वो कल, आज हो जाएगा!
तब तलक निश्चिंत रह!
क्यूंकि मृत्यु निश्चित है!
और कुछ हो ना हो.....

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

इलेवन टू थर्टीन!!!

प्यारी सहेलियों और यारों, 
नौ दो ग्यारह अथवा नाईन टू इलेवन होना तो सुना ही हैगा, लैट अस सी के ग्यारह दो तेरह या इलेवन टू थर्टीन का फ़ार्मूला क्या है:

इलेवन टू थर्टीन!!!
बस! अब और नहीं!
 
तेरे सितम!
तेरी ज़ुल्मत!
तेरे फतवे!
तेरी हुकूमत!
बस! अब और नहीं!
 सितम Tyranny, Injustice ज़ुल्मत Darkness
दिन में धुँधले उजाले!
शब-ए-ग़म की क़यामत!
पलकों में आँसू छुपाना!
हँसी की झूठी सजावट!
बस! अब और नहीं! 
शब-ए-ग़म The night of sorrow
मुहब्बत के बहाने से!
तेरा वो लूटना अज़मत!
मेरे इनकार करने पर!
तेरी दलील-ए-रवायत!
बस! अब और नहीं! 
अज़मत Glory, Honour दलील-ए-रवायत Argument based on tradition
दुनिया के आगे!
हक़ों की वक़ालत!
और सबसे पोशीदा!
तेरी वहशी हकीक़त!
बस! अब और नहीं! 
पोशीदा Hidden, Covered वहशी Savage 
महफ़िलों में झूठ की!
तेरी वो अदा-ए-शराफ़त!
लौट कर चारदीवारी में!
मुझसे बेवजह अदावत!
बस! अब और नहीं!
अदावत Animosity 
वो स्याह सवेरे! 
और तेरी मुझसे रक़ाबत!
वो रंजीदा रातों में!
मेरी किस्मत से शिकायत!
बस! अब और नहीं! 
रक़ाबत Rivalry, Enmity रंजीदा Sad
 तेरी नुख्ताचीनी!
और मेरी ख़ुशामद!
मेरे 'मैं' की हर लम्हा!
होती शहादत!
बस! अब और नहीं! 
नुख्ताचीनी Criticize
 नाश्ते में ताने!
खाने में लात-ओ-लानत!
राज़-ओ-नियाज़ नहीं!
बल्कि! तैश-ओ-हिक़ारत!
बस! अब और नहीं! 
लात-ओ-लानत Physical and Verbal Abuse
राज़-ओ-नियाज़ Intimate conversation between the lover and beloved
तैश-ओ-हिक़ारत Recklessness and Disgrace
सब्र का इम्तेहां इन्तेहा तक लेना!
फिर कहना मुझमे नहीं है सबाहत!
चर्ब-ज़बां! तेरे तेज़ नश्तर!
और किसे फिर कहते हैं सियासत?!
बस! अब और नहीं! 
सबाहत Grace, Beauty चर्ब-ज़बां Sharp-tongued नश्तर Knife
क़ैद करके रखना!
और उदासी की तोहमत!
लाश का साँस लेना!
सय्याद तेरी रहमत!
बस! अब और नहीं! 
सय्याद Hunter
ग़र्दिश-ए-क़फ़स में!
ग़म की ग़नीमत!
ख़ामोशी में मेरी!
तेरी हशमत की हिफाज़त!
बस! अब और नहीं! 
ग़र्दिश Misfortune क़फ़स Cage ग़नीमत Abundance हशमत Dignity 
लहू के घूँट पी कर रह जाना!
रूह को चाक करता तेरा तोहफ़ा-ए-ज़िल्लत!
बेसबब यूँही! तेरा तल्ख़ होना!
और मेरी चुप रह जाने की आदत!
बस! अब और नहीं! 
चाक Torn ज़िल्लत Disgrace, Insult तल्ख़ Bitter 
तेरी बंदगी बहुत करके देखी!
ख़ुद से करनी है अब थोड़ी सी उल्फ़त!
उड़ना तेरे पिंजर से पंख लगा के!
तेरे डाले दानों की मुझको हाजत!
बस! अब और नहीं! 
उल्फ़त Affection हाजत Need
ढ़पोरशंख उवाच:
If you face a problem, solve it!
If you can't solve it, ignore it!
If you can't ignore it, escape!
If you can't escape, You have chosen to suffer! Enjoy!


This post is dedicated to the 'Free Spirit', who chooses not to suffer, but goes...........'Eleven Two Thirteen!!!'  
   
क़फ़स-ओ-कबूतर: गूगल परिंदा

रविवार, 13 जनवरी 2013

थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!

थर्टीन अपॉन ए टाईम, गुरु नानक किसी साहूकार के गोदाम पर पैसे के बदले अनाज तोल कर बेचने का काम करते थे। 
एक बार एक किसी ढ़पोरशंख ने ध्यान दिया के नानक अनाज तोलते समय गिनती करते हैं: एक, दो, तीन, चार, पाँच..... पर गिनते-गिनते जब तेरह (तेरा) पर पहुँचते, तो आगे बढ़ते ही नहीं! बस अनाज देते रहते हैं और सिमरते रहते हैं: तेरा, तेरा, तेरा, तेरा......! और इस तेरा-तेरा के फेर में चुकाए गए मूल्य से कहीं अधिक अनाज लोगों में बाँट देते हैं!
किसी अन्य ढ़पोरशंख ने नानक की शिकायत साहूकार से कर दी, तो वह ख़ुद हकीक़त का पता लगाने पहुंचा। उसने बही-खाते जाँचे, रुपये गिने और अनाज भी तोला। वह आश्चर्यचकित हुआ ये देख कर के अनुमान से कहीं अधिक अनाज वहाँ मौजूद था, जबकि नानक तेरा-तेरा कहते-कहते लोगों को कहीं अधिक अनाज बाँट चुके थे!!!!!!!!!!!!!

तेरा नूर!
और मैं कुछ ना चाहे बन पाऊँ,
पर एक अच्छा इंसान बनूँ!

ना ऊँच रहूँ, ना नीच रहूँ!
ना हिन्दू ना मुसलमान बनूँ!
जिसको सुनकर मंदिर में शंख बजे!
ऐसे मुल्ला की अज़ान बनूँ!

जानूँ के सच नहीं है ये दुनिया!
इस भरम को मैं जी भर के जियूँ!
जाने पर याद किया करे आलम!
ऐसा खुशदिल मेहमान बनूँ!

नफरतों का प्याला पी जाऊँ!
मुहब्बतों के खातिर जी जाऊँ!
जो ज़ख्म पर मरहम बन जाए!
मैं अमन का वो पैग़ाम बनूँ!

तेरे रंग में ऐसा रंग जाऊँ!
तू जाए जिधर उधर जाऊँ!
तुझमें खो कर खुद को पाऊँ!
तेरा चैन-ओ-क़रार, आराम बनूँ!

तितलियों के पीछे फिर भागूँ!
तारों की चादर तले जागूँ!
जो नहीं किया वो सब भी करूँ!
आवारा पागल अरमान बनूँ!

ना उम्मीद कोई, ना कोई आस!
रहना चाहूँ बस तेरे पास!
जब तक कायम हैं दम-ओ-साँस!
हो तुझे ख़ास, वो आम बनूँ!
 
अंधियारे उजालों में बदलता रहूँ!
बन दीपक हर पल जलता रहूँ! 
ना रुकूँ, ना थकूँ, चलता ही रहूँ! 
निशां-ए-ज़ीस्त, आब-ए-रवान बनूँ!
 
होठों पे हँसी, आँखों में नूर!
रहूँ हर दम तेरी मस्ती में चूर!
कैफ़-ए-वस्ल में भीगा हुआ!
रिन्दों की पसंद का जाम बनूँ!
 
बन कर के जियूँ तेरी छाया!
तेरा साथ है मेरा सरमाया!
महकाया करे जो चमन तमाम!
वो गुल-गुलशन-गुल्फ़ाम बनूँ!
 
ग़म के बादल जो मंडराएं!
उनका पता, लापता करूँ!
हालातों पर जो हँसा करे!
ऐसा बेपरवाह शादान बनूँ!
 
मेरे भीतर कुछ मेरा नहीं! 
मन भी तेरा, तन भी तेरा!
मेरे मैं को तुझमें पनाह दे दे!
रूहानी सूफ़ी कलाम बनूँ!
 
एक मंज़र फ़िर ऐसा आये!
तू तू ना रहे, मैं मैं ना रहूँ!
मेरे मैं को तेरे तू में मिला दे यूँ!
तेरे नाम की धुन में गुमनाम बनूँ!
 
ए मालिक, राह दिखा दे तू!
मुझे छू कर पाक बना दे तू!
साँसें तेरी शान में सजदा करें!
तेरे हुक्म का मौला ग़ुलाम बनूँ! 

उर्दू हैल्पडेस्क:
अज़ान: Call for prayers
निशां-ए-ज़ीस्त: Sign/ Symbol of life
आब-ए-रवान: Running water
कैफ़-ए-वस्ल: Intoxication of meeting/union with Beloved/God
रिन्द: Drunkard/ Alcoholic
सरमाया: Capital/ Wealth
शादान: Happy

फोटू: तेरा गूगल!!!

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

अशेम्ड!!!

मर्दानगी???!!!

वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
उसका मन किया!
उसने किया!
ज़रूरी है!
ये साबित करता है!
औरत जागीर है उसकी!
और उसका जिस्म मिल्कियत है!
नोच कर खाने का!
उसका मन किया!
उसने किया!
क्यूँ?!
क्यूँकि वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
औरत त्रियाचरित्र है!
पतिता है!
ज़रूर उकसाया होगा!
कुछ इशारा किया होगा!
हँसी होगी, निर्लज्ज!
ऐसे में वो क्या करता?!
उसका मन किया!
उसने किया!
आखिर वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
वो दुनिया पे राज करता है!
औरत? बांदी है उसकी!
अपनी सत्ता की मोहर लगाने के लिए!
उसे उसकी जगह दिखाने के लिए!
अपनी मर्दानगी निभाने के लिए!
उसका मन किया!
उसने किया!
अरे! वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
क्या? औरत की मर्ज़ी नहीं थी?!
वो ज़रूरी नहीं थी!
कहा ना! औरत जागीर है उसकी!
अपना बल दिखाने का!
उस पर हल चलाने का!
उसका मन किया!
उसने किया!
जानते हो न! वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!


अमूमन ढ़पोरशंख अपनी दुनिया में रहता है! पर कुछ वाकये मजबूर करते हैं उसे अपने खोल से निकलने के लिए! जो आप पढ़ आये हैं वो सोच ज़िम्मेदार है औरतों के खिलाफ़ होने वाले तमाम अपराधों के लिए।
सोच बदलें, समाज बदलें!
छायाचित्र: श्रीमती गूगल

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

द स्पिरिचुअल कनेक्ट: ए ट्रिब्यूट टू मम्मी

अक्स-ए-अंजना

नदियों से बलखाते रस्तों पर,
डूबते-उबरते चलते-चलते!
कभी गर्मी की तपती धूपों में,
और सर्दी के घने कोहरे में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

नुसरत की हर क़व्वाली में,
हर तान पे और हर एक ताली में!
कभी अनहद की हद के परे,
हवा में सूफ़ी नक्काशी सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

यूँ तो बेरंग हैं ख़्वाब मेरे!
आँखों से भी है नूर जुदा!
कभी होली के रंगीं मौसम में,
दीवाली के रोशन दीये सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

दुनियावी रिश्तों से दूर कहीं!
रूह के रिश्तों की दुनिया में!
कभी टिमटिमाते तारों में,
रूप बदलते बादल में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

अंतिम शैय्या पर सोयी हुई,
आगोश-ए-आग में खोई हुई!
कभी हाथों की अभागी लकीरों में!
माथे की अधूरी तकदीरों में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

अपने हाथों से तुझे जलाया था!
तेरी राख भी चुन के लाया था!
कभी चलती-फिरती हँसती-खिलती!
मिट्टी के बिखरे फूलों सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

तेरे संग जिसमें गोता लगाया था!
उसी गंगा में तुझे मिला आया था!
कभी उसकी निर्मल धारा में!
और उसमें घुले बालू में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

जो जाते हैं फिर आते नहीं!
पर  यादें कहाँ कहीं जाती हैं?
कभी मीठी गालियाँ देती हुई!
और लाड लड़ाती हुई कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!  

मौजूद नहीं तू ज़ाहिर में!
फिर भी मुझे राह दिखाती है!
कभी नेकी पर मुझे चलाती हुई!
बदी से बचाती हुई कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!

यूँ तो तेरी रूह मेरे जिस्म में बसती है!
पर दीदार को जब अँखियाँ तरसती हैं!
कभी देखता हूँ आईने में अक्स तेरा!
आँखें बंद कर लेता हूँ कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है! 

आई लव यू!
आशू