केमिकल लोचे के शिकार.....

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मैं कौन हूँ, मैं क्या कहूं? तुझमे भी तो शामिल हूँ मैं! तेरे बिन अधूरा हूँ! तुझसे ही तो कामिल हूँ मैं!

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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

नदिया: मुकम्मल मुहब्बत, अधूरी वफ़ा!

मुकम्मल मुहब्बत.....


तब हम भी थे ऊबड़-खाबड़,
और तुम में भी था लड़कपना!
हमें दंभ था अपने पौरुष पर,
और तुम में भी थी चंचलता!


तुम आती थीं टकराती थीं!
छिटक के बूँद बन जाती थीं!
तुम्हे देते तो ना थे हम रस्ता
फिर भी तुम रह बनाती थीं!


इठलाती हुई, बलखाती हुई!
तुम आन बसी दिल में मेरे!
मैं अक्खड़ सा वहीँ अडिग रहा,
तुमने ही लिए मेरे फेरे!


मैं जड़ था स्वाभाव से, तुम चेतन!
इसी बात का तो मैं दीवाना था!
भा गयी थी तुम्हे भी जिद मेरी,
तुम शमा थीं मैं परवाना था!


किए प्यार के वादे थे हमने,
एक दूजे को पहचाने बिना!
मर मिटे थे एक दूजे पर हम,
सीरत किस्मत को जाने बिना!


मैं प्यासा एक मरूस्थल था!
तुमने तो मुझे सराबोर किया!
मैंने रखे संभाल के हैं वो पल,
जब संगीत बनाया, शोर किया!


मैं जलता हुआ अंगारा था,
दी तुमने मुझको शीतलता!
जहाँ कहीं भी था रूखा सा मैं,
अब है वहां स्निग्ध कोमलता!


हम बने थे एक दूजे के लिए!
हो सकते नहीं हम कभी जुदा!
जन्मों का साथ हमारा है!
इस बात का है खुदा गवाह!


फिर वक्त चला तो उम्र बढ़ी!
एक ऐसी अवस्था फिर आई!
जिद छोड़ के मैं हुआ नरम,
तुमने भी पाई गहराई!


फिर चाल करी तुमने मंदी,
हो गया बंद सा तुम्हारा शोर!
मैंने पूछा तो जवाब दिया,
यह प्रथम कदम प्रौढ़ता की ओर!


"चिरयुवा हो तुम, चिरंजीवी!
सच कहो इसका अभिप्राय है क्या?"
"अभी नहीं हुई हूँ मैं वृद्धा!
परिपक्वता से मेरा आशय था!"


साथ समय के बदलीं तुम,
मुझको भी बदलना दिया सिखा!
चट्टान को किया मैंने भी चूर,
और बालू तुममें मिला दिया!


मुझे याद अभी भी हैं बच्चे,
आँगन में खेला करते थे!
आते थे जब सब मिलजुलकर,
अक्सर वो मेला करते थे!


मेरी छाती पर खड़े होते थे,
और बह उठती थी तेरी ममता!
धो कर निखार देती थीं तुम,
सब गलतियों की दे कर के क्षमा!


निष्पाप बना कर मन उनका,
कितना सुख मिलता था तुमको!
वह दिव्य परलौकिक छवि,
याद अभी भी है मुझको!


आना उन्होंने कर दिया बंद!
तुमने फिर भी सींचा उनको!
ये दया, ये करुणा और क्षमा,
करती है द्रवित मेरे मन को!


जीवन में आया एक और मोड़,
वह वृद्धा हुई और मैं प्रौढ़!
होने लगा हूँ अब मैं शिथिल!
उस पर भी पड़ने लगा है ज़ोर!


अब दूर का साथ है अपना नहीं!
जाने है वो, जानूं मैं भी!
रह नहीं सकूंगा उसके बिना!
गर वह अधर में छोड़ चली!


"रुक जाओ के अब न जाओ तुम!
जी नहीं सकूंगा तुम्हारे बिना!"
"सागर में तुम खो जाओगी!
ढूंढ सकोगी ख़ुद को भी ना!"


"इस पर मेरा कोई वश है नहीं!
मुझको अब भी बहना होगा!"
"यह सागर है मेरा इश्वर!
इसमे विलीन होना होगा!"


"फिर लूंगी जनम, बनके बादल!
फिर बरसूँगी मैं हिम बनकर!"
"फिर पिघलूंगी, फिर आऊंगी!
फिर तुमसे मैं टकराऊंगी!"


"फिर बदलूंगी मैं समय संग!
तुमको भी बदलना सिखाऊंगी!"
"फिर से आने का वादा कर,
मैं सागर में मिल जाऊंगी.....
मैं सागर में मिल जाऊंगी!!!"



अधूरी वफ़ा.....


ऐसा होता तो क्या होता!
लेकिन ऐसा क्यूँ हो ना सका?
वादा तो किया था तुमने भी!
फिर क्यूँ मुझे अधर में छोड़ दिया?


तुमको तो मालूम है ना!
बरसातें और भी आयीं थीं!
पर मैं तो तुममें भीगा था!
चाह कर भी छू ना पायीं थीं!


जब देखा नहीं मैंने उनको,
क्यूँ रुख को तुमने मोड़ लिया?
जब मैंने की तुझसे ही वफ़ा!
क्यूँ अकेला तनहा छोड़ दिया?


जाने अब बहती होंगी कहाँ?
महकाती हो किसकी बगिया?
क्या घुल गया है तुममें नया बालू?
जिस तरह था मैं तेरी रूह में मिला!


मैं तो अब भी सच बोलूँगा!
तू बेशक चली गयी तो क्या?
विरह की धूप में तप कर भी,
तेरी नमी कहीं पर बाकी है!


यूँ तो खुश रहता हूँ मैं!
तेरी कमी कहीं पर बाकी है!
तू डरती दुनिया से तब भी थी!
मुझमें अब भी बेबाकी है!


मुझको है पता तुम रो दोगी,
पढ़कर के मेरी यह कविता!
आँखों में ना हो जाये चुभन,
तेरे अश्कों में हूँ मैं जो घुला!


इसलिए ऐ नदिया रोना नहीं!
मेरे प्यार के रेत को खोना नहीं!
मुस्का देना उस लम्हे में,
जिस लम्हे में मेरी याद आये.....

46 टिप्‍पणियां:

mark rai ने कहा…

जाने अब बहती होंगी कहाँ?
महकाती हो किसकी बगिया?
क्या घुल गया है तुममें नया बालू?
जिस तरह था मैं तेरी रूह में मिला...
very nice
carry on.........

vandana gupta ने कहा…

mukammal mohabbat ke madhyam se aapne jeevan ka saar kah diya.............bahut hi sundar prastuti.

वाणी गीत ने कहा…

आपकी मेल पढ़कर जितनी हंसी आई ...कविता ने उतना ही रुलाया ...
नदी ने भी कैसे भूला होगा रेत हो जाना ...जबकि समंदर में सामना उसकी नियति है ...
भावविभोर कर गयी ये रचना ....आशीष को बहुत आशीष ....!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन की गाथा लिख दी है आपने ........... बहुत ही लाजवाब अंदाज़ में जिंदगी के खूबसूरत औ हक़ीकत को उतारा है ........... बहुत बधाई ..........

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना है। बहुत बहुत बधाई।

Indu Puri ने कहा…

साथ समय के बदली तुम
मुझ को भी बदलना सीखा दिया
चट्टान को किया मैंने भी चूर
बालू बन खुद को तुम में मिला दिया ....................
वह दिव्य परलौकिक छवि
याद अभी भी है मुझको ....................
यह सागर है मेरा ईश्वर
इसमें विलीन होना होगा ........................
फिर लूंगी जन्म ,बनके बादल
फिर बरसूँगी मैं बादल बन कर
फिर पीघलुंगी,फिर आऊंगी
फिर तुमसे मैं टकराऊंगी ...................
फिर से आने का वादा कर
मैं सागर में मिल जाऊंगी ''
नदी और रेत का पावन प्रेम ,एक दुसरे के हो के भी ना मिल पाने की विवशता
saagar में विलीन होने का उसका संकल्प
जैसे जन्मो के इस साथ में भी एक लाचार सा भाव
कि रेत तु प्रियतम युगों से साथ हैं,रहेंगे
पर मेरा प्रारब्ध तो सागर में विलीन होना ही लिखा गया है
तु कितना भी नेह,प्रीत स्निग्ध हो चट्टान हो कर ,अपने अस्तित्व को मुझ में मिला कर भी अलग़ रहेगा मैं बादल बन फिर हिम कणों में परिवर्तित हो बरस जाऊँ
पर सागर से मिलने से मुझे कोई नही रोक सकता जब तक कि राह में बहती बहती सूख कर अपना जीवन ही समाप्त ना कर लूँ
बिछोह तेरे भाग्य में भी लिखा है और मेरे भाग्य में भी
जब तक जीवित रही तेरे स्पर्श ने मुझे पवित्र ही किया,कहीं कोई गंदगी नही थी ...........
फिर भी हम एक नही हो सकते
प्रीत के गीत ना गा
तेरी ये दुनिया नही समझ पाएगी
मेरे संग संग तेरे पावन प्रेम पर भी एक दाग लगा जाएगी
आशीष! तुम्हारी इस कविता को पढने के बाद..........मैं बहुत रोई
शायद मर्म स्पर्शी इसी को कहते हैं

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

शुक्रिया मार्क! अपना मार्क छोड़ने के लिए!
धन्यवाद वंदना जी!
नसवा जी, मैंने कहा था ना, कभी-कभी हम भी डुबकी लगा लेते हैं!
बाली जी, शुक्रिया!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

पी डी, साड्डे चिट्ठे विच तुहाडा स्वागत है!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

मुझको है पता तुम रो दोगी,
पढ़कर के मेरी यह कविता!
आँखों में ना हो जाये चुभन,
तेरे अश्कों में हूँ मैं जो घुला!
वाणी गीत, इंदुजी,
मुझे नदिया से तो उम्मीद थी आंसुओं की! इस रचना ने आपको भी रुला दिया! चलिए आँख के जले साफ हो गए इस बहाने से!
हाहाहा.....

रचना दीक्षित ने कहा…

मुझको है पता तुम रो दोगी,
पढ़कर के मेरी यह कविता!
आँखों में ना हो जाये चुभन,
तेरे अश्कों में हूँ मैं जो घुला!

बहुत कुछ कह गए वो चंद भीगे हुए से शब्द

अबयज़ ख़ान ने कहा…

Nadiyo ko bachane ke liye ham log jo bhi kar rahe hain vo kam hai.. Lekin Apki kavita ne isme aur bhi jaan daal di.. Nadiyo ko Bachane ke liye Aage aaiye..

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

रचना जी, धन्यवाद!
अबयज़, झूठ नहीं बोलूँगा आपसे! ये रचना मेरे अपने निजी स्वार्थ की उपज है! और नदी यहाँ पर एक रूपक मात्र है! पर हाँ, नदियों को बचाना एक बेहद अहम् काम है! मुझे ख़ुशी है की आप इस दिशा में सतत प्रयत्न कर रहे हैं! आपका न्योता स्वीकार है मुझे, जल्द ही ईमेल के ज़रिये आपसे संपर्क करूँगा!

निर्मला कपिला ने कहा…

अशीश जी सब से पहले तो क्षमा चाहती हूँ बहुत दिन से आपके ब्लाग पर नही आ पाई मुझे ब्लागवाणी पर आपका ब्लाग शायद भूलवश नही दिखा। आगे से ध्यान रखूँगी इतने अच्छे ब्लाग पर भला मैं क्यों नही आऊँगी।
मुझको है पता तुम रो दोगी,
पढ़कर के मेरी यह कविता!
आँखों में ना हो जाये चुभन,
तेरे अश्कों में हूँ मैं जो घुला!
सच मी आपकी रचना पढ कर हैरान हूँ पूरे जीवन को कविता मे बाँध दिया है तभी तो मुझे लगता है कि संवेदनाओं के पँख न होते हुये भी वो क्षितिज के उस छोर तक पहुँच जाते हैं जहाँ की इन्सान कल्पना भी नही कर सकता
आप बहुत अच्छा लिखते हैं बधाई स्वीकार करें । शुभकामनयें आशीर्वाद बस इसी तरह लिखते रहें ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

निर्मला जी, सर्वप्रथम आपका हृदय से स्वागत मेरे चिट्ठे पर! यकीन मानिये आपने मेरा मान बढाया है! आपके स्नेह का मैं आभारी हूँ! दरअसल मैंने केवल हकीकत बयाँ की है! कविता का पहला हिस्सा वो कहता है जो मैं चाहता था की हो, अब भी चाहता हूँ! शायद किसी और नदिया के साथ! और दूसरा हिस्सा वो बयाँ करता है, जो हो ना सका! खैर दोष नहीं देता हूँ! बस दुआ करता हूँ, वो भी खुश रहे, मैं भी!

आपका आशीष बना रहे बस आशीष पर!

बेनामी ने कहा…

Hey Dude,
Awesome poems, vry heart touching.
M so impressed dat m also promoting ur blog amongst ppl n giv dem ur example, Keep gng.

Ur tuin-tuin frnd

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Hey, Tuin-tuin!
Thanks! Quoting me as an example!!! And, what? You called me dude!!!
Hahaha
May you be happy!

Kuldeep Saini ने कहा…

bahut sundar rachna

Jitendra Dixit ने कहा…

yar tusi great ho .......
par yar tohfe ke leye kuch nahe h.

is nadi ko rukh modna hoga,......
tujh me he milna hoga,..........
bewafa n kahleye teri wafa,..........
isleye boond ko apne wajud m he ghulna hoga..........

रंजना ने कहा…

जो बिम्ब आपने चुना भावाभिव्यक्ति के लिए उसका इतना सुन्दर विस्तार किया की मुग्ध हो गयी पढ़कर...यदि इस रचना को पर्वत और नदी के सन्दर्भ में देखा जाय तो भी पूर्णतः सटीक बैठता है और यदि पति पत्नी के सन्दर्भ में देखा जाय तो भी उतना ही सार्थक और जीवंत लगता है....
कुल मिलकर यही कहा जा सकता है की कोमल भावों को प्रभावी अभिव्यक्ति देने में आप बेजोड़ हैं...
सुन्दर रचना के रसास्वादन का सुअवसर देने हेतु बहुत बहुत आभार...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कुलदीप जी, धन्यवाद!
रंजना जी, मेरा सौभाग्य! आभार किस बात का?

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

नहीं जे डी!
कई बार नदियों पर उनकी इच्छा के खिलाफ बाँध बनाये जाते हैं, उनका रुख मोड़ दिया जाता है!
तेरे अल्फाजों में मेरे लिए मुहब्बत है, मैं जानता हूँ! दुआ कर के नदिया भी ना सूखे, और मैं भी भीगा रहूँ!

KAVITA VERMA ने कहा…

bahut sunder bhavatmak chitran nadi aur chattan ka sabg paas rahakr bhi door door ho kar bhi ek doosare ke paryay.

अविज्ञात परमहंस ने कहा…

अनुभव ही सबसे बडा प्रेरणा स्रोत है। जीवन और प्रेम में योग और वियोग दोनो ही अनुभव विश्वको बढाते है। आपकी रचना ने मुझे तार-तार बना दिया। क्योंकि

जो तार से निकली है वह सबने पढी है।
जो तार पे गुजरी वह सिर्फ मेरे दिल को पता है।

-साहिर लुधियानवी की क्षमा मांग कर

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
फिर चाल करी तुमने मंदी,
हो गया बंद सा तुम्हारा शोर!
मैंने पूछा तो जवाब दिया,
यह प्रथम कदम प्रौढ़ता की ओर!
आभार...........

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कविता जी, शुक्रिया!
सिंह साब, दरअसल प्रेमी चकरा जाता है, प्रेमिका का बदला स्वरुप देख कर! अबे, ये वोही है जिससे मेरी आँखें चार हुईं थीं?!!!
पुरुष अक्सर देर से मच्योर होते हैं!
आभार किस बात का? आगे भी पकाता रहूँगा, और परोसता रहूँगा!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

प्रकाश खाडिलकर जी,
सर्वप्रथम स्वागत!
आप ने तो सारी अवस्थाएँ देखी होंगी अपने जीवन में!
जो तार से निकली है वह सबने पढी है।
जो तार पे गुजरी वह सिर्फ मेरे दिल को पता है।
सच में.....

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति है.दिल को छूती है.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

आशीष जी, रचना बहुत सुन्दर है. प्रेममय है मार्मिक है. आपने अभिव्यक्ति को उचित बिम्बों के माध्यम से साकार किया है.

आनंद आया.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

उड़न तश्तरी को अपने गृह पर देख कर अच्छा लगा, कविता आपको पसंद आयी! धन्यवाद!
सुलभ/सतरंगी, आनंद की ही दरकार है! शुक्रिया!

बेनामी ने कहा…

sir , kavita ati uttam , sabad nahi hai mere pas , parantu apki srahana karni hogi , kitni hi sundarta se apne apni soch ko sabdo ke mala main piroya hai, asha karti hoon ki jiske liye yeh kavita likhi hai , us tak apki baat ( hale dil) pahunch jaye, baki wafa aur bewafai kuch nahi hoti bas halat hamare anukul nahi hoti , ishwar se bas itni prarthan kar sakti hoon ki jald hi paristhtiayan apke ankul ho jaye aur andi ka mor apke taraf ho jaye.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

अन्नपूर्णा,
हा हा हा.....
गुरु गुड़ रह गए, चेले शक्कर हो गए!
बरसातें और भी आएंगी....
खुश रहो!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

kitni khoobsurat hindi ka upyog karte hain aap....
padh kar dil ko aseem khushi mili...

aabhaar!

रानीविशाल ने कहा…

रचना बहुत सुन्दर है........बधाई स्वीकार करें !!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

प्रवीण पथिक,
स्वागत है आपका मेरे चाहने वालों में!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

सुरेन्द्र जी, धन्यवाद!
उर्दू का भी ख़ासा शौक़ है मुझे! हालाँकि, 'मुल्हिद' का मतलब मुझे समझ नहीं आया! बताएँगे तो कृपा होगी!
ते अज्ज्कल असी पंजब्बी सीख रे सी! आ जाणी है होली-होली! हुन कुछ लफ़ज़ ते लाब्ने लगे हैं मेनू!

रानी जी, धन्यवाद!

sanjeev kuralia ने कहा…

बहुत सुंदर अंदाज़ से रचना की आपने ! बहुत बहुत आभार

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

धन्यवाद, संजीव जी! आभार काहे का?

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

देवेश प्रताप, वेलकम!

Dev ने कहा…

बहेतरीन प्रस्तुति ....आशीष जी

prashant ने कहा…

गलतफहमी का शिकार ..........
तुमने कहा तुम्हे अपने पोरुश पर दंभ था
मुझे लगा वोह तेरा प्राकर्तिक वक्तित्व था
तुमने कहा उसने लगाये थे तुम्हारे फेरे
मुझे लगा उसके पास कोई और चारा ना था |

उसकी मोहोब्त तू नहीं, समंदर था
तू तो जाने अनजाने आ गया उसके रास्ते में था
तेरे दिल को चीर उसने
खोज लिया आपना रास्ता था |

वो निकली थी अपनी मोहोब्त से मिलने
रास्ते में जो भी मिला, उसने उसे उसे छु लिया था
उसके स्पर्श को समझ लिया तुने मोहोब्त
मुझे लगता है तू गलतफहमी का शिकार था |

तेरी मोहोब्त नदिया नहीं, ज़मी है
जिसके स्तन पर खड़ा तू सीना ताने है
जाग खुवाबो की दुनिया से, दूर कर गलतफहमी
मोहोब्त बालू बन कर नहीं, अपना अस्तित्व बनाये रखने में है.......

समझो इन हसीनो को...अ मेरे दोस्त

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

प्रशांत,
हा हा हा.....
शायद, आप सही हैं! लेकिन कोई नदिया से पूछे.....

ग़ालिब ने कहा था:
ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे!
एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है!
चचा को मेरा सलाम:
के हम तो डूबे रहना चाहते हैं इस आग के दरिया में!
किसको कश्ती की दरकार, किसको पार जाना है?
अगली रचना पढियेगा, "बरसातें और भी आएँगी....." और फिर बताइयेगा मुहब्बत के नए मायने!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कूल अंकुर,
साड्डे चिट्ठे विच तुहाडा स्वागत है!

sangeeta ने कहा…

नदिया के दर्द को बहुत संभाल कर रखा है आपने !
बहुत अच्छा लगा इसे पढ़ के और ये भी लगा की काश हर नदी का बालू उसके पास ही रहता , उसके हाथों से फिसल न जाता !
आपने भी तो अपनी मुहब्बत के बालू में नदिया की नमी छुपा कर रखी है !!
मेरी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया , आपकी कई पोस्ट्स पढ़ी और हिंदी लिखने की शैली बहुत अच्छी लगी !

swati ने कहा…

Hello sir....
Mujhe apki "NADIYA:MUKAMMAL MOHABBAT,ADHURI WAFA!" poetry bahut acchhi lagi... it is written very beautifully...
Lekin 1 baat to bataiye!!!! isme NADIYA kaun hai???

monali ने कहा…

Hmm rulane ka pura prayaas aur fir ye zidd k rona nahi...sundar kavita...magar jab hume rula gayi to...khair..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर ....अच्छा हुआ कि लिंक भेजा ...