कल शाम एक अरसे बाद मैंने एक गाना सुना: रिंग, रिंग, रिंगा.......! और वोही हुआ जिसके डर से एक अरसे से नहीं सुना था ये गाना! यादों का फ्लैशबैक! फिर डायरी उठायी और भीगे पन्नो में तलाशने लगा सुकून! हर एक मुक्तक, शेर, कविता, चुटकुला, किस्सा मुझे अतीत के भंवर में समाते चले गए! और जब होश आया तो विरह सेलिब्रेट करने का मूड बन चुका था! रौशनी को कमरे से बेदखल किया, बाहर की दुनिया को मुगलई अंदाज़ में कहा: तक्लिया, और कूलर चला के लैपटॉप ऑन किया! वी एल सी पर नुसरत फ़तेह अली खान और अताउल्लाह खान को सेट कर हैड फोन पहन लिया, ताकि कूलर ठंडा तो करे मगर डंडा ना करे!
बस फिर क्या था, ऑंखें मूँद लीं और कर दिया हवाले अपने आप को नुसरत साब के! और वो एक के बाद एक जुदाई की तान छेड़ते चले गए! 'सानू एक पल चैन ना आवे सजना तेरे विना', 'अँखियाँ उडीक दियां, दिल वाज्जा मारदा', 'अन्ख बेक़द्रा नाल लाई, लुक-लुक रोना पै गया', 'किसी दा यार ना विछरे', और 'यादां विछरे सजन दियां आयियाँ, अँखियाँ च मी वसदा'.....अताउल्लाह खान ने पहला अलाप भरा ही था: 'इधर ज़िन्दगी का जनाज़ा उठेगा, उधर ज़िन्दगी उनकी दुल्हन बनेगी....', कि दिल को ख्याल आया, इट्स टू नेगेटिव ए थोट टू एंटरटेन!!! और फिर पेट में छिपी अंतर आत्मा ने आवाज़ लगाई, अबे कुछ खाले!
टाईम देखा, साढ़े ग्यारह बज चुके थे! चार घंटे चला विरह का सेलिब्रेशन! फिर मैगी बनाई, छोले मसाला डाल के! (ट्राई करें) और अपना पर्सनल एंथम सुना: मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उडाता चला गया..... (धुंए को धुम्रपान से ना जोडें! आपको पता है कि मैं सिगरट, शराब, तम्बाकू, नॉन-वेज, आदि सभी से दूर हूँ, इसलिए फिर से नहीं बता रहा! लेकिन लड़की वाले फिर भी नोट करें!) खा-पी कर बर्तन मंजे और भरपूर नींद सोया! उन भीगे पन्नो में से तीन मुक्तक प्रस्तुत हैं! नदिया ने इन्हें बेहद पसंद किया था, आप बताइए कैसे लगे?
सीरत और सूरत
अगर जो प्यार करना है, किसी की सीरत से करिए!
अगर किसी पर मरना है, किसी की सीरत पर मरिये!!
बदलती है, पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!
रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
परवाने और मोम
परवाने आते हैं बहुत, शमा जो जलती है अगर!
देता है कोई साथ लेकिन देर तक मगर?
मैं मोम हूँ जो तेरे संग जलता हूँ, पिघलता हूँ!
दूंगा साथ तेरा ए सनम तेरी ज़ुल्फों के पकने तक!!
वक़्त और सागर
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता!
बुलाने पर कल तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
सभी चित्र: गूगल साभार
62 टिप्पणियां:
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
और फिर कभी कभी तो साहिल को ही डुबो देता हूँ
बहुत सुन्दर
sari rachnayen apni poornta dikhati hain aur dayree ke bheene panne bahut achhe lage
बहुत बढिया प्रस्तुति।
आपकी पोस्ट एक अनोखी ताजगी दे जाती है ! आपने दिल को न जाने कितने मोर्चे पर लगा रखा है !सम्भाल के रखिये ! लड़की वाले सब देख रहें है !कविता के बिम्ब बेहद आकर्षक हैं ! बधाई !
अगर जो प्यार करना है, किसी की सीरत से करिए!
अगर किसी पर मरना है, किसी की सीरत पर मरिये!!
बदलती है, पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!
रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
आशीष मियां.. ये बहुत ख़ूबसूरत है..
bahut badhiya....
चलिए मूड फ्रेश हुआ...
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
bagut achha likhte hain aap
दिल के जज्बातों को बहुत ही खूबसूरती से सिमेटा है आपने तीन नज़मों में .... बहुत खूब ...
आशीष जी ,
ते तुसीं पंजाबी हो ....पंजाबी गाने ओह वी मेरे पसंद दे .....नसीबां वाले हो जी ...सानुं ते सुणन दी फुर्सत ही नहीं मिलदी ....
नजमा वी वधिया ते भूमिका उस तों वी वधिया ......
ते तुहानूं जेह्ड़ी कविता समझ नहीं आई ...साहित्यिक पत्रिकावान विच देखिओं सारियां इहो जेहिआं ही कवितावां मिलान्गिया जेह्दियाँ समझ नहीं आन्दियाँ ....पर ओहना दे अर्थ बड़े गहरे हुँदै ने ......
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!bahut khoob shubhakamanayen
मंगली मैनेजर,
छा गये हो यार।
एक फ़ोलोअर होर वध गया है त्वाडा, फ़त्तू।
सोनल स्वागतम अत्र भवताम, वहियातम, आत्म्घातम संस्मारानाये चिट्ठ्म!!
संजय अनेजा, जी आया नु! पंछी उड़के आ गए ढोलना, तू वी आजा ढोलना, तैनू अँखियाँ उडीक दियां!!
जानकर खशी हुई की आप को भी नुसरत फ़तेह अली खान साहब के गीत पसंद है. सूफी संगीत को घर घर पहुँचने वाले उस महान गायक की तारीफ के लिए कोई भी शब्द शायद कम पड़ेंगे. आपकी पूरी प्रस्तुति बहुत ही सराहनीय रही है. बहुत बहुत शुभ-कामना और बधाई.
bahut badhiya likha hain aapne.
thank.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता!
बुलाने पर कल तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
वाह !!!!!!!!! क्या बात है.....
भई वाह ये हुई कम्पलीट पोस्ट. ग़ज़ल अच्छी,माहौल अच्छा, डिनर अच्छा, नींद अच्छी अब और क्या चाहिए ???जिसे !!!!!!आना होगा आही जाएगा. वैसे रेसिपी लिख ली है बाद में मत कहना बिना बताये मेरी वाली डिश बना डाली
विरह को सेलिब्रेट कर जिन्दगी को जीने की ख्वाहिश , यही जिन्दगी का फलसफा है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है।
good choice
like the narration
वाह वाह क्या सेलिब्रेट किया यार...मजा आ गया..विरह को ज्यादा सेलिब्रेट न करने की कितनी भी कोशिश करें, अक्सर सेलिब्रेट हो ही जाती है.. अब देखिए आपको पढ़ते पढ़ते हमने भी कुछ झण के लिए सेलिब्रेट कर लिया..क्या करें..जख्म देने वाले तो अपना तीर छोड़ते ही रहते हैं..पर हम दिल्ली वाले भी कई बार तंज कसने से बाज नहीं आते...तो आज .किसी को जवाब देते देते....पढ़िए और बताइए...
एक सुन्दर प्रस्तुति ....आपने अपने अनुभव हमारे साथ बाटे ....इसके लिए ..आभार
आशीष जी कमाल की बात की !
पंजाबी वैसे भी बड़ी मीठी जुबान है !
यह गाना तो नुसरत साहब की आवाज में
सुना करता हूँ अक्सर ! आभार !
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता!
बुलाने पर कल तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
बहुत खूब...बहुत अच्छी लगी ये रचना....और लिखने का अंदाज़ तो बहुत खूब है..
sare ke sare behad hi khoob surat,aisalagata haikivirah ke char ghante aapne apne inhi ahsaso ke sath bitaya--
अगर जो प्यार करना है, किसी की सीरत से करिए!
अगर किसी पर मरना है, किसी की सीरत पर मरिये!!
बदलती है, पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!
रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
bahut khoob
poonam
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
pasand aayii rachna.
सीरत सूरत पर हमेशा भारी रही है.
संगीता जी,
मेरा मान बढाने के लिए धन्यवाद! आपका हृदय से स्वागत है!
भई समीर,
तुम सीधे किधर से हो? हा हा हा....
खैर यू आर वैलकम!
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता!
बुलाने पर कल तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
.........................................
चाहने से क्या होता है ...होता तो वही है जो मंजूर-ए- खुदा होता है ..
वैसे वक़्त की रेत जब ज़ेहन पे जम जाती है तो बहुत सी यादें उस ज़मी हुई गर्द से बहार नहीं आ पाती .
बहुत खूबसूरत लिखते है आप ..दाद हाज़िर है क़ुबूल करें
ashish ji......jawaab nahi :)
अगर जो प्यार करना है, किसी की सीरत से करिए!
अगर किसी पर मरना है, किसी की सीरत पर मरिये!!
बदलती है, पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!
रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
.....bilkul sahi surat nahi seerat hi dikhi jaani chahiye.... aakhir mein aadmi ka kaam hi to dekha jaata hai..
sundar prastuti ke liye dhanyavaad......
आशीष जी, बहुत मज़ा आया आपकी ये पोस्ट पढ़ कर, एक अलग अंदाज में आपने भूमिका लिखी है, आपकी और भी रचनाएँ आज पढ़ी सभी अच्छी लगी, आपने मेरे ब्लॉग पर जो कमेन्ट किया वो भी बहुत ही मजेदार था, मुझे पढ़कर बहुत हंसी आई थी, धन्यवाद, शुभकामना!
पुखराज, इस फटीचर को मालामाल करने के लिए शुक्रिया! आपका स्वागत है!
निलेश माथुर, खैरमकदम!
मुफलिस बाउजी, जी आया नु!
Really great..........yaar. What more can I say?
waah kya baat hai.....
bahut sundar...
yun hi likhte rahein...
-----------------------------------
mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
नुसरत साहब के मामले आपकी और हमारी पसंद एक है, हमने भी न जाने कितनी रातें उन्हें सुन कर काली की हैं...आपकी रचनाएँ भी बहुत पसंद आयीं खास तौर पर अंतिम पंक्तियाँ:-
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ
बधाई स्वीकार करें
नीरज
बहुत अच्छा लिखते हो, एक अलग अंदाज़ के साथ
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
बहुत सुंदर आशीष जी सारी ही कविताएं पर उपर वाली कुछ ज्यादा भा गई ।
bahut bahut hi sundar rachna bani hai........aabhar
आशीष जी ! चमत्कारी ब्लाँग है आपका । रोचक ।
भाई हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये मगर पढ़ कर अच्छा लगा कि किस स्वचंदता से आपने अपने जीवन को जीते हुए यह आपबीती पोस्ट लिखी है........पोस्ट के साथ छंद तो कमाल के लगे......
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!अब तो लग रहा है कि आपके ब्लॉग पर नियमित हुए बिना काम चलेगा नहीं......!आभार
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता!
बुलाने पर कल तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
kya khoob likha hai wah hamesha sagar ki tarah hi rahiye fir sari duniya aapki hi hogi bahut badiya rachna
Beautiful thoughts manifested even more beautifully! Especially, the lines
"मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!"
good choice of songs
i also love them
मैं मोम हूँ जो तेरे संग जलता हूँ, पिघलता हूँ!
दूंगा साथ तेरा ए सनम तेरी ज़ुल्फों के पकने तक!!
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
एकदम वैसे ही हो जैसी मैं य मेरे जीवन के 'फंडे' या दर्शन.
प्यार का मर्म भी यही है और इसे सचमुच जीना भी यही है.
समय जिसे धूमिल कर दे सूरत के साथ वो कैसा प्यार,बाबा ? मोम की तरह संग जल जाना ही सच्चा प्यार है.
और सागर???
उसकी प्रवृति हम और तुम जैसे इंसानों की सी ही लगती है,साहिल लाख ना चाहे आ आ कर भिगोने से नही रुकते .प्यार है मुझे इसीलिए पिघलते मोम से ,सागर की लहरों तुम जैसे इंसानों से और ............
खुद अपने आप से.
सच.
क्या करूँ ऐसीच हूँ मैं भी.
ब्लॉग पर नही आ पाई ,समय नही मिला बाबा !
आ कर बिना डूब कर पढे कमेन्ट कर जाती ?
तुम दुखी होते ना उससे भी ज्यादा जितना मेरे ना आने पर हुए हो?
ऐसा अन्याय मैं तुम्हारे साथ कैसे कर सकती थी मेरे बच्चे!
स्कूल, एक्साम,रिज़ल्ट की तयारियां,दुसरे सौ सरकारी काम,'ऋतू' की सगाई,मेहमान.
उस पर सडी गर्मी .
बाकि ना आने का और कोई कारन नही . मैं एकदम स्वस्थ हूँ.
shaam dhal jaati hai par yaadein nahin!
you touched my heart with this post...keep writing!
वाह!सुन्दर प्रस्तुति।
are waah, bahut khoob...
first time read your blog, its amezing... keep it up.
regards
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे मैं रह-रह कर भिगोता हूँ!!
ख़ूबसूरत प्रस्तुति।
आपके लिखने का अंदाज बहुत अच्छा है ,
लिखते रहिये ..
प्रिय शैलेश,
स्वागत है.... लेकिन एक बात ध्यान रखना, मैं अब तुम्हारा टीचर नहीं जिसका अनुसरण किया जाये! मेरे किसी भी आचरण का अनुकरण करने से पहले अपने विवेक की कसौटी पर ज़रूर परखना....
खुश रहो....
मैं छू लूं बुलंदी को चाहे,
तू ही तो मेरा आधार है माँ!
तेरा बिम्ब है मेरी सीरत में,
तूने ही दिए विचार हैं माँ!
तू ही है भगवान मेरा,
तुझसे ही ये संसार है माँ!
सूरज को दिखाता दीपक हूँ,
फिर भी तेरा आभार है माँ!
बहुत खूब आशीष जी ,
माँ के प्रति हार्दिक समर्पण व्यक्त किया आपने
मेरी ढेर शुभकामनाएं
यारा, वो जो प्रोज़ में विरह सेलिब्रेशन वाला पंच था, मेरे को ज्यादा भाया. पोएट्री शायद इस वास्ते नहीं भाई होगी कि अपनी पोएट्री के आगे मैं किसी और वाली को घास भी नहीं डालता. तुम्हारे अंदर ह्यूमर का खज़ाना भरा पड़ा है, सुरंगें बनाओ, राह ढूंढो और उसे बाहर लाओ ताकि दुनिया वाले भी तो कहें--- ए स्टार इज़ बोर्न.
बची पोएट्री, मुझे पता, मानोगे नहीं बिना इस पर कुछ सुने. तेरे लुधियाना में एक संत ब्लागर बैठा है - डी. के.मुफलिस. उस की शरण में जा, सेवा कर, उसके बताए मुताबिक आसन लगा, मेहनत कर, फिर लोग कहेंगे---- ए शायर इज़ बोर्न दैट इज़ आदेश.
पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
jo do din mein dhal jaaye us naamurad par kya etbaar karna !
पता है कि लेट हू अब तक तो मूड सेट कर लिये होगे.. क्यू पापे भगडा वगडा सुनते है जब मूड ओफ़ होता है.. अताउल्लाह खान तो मूड को डूड बना देगे.. चलो उम्मीद है कि तुम मस्त मौला रहोगे.. तुम हो भी मस्त मौला... जीते रहो.. पीते रहो.. अरे हा, तुम पीते नही, सारी ;)
गजब भई...उम्दा प्रस्तुति!
आपकी क्षणिकाएं सच में कमाल के हैं ... इसी तरह सेलिब्रेट करते रहे, हमें और इसी तरह के रचनायें चाहिए ...
वाह आशीष जी क्या कहने..आपके ब्लॉग पर पहली बार आई मजा आ गया
पंकज, प्रांशु और दीनदयाल जी!
आल ऑफ़ यू आर वैलकम!
bahut hi badhiya likhte ho. really very impressive
good luck
अगर जो प्यार करना है, किसी की सीरत से करिए!
अगर किसी पर मरना है, किसी की सीरत पर मरिये!!
बदलती है, पिघलती है जो हर ढलते लम्हे के साथ!
रंग बदलती सूरत पर एतबार नहीं करिए!!
waah janaab waah !
भई ऊपर आपकी हर बात की तारीफ हुई, उन्ही सब चीज़ों को यहाँ रिपीट नहीं करना चाहता हूँ... पर
एक सच्ची बात जो कई बार मेरी अंतर आत्मा भी कहती है ....
" और फिर पेट में छिपी अंतर आत्मा ने आवाज़ लगाई, अबे कुछ खाले! "
सच आनन्द आ गया..
मनोज
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