केमिकल लोचे के शिकार.....

पहचान कौन???

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मैं कौन हूँ, मैं क्या कहूं? तुझमे भी तो शामिल हूँ मैं! तेरे बिन अधूरा हूँ! तुझसे ही तो कामिल हूँ मैं!

आपको पहले भी यहीं देखा है....!!!

रविवार, 13 जनवरी 2013

थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!

थर्टीन अपॉन ए टाईम, गुरु नानक किसी साहूकार के गोदाम पर पैसे के बदले अनाज तोल कर बेचने का काम करते थे। 
एक बार एक किसी ढ़पोरशंख ने ध्यान दिया के नानक अनाज तोलते समय गिनती करते हैं: एक, दो, तीन, चार, पाँच..... पर गिनते-गिनते जब तेरह (तेरा) पर पहुँचते, तो आगे बढ़ते ही नहीं! बस अनाज देते रहते हैं और सिमरते रहते हैं: तेरा, तेरा, तेरा, तेरा......! और इस तेरा-तेरा के फेर में चुकाए गए मूल्य से कहीं अधिक अनाज लोगों में बाँट देते हैं!
किसी अन्य ढ़पोरशंख ने नानक की शिकायत साहूकार से कर दी, तो वह ख़ुद हकीक़त का पता लगाने पहुंचा। उसने बही-खाते जाँचे, रुपये गिने और अनाज भी तोला। वह आश्चर्यचकित हुआ ये देख कर के अनुमान से कहीं अधिक अनाज वहाँ मौजूद था, जबकि नानक तेरा-तेरा कहते-कहते लोगों को कहीं अधिक अनाज बाँट चुके थे!!!!!!!!!!!!!

तेरा नूर!
और मैं कुछ ना चाहे बन पाऊँ,
पर एक अच्छा इंसान बनूँ!

ना ऊँच रहूँ, ना नीच रहूँ!
ना हिन्दू ना मुसलमान बनूँ!
जिसको सुनकर मंदिर में शंख बजे!
ऐसे मुल्ला की अज़ान बनूँ!

जानूँ के सच नहीं है ये दुनिया!
इस भरम को मैं जी भर के जियूँ!
जाने पर याद किया करे आलम!
ऐसा खुशदिल मेहमान बनूँ!

नफरतों का प्याला पी जाऊँ!
मुहब्बतों के खातिर जी जाऊँ!
जो ज़ख्म पर मरहम बन जाए!
मैं अमन का वो पैग़ाम बनूँ!

तेरे रंग में ऐसा रंग जाऊँ!
तू जाए जिधर उधर जाऊँ!
तुझमें खो कर खुद को पाऊँ!
तेरा चैन-ओ-क़रार, आराम बनूँ!

तितलियों के पीछे फिर भागूँ!
तारों की चादर तले जागूँ!
जो नहीं किया वो सब भी करूँ!
आवारा पागल अरमान बनूँ!

ना उम्मीद कोई, ना कोई आस!
रहना चाहूँ बस तेरे पास!
जब तक कायम हैं दम-ओ-साँस!
हो तुझे ख़ास, वो आम बनूँ!
 
अंधियारे उजालों में बदलता रहूँ!
बन दीपक हर पल जलता रहूँ! 
ना रुकूँ, ना थकूँ, चलता ही रहूँ! 
निशां-ए-ज़ीस्त, आब-ए-रवान बनूँ!
 
होठों पे हँसी, आँखों में नूर!
रहूँ हर दम तेरी मस्ती में चूर!
कैफ़-ए-वस्ल में भीगा हुआ!
रिन्दों की पसंद का जाम बनूँ!
 
बन कर के जियूँ तेरी छाया!
तेरा साथ है मेरा सरमाया!
महकाया करे जो चमन तमाम!
वो गुल-गुलशन-गुल्फ़ाम बनूँ!
 
ग़म के बादल जो मंडराएं!
उनका पता, लापता करूँ!
हालातों पर जो हँसा करे!
ऐसा बेपरवाह शादान बनूँ!
 
मेरे भीतर कुछ मेरा नहीं! 
मन भी तेरा, तन भी तेरा!
मेरे मैं को तुझमें पनाह दे दे!
रूहानी सूफ़ी कलाम बनूँ!
 
एक मंज़र फ़िर ऐसा आये!
तू तू ना रहे, मैं मैं ना रहूँ!
मेरे मैं को तेरे तू में मिला दे यूँ!
तेरे नाम की धुन में गुमनाम बनूँ!
 
ए मालिक, राह दिखा दे तू!
मुझे छू कर पाक बना दे तू!
साँसें तेरी शान में सजदा करें!
तेरे हुक्म का मौला ग़ुलाम बनूँ! 

उर्दू हैल्पडेस्क:
अज़ान: Call for prayers
निशां-ए-ज़ीस्त: Sign/ Symbol of life
आब-ए-रवान: Running water
कैफ़-ए-वस्ल: Intoxication of meeting/union with Beloved/God
रिन्द: Drunkard/ Alcoholic
सरमाया: Capital/ Wealth
शादान: Happy

फोटू: तेरा गूगल!!!

27 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया बॉस

सादर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

लोहड़ी और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

दिनांक 14/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

तेरा तुमको अर्पण, बहुत ही सुन्दर और भक्तिभरी पंक्तियाँ।

इन्दु पुरी ने कहा…

bahut dino baad tumahre blog ka link mila. pdha. dekhti hun babu to jogi ho gya....... samay ke sath kitni soch bdl jati hai n hmari!! achchhe insan to ho.......aur agrsr ho rhe ho is or..........aisa hi ho......sb sb yhi soch rkhen. kvita achchhi lgi.

indu puri ने कहा…

kitne samay baad tumhare blog ka link mila.kvita pdhi.comment likha.pr sb gayab ho gya. tumhe pdhna hmesha achchha lga hai mujhe. jo chahte ho-----sochte ho wahi ho. kvita me soch jhlk rhi hai aur.........pahle se kahin jyada spritual,mature dikh rhe ho.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

एक मंज़र फ़िर ऐसा आये!
तू तू ना रहे, मैं मैं ना रहूँ!
मेरे मैं को तेरे तू में मिला दे यूँ!
तेरे नाम की धुन में गुमनाम बनूँ ...

बहुत खूब ... नानक न सही उसके करीब ही हो सकूं तो बहुत है इस जीवन के लिए तो ...

विभूति" ने कहा…

bhaut hi sahi.....

रचना दीक्षित ने कहा…

ए मालिक, राह दिखा दे तू!
मुझे छू कर पाक बना दे तू!
साँसें तेरी शान में सजदा करें!
तेरे हुक्म का मौला ग़ुलाम बनूँ!


क्या कहूँ आशीष बस निशब्द कर दिया. कितना सुंदर प्रसंग और उतनी सुंदर कविता. वाहे गुरु की फ़तेह.

शुभकामनायें पोंगल, मकर संक्रांति और माघ बिहू की.

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत-बहुत खूबसूरत!
अगर इतना सब कुछ कर सकूँ...
तो ज़िंदगी से कोई शिकायत ही हो क्यूँ .....
~सादर!!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


और मैं कुछ ना चाहे बन पाऊँ,
पर एक अच्छा इंसान बनूँ!

ना ऊँच रहूँ, ना नीच रहूँ!
ना हिन्दू ना मुसलमान बनूँ!
जिसको सुनकर मंदिर में शंख बजे!
ऐसे मुल्ला की अज़ान बनूँ!

जानूँ के सच नहीं है ये दुनिया!
इस भरम को मैं जी भर के जियूँ!
जाने पर याद किया करे आलम!
ऐसा खुशदिल मेहमान बनूँ!

नफरतों का प्याला पी जाऊँ!
मुहब्बतों के खातिर जी जाऊँ!
जो ज़ख्म पर मरहम बन जाए!
मैं अमन का वो पैग़ाम बनूँ!

तेरे रंग में ऐसा रंग जाऊँ!
तू जाए जिधर उधर जाऊँ!
तुझमें खो कर खुद को पाऊँ!
तेरा चैन-ओ-क़रार, आराम बनूँ!

तितलियों के पीछे फिर भागूँ!
तारों की चादर तले जागूँ!
जो नहीं किया वो सब भी करूँ!
आवारा पागल अरमान बनूँ!

ना उम्मीद कोई, ना कोई आस!
रहना चाहूँ बस तेरे पास!
जब तक कायम हैं दम-ओ-साँस!
हो तुझे ख़ास, वो आम बनूँ!

अंधियारे उजालों में बदलता रहूँ!
बन दीपक हर पल जलता रहूँ!
ना रुकूँ, ना थकूँ, चलता ही रहूँ!
निशां-ए-ज़ीस्त, आब-ए-रवान बनूँ!

होठों पे हँसी, आँखों में नूर!
रहूँ हर दम तेरी मस्ती में चूर!
कैफ़-ए-वस्ल में भीगा हुआ!
रिन्दों की पसंद का जाम बनूँ!

बन कर के जियूँ तेरी छाया!
तेरा साथ है मेरा सरमाया!
महकाया करे जो चमन तमाम!
वो गुल-गुलशन-गुल्फ़ाम बनूँ!

ग़म के बादल जो मंडराएं!
उनका पता, लापता करूँ!
हालातों पर जो हँसा करे!
ऐसा बेपरवाह शादान बनूँ!

मेरे भीतर कुछ मेरा नहीं!
मन भी तेरा, तन भी तेरा!
मेरे मैं को तुझमें पनाह दे दे!
रूहानी सूफ़ी कलाम बनूँ!

एक मंज़र फ़िर ऐसा आये!
तू तू ना रहे, मैं मैं ना रहूँ!
मेरे मैं को तेरे तू में मिला दे यूँ!
तेरे नाम की धुन में गुमनाम बनूँ!

ए मालिक, राह दिखा दे तू!
मुझे छू कर पाक बना दे तू!
साँसें तेरी शान में सजदा करें!
तेरे हुक्म का मौला ग़ुलाम बनूँ!


क्या लिख दिया है आशीष जी आपने !
समझ ही नहीं पा रहा की आपके इतने बेहतरीन सूफियाना कलाम में से कौन सी पंक्ति को कोट न करूं !?
…बहुत प्यारी रचना है

... और गुरु नानक जी का समर्पण भाव तेरा आपने बहुत अच्छी तरह से समझा दिया ...
जवाब नहीं आपके थर्टीन अपॉन ए टाईम का !
:)


प्यारी पोस्ट के लिए बधाई एवं आभार …
आपकी इस प्रविष्टि की जितनी प्रशंसा की जाए , कम है …

बहुत समय बाद आपके यहां आ पाया ...
और समझ में आ गया कि न आ कर कितना कुछ खोया है ...


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लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं !

साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सार्थक सोच और पावन चाहतें ........ ज़रूर पूरी हों

Rohit Singh ने कहा…

इतना अच्छा बन जाउं..यार घबराहट होने लगी है...ऐसा बन गया तो देवता न सही इंसान तो बन ही जाउंगा......पर नहीं इतना बेहतर हो ही नहीं सकता ......फिलहाल लोहड़ी औऱ मकरसंक्रांति की बधाई लो भाई....बाय बाय फिलहाल इस पोस्ट से

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत ख़्वाहिश .... गुरु नानक की कथा भी बहुत अच्छी लगी .... मकर संक्रांति की शुभकामनायें

इमरान अंसारी ने कहा…

आशीष भाई इस बार तो बनता है बॉस...........हैट्स ऑफ ।

भाई मैं इसे FB पर share कर रहा हूँ आपके नाम के साथ ।

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत प्‍यारी रचना...

Kailash Sharma ने कहा…

ना ऊँच रहूँ, ना नीच रहूँ!
ना हिन्दू ना मुसलमान बनूँ!
जिसको सुनकर मंदिर में शंख बजे!
ऐसे मुल्ला की अज़ान बनूँ!

...वाह! लाज़वाब प्रस्तुति...काश सभी की सोच ऐसी हो जाए...

sonal ने कहा…

sanyaas le liyaa kyaa.... :-)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

too good.....
divine...

bless you.
anu

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

होठों पे हँसी, आँखों में नूर!
रहूँ हर दम तेरी मस्ती में चूर!
कैफ़-ए-वस्ल में भीगा हुआ!
रिन्दों की पसंद का जाम बनूँ!
etana sundar ki tareef ke liye shabd km hain ......badhai ke sath aabhar bhi

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

बिरादर, तबियत तो ठीक है न? :)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

शिवनाथ कुमार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ,,,

ये पंक्तियाँ मुझे काफी अच्छी लगी ,,,

ना ऊँच रहूँ, ना नीच रहूँ!
ना हिन्दू ना मुसलमान बनूँ!
जिसको सुनकर मंदिर में शंख बजे!
ऐसे मुल्ला की अज़ान बनूँ!

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर रचना....बधाई।।

बेनामी ने कहा…

wah wah kya khoob likha hai.

बेनामी ने कहा…

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await your comment thanks

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ए मालिक, राह दिखा दे तू!
मुझे छू कर पाक बना दे तू!
साँसें तेरी शान में सजदा करें!
तेरे हुक्म का मौला गुलाम बनूँ!

सभी में ऐसी सदिच्छाएं जागृत हों।

monali ने कहा…

poem to khair mujh kam akal ko kitti hi samajh aayi bt wo shuru wali story bahut achhi h :)