तेरा मैं बता होता कैसे?
अपना भी कभी मैं हो ना सका!
मेरा ज़ोर नहीं पागल दिल पे,
उड़ चला जहाँ ले चली हवा!
करके वादा मुकर जाना,
ये ही तो है तासीर मेरी!
क्यूँ कर बैठी तू प्रेम धरा?
अब पछताए! गलती है तेरी!
कैसे रुक जाऊं तू मुझको बता!
मैं हूँ आदत से आवारा!
कैसे मैं बना लूं घर अपना?
मैं फिरता हूँ, मारा-मारा!
मैं भी था कभी तेरे जैसा!
बन बालू था नदिया में घुला!
शब्दों में पिरोना मुश्किल है,
कितना प्यार था उससे मिला!
लेकिन एक दिन बिना किसी वजह,
नदिया ने रुख को मोड़ लिया!
अवाक, स्तब्ध और दुखी!
विरह में तपता छोड़ दिया!
फिर वक़्त नहीं, सागर मैं बना! (१)
साहिल (नदिया) को पाने की थी आस!
खारे पानी से लबालब था!
फिर भी साहिल की थी प्यास!
उसने ना कभी मिलना चाहा,
मैं रह-रह करके भिगोता रहा!
वो रही जैसे चिकनी मिटटी,
मैं वापिस आकर रोता रहा!
दुःख के अथाह उस सागर में,
मैं रहा था लगातार डूब!
जितना गहरा जाता जाता,
ना छूती मुझे खुशियों की धूप!
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं!
यादें बाकी, बातें बाकी!
पर निकल आया उस गर्त से मैं!
रुकना मृत्यु का सूचक है,
अब परिचित हूँ इस अर्थ से मैं!
ज़िंदगी से कर लिया इश्क,
और ले ली फिर सूरज की शरण!
बन भाप पहुंचा अर्श पे मैं!
मुझको चमकाती हर एक किरण!
अब बादल बन के घूमूं मैं!
रिश्ता बूंदों से है प्यारा!
खुशियों का मैं सौदागर हूँ!
फिर भी बहती अश्रु-धारा!
डरता हूँ उल्फत करने से,
सच कहूं तो तुझसे मैं, ऐ ज़मीन!
तू नहीं करेगी मुझपे जफा!
होता ही नहीं अब मुझको यकीन!
टूट के बिखर ना जाऊं मैं,
पहले जैसा जो हुआ इस दफा!
इतिहास दोहराता है मैंने सुना,
मुकम्मल मुहब्बत, अधूरी वफ़ा! (२)
मेरे माजी की गवाही दे,
जलता-बुझता हर एक तारा!
मैं सबका कोई मेरा नहीं!
इसलिए मैं बादल बंजारा!
फिर भी तुझे अगर निभानी है,
मैं भी ता-उम्र निभाऊंगा!
बरसूँगा हर दम, मद्धम-मद्धम!
तेरी रूह में यूँ मिल जाऊंगा!
जैसे कभी घुला था नदिया में,
बन कर बालू धारा-धारा!
बस जाऊंगा तेरे तन-मन में!
फिर नहीं रहूँगा बंजारा!
हा हा हा..... (३)
(१)
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथो से निकल जाता!
बुलाने पर कभी तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ क्या करूं, मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे, मैं रह-रह के भिगोता हूँ!
(२)
इतिहास के शौकीनों के लिए भूगोल का पाठ:
नदिया: मुकम्मल मुहब्बत, अधूरी वफ़ा!
(इसी वाहियात चिट्ठे पर १ फरवरी, २०१० को प्रकाशित हुई)
(३)
ये हास्यताक्षर आपको यकीन दिलाने के लिए के आप मेरे ही चिट्ठे पर हैं!
71 टिप्पणियां:
बादल की व्यथा कथा बहुत खूबी से कही है....
भावों से लबालब रचना।
बहुत खूब दोस्त....
फिर भी तुझे अगर निभानी है,
मैं भी ता-उम्र निभाऊंगा!
बरसूँगा हर दम, मद्धम-मद्धम!
तेरी रूह में यूँ मिल जाऊंगा!
Vaah .. kuch bahut hi lajawaab chand hain ... maza aa gaya padh kar ... behatreen ..
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
Your Experiment is really touchable.
(sorry Hindi n/a)
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं!
bahut badiya bhaav hai poori kavita bahut khoobsoorat hai
वाह क्या बात है !!!!! मौसम आज कुछ बदल गया है. है ना !!!! इस बार किस पे दिल आया है??? बदली,बूंद धारा या कोई और ???
bahut hi sundar rachna. shabdon aur bhavon ko bahut hi acche se likh dala
सुन्दर अभिव्यक्ति है।
Very touching and imotional.I like
it very much. Thanks for this ...nice poem.
yar......... i m unable to write in hindi, vaise ummed h tu to samajh he jayega......
ye dil pagal nahi dewana h,
Ude ketna bhi aur kahi bhi,
har surat m un tak he jana h,
Vada kar ke mukarta tha har bar,
Par is bar tune he ass jagai h,
Galti h meri swekar,............
Par is bar dono he pachtayange
Mere agosh me simat kar dekh,
Asiayana khud he ban jayege,
Adat se awara h tu........
Par ab mera he dewana kahaye ga,
Us ret se aaj bhi rista purana h,
Tut-ta h har bar, par ghar mujhe ret se he banana h......
Avak, esitabh aur dukhi hu,
Par teri verah hi to jena ka bahana h ................
Tu ban sagar, badal ya ban kenara,
Bena mere tu h adhura aur aduhri h teri har asha...........
Deep jal kar bujh jayenge,mitti sukh jayege,
Balu ban ya ban bund, parro tale raunda jayega..........
Teri manjil hu m, mera sahil h tu,
Aj dono kenaro ko mil jana hoga,
Baras ya na baras, parwah nahi mujhe................
Ant m tujhi mujhme he samana hoga,
Banjara banaga jab bhi tu, tere banjaran ban-ne mujhe he ana hoga,
Tarif kare tu kese ki bhi,
Par aks unka he ubhar ata h,
बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर रचना है।बहुत बढिया!!
wah ek purush ki puri zindgani aur uski fitrat likh di. bahut acchha laga padh kar.
shukriya ise padhne ka maadyam banNe k liye.
aabhar.
किसी बादल ने अपने आप को और अपनी व्यथा को इस तरह व्यक्त नहीं किया जैसे इस बादल ने आपके ब्लॉग पर किया है...विलक्षण रचना...वाह...
नीरज
बहुत ही सुन्दर रचना...
भावपूर्ण.
हार्दिक आभार.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
Waah! bahut khub...
vivj2000.blogspot.com
...बहुत सुन्दर .... बेहद प्रसंशनीय, बधाई!!!
बेहद सुन्दर और धाराप्रवाह शब्दों में पिरोया हुआ गीत. बहुत बहुत बधाई. बहुत ही भावपूर्ण और मनभावन.
बहुत बढिया.....
VERY TOUCHABLE EXPERIMENT AND VERY NICE
gajab...Dr kumar vishwas ki yaad aa gayi...shuruyati panktiya padh ke.......bhta chha likha hain
sir....man mein rach bas gayi nazm..jitna kehoon kam hoga.!
पूरी कविता का जवाब नहीं.. लेकिन मुझे तो इन चार लाइनों ने आपका कायल बना दिया..
लेकिन एक दिन बिना किसी वजह,
नदिया ने रुख को मोड़ लिया!
अवाक, स्तब्ध और दुखी!
विरह में तपता छोड़ दिया!
रुकना मृत्यु का सूचक है,
अब परिचित हूँ इस अर्थ से मैं!
बहुत बढ़िया
बहुत बढिया
bahut badiya!! Badhai ho
फिर भी तुझे अगर निभानी है,
मैं भी ता-उम्र निभाऊंगा!
बरसूँगा हर दम, मद्धम-मद्धम!
तेरी रूह में यूँ मिल जाऊंगा!
भावपूर्ण ,मनभावन,सुन्दर,बहुत बढिया..
ये सारे शब्द कम है , इस रचना की तारीफ के लिए . निशब्द कर दिया आपने तो .
आप के जितना अच्छा तो हम नहीं लिख पते , पर फिर भी आपने ब्लॉग पर आ कर प्रोत्साहन दिया , उसके लिए आभार ...
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
gr8... the conversation between zaamin and badal is engaging...
badlo ke madhyam bnakar sundar bhavnao ki abhivykti ......
बहुत सुंदर भाव लिए कविता |मेरी बधाई स्वीकार
करें | पहली बार आपको अपने ब्लॉग पर देखा |मेरे
ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
आशा
रुकना मृत्यु का सूचक है,
अब परिचित हूँ इस अर्थ से मैं!
एक बेहतरीन रचना……………………और इन पंक्तियों मे तो पूरी रचना का सार ही आ गया।
अति प्रशंसनीय ।
बहुत बढ़िया लिखा आपने..बधाई.
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथो से निकल जाता!
बुलाने पर कभी तेरे मैं चाह कर भी ना आ पाता!
मगर मैं सागर हूँ क्या करूं, मेरी सीरत कुछ ऐसी है!
साहिल लाख नहीं चाहे, मैं रह-रह के भिगोता हूँ!
bahut khoob lagi aapki utar-chadao wali rachna ,har bhav mahak rahe hai bhini khushboo liye .main badi dhyaan se padhti rahi .
aap ki creativity kii main tahedil se taareef karta hoon.
bahut hi सुन्दर अभिव्यक्ति है।
सुंदर रचना के लिए बधाई
बॉस,
छा गये हो बरसने वाले बादल की तरह। देख रहा हूं कि अपने छुट्टी पर जाते ही जैसे ब्लाग जगत से ग्रहण हट जाता है। मंगली मैनेजर तक ने ऐसे टाईम में पोस्ट निकाली, जब हम थे नहीं। यार, हमपेशा होने का थोड़ा तो लिहाज रख लेते।
हा हा हा, ये हास्याक्षर इसलिये कि पता चले कि कमेंट आशीष के चिट्ठे पर ही हैं।
अगली बार कमेंट पंजाबी में मिलेंगे, प्यारे, तैयार रहना।
आपका ब्लाग वास्तव में ही काबिले तारीफ है !
आपकी एक -एक रचना को पड़ने वाला उनमे खुए बिना नही रह सकता है !
मेरे ब्लाग पर जो आपने मुझको सुझाव दिए है , उनके लिए शुक्रिया, पर गुरु जी मैं उस लड़की से आज तक बात नही कर सका हुँ, तो उस को मैं अपने ब्लाग का लिंक कैसे दूंगा !
बंजारा स्वरुप तो इंसानी है, सोहबत से बेचारे बादल भी बंजारे हो गए, बच कर रहना इन बंजारे बादलों से, कहीं भिगा कर हमें भी बंजारा न बना दें........................
भाव पूर्ण रचना पर बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
बल्ले आशीष जी तुहानू इस नज़्म लई बहुती आशीष साडे वलों .....
कमाल ते तुसीं करदे हो इतनी छोटी उम्र आवारा बद्दल वरगी ते इतनी वधिया रचना .....बल्ले .....बल्ले ....!!
मैं वि आ रही हाँ जालंदर ......
तुसीं केहड़ी जगह रहंदे हो जालंधर .....??
वाह! वाह! क्या बात है...एक अलग निराला अंदाज.
एक ही कविता में दिल के कितने पन्ने खोल दिए यार। कितनी दर्द को एकसाथ जगह दे दी। बेमिसाल दोस्त।
thanx.
god bless u
भई वाह...आपके आवारा बादल ने तो हमें भावों में भिगो डाला
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं!
bhaut sahi socha aur smajha apne
achha likha jeevan ke us dukhad pal ko sukhad me badlte huye
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं!
bhaut sahi socha aur smajha apne
achha likha jeevan ke us dukhad pal ko sukhad me badlte huye
आशीष भाई शुक्रिया कि आप हमारे यहां लड्डू खाने आए। आपकी इस कविता पर तो आपको इतनी सारी टिप्पणियां मिल गई हैं और वो बड़े बड़े धुरंधरों से कि कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही। फिर भी भाई आदत से मजबूर हूं सो कहे जा रहा हूं कि क्या आपको नहीं लगता कि इस कविता को और मांजने की जरूरत है अभी।
ए बंजारे आवारा बादल !
अपने मन की तूने कह ली
ठहर और देख मैं धरती,माँ, सखी, प्रियतमा सब,सब कुछ हूँ तेरी
तकती हूँ तेरी राह सदा
दूर से देख तुझे हरषाती हूँ
तू बिन मिले मुझसे
जब और कहीं चला जाता है
इर्ष्या,क्रोध से मैं जल जल जाती हूँ
पर फिर धीरज धर लेती हूँ
आएगा इक दिन मिलने मुझ से
मन को मैं बहला लेती हूँ.
संदेह ना कर मेरे प्यार पर
मैं तेरे लिये और तुझ-से ही जीती हूँ.
आ के मिल एक बार,बूँद बूँद तेरी अपनी आँखों और आंचल में भर लेती हूँ.
तू भी रहा क्या मेरे बिन .
रूठ रूठ कर जाता है
नन्हे प्यारे बच्चा -सा तू लौट मुझी तक आता है
नीरज बाऊ जी, आपका हृदय से स्वागत है!
खन्ना साब, जी आया नूं!
तनु, यू आर वैलकम!
दिनेश, खैरमकदम!
अनूप जोशी, खुशामदीद!
सीमा जी, इट इज़ इंडीड ए प्लेज़र टू सी यू विद योर किड!
आप सभी का आभार! और एक-एक के बदले दो-दो यूनिट प्यार!!! हा हा हा.....
और उत्साही जी, कविता का क्या मांजना.... अपनी बीवी की हुकुमत में बर्तन मान्जेंगे.... हा हा हा! बाऊ जी, मैं कोई कवि-ववि नहीं हूँ जो बारीकियों को समझूं.... बाकी सीखने को हमेशा तैयार हूँ, बताइये कब, कहाँ आना है, कलम-दवात लेके?
bahut khubsurat rachna......jiske har pankti me bhaw ke rass bhare pade hain........:)
god bless!
सुन्दर रचनाएं।
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं
बहुत अच्छा किया आशीश जी और ये पँक्तियाँ
फिर भी तुझे अगर निभानी है,
मैं भी ता-उम्र निभाऊंगा!
बरसूँगा हर दम, मद्धम-मद्धम!
तेरी रूह में यूँ मिल जाऊंगा! बहुत खूब बधाईेअच्छी रचना के लिये
ashish bhai...
deri se aane ke liye maafi chahta hoon....
janaab ye rachna aapki qaabile tareef hai...hamesha ki tarah hee...
qatl kar diya aapne...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति......
आज ही ये बंजारे बादल हमारे यहाँ आये हैं
उम्दा भाव.
कविता थोड़ी छोटी होती तो अधिक अच्छी हो सकती थी.
बहुत सुन्दर व मनभावन रचना..पसंद आई.
_____________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' देखने जरुर आइयेगा.
उसने ना कभी मिलना चाहा,मैं रह-रह करके भिगोता रहा!वो रही जैसे चिकनी मिटटी,मैं वापिस आकर रोता रहा!
सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut khoob .... aapke blog e to pakad ke rakh liya ... god bless you
-बहुत सुन्दर एवं प्रशंसनीय.
मुकेश सिन्हा तथा नीले चंद्रमा (ब्लू मून) का स्वागत!
आप सभी को साधुवाद!
मैकया थैंक यू!
खूबसूरत लिखा है आपने...
सुन्दर रचना ...बधाई!!!
बहुत ही गजब की रचना
सुन्दर भाव के साथ .....आभार
उसने ना कभी मिलना चाहा,
मैं रह-रह करके भिगोता रहा!
वो रही जैसे चिकनी मिटटी,
मैं वापिस आकर रोता रहा!
very touching lines !
vaidhanik chetaavni se madad mil gayee !...lol
एक दिन अचानक ख्याल आया,
कुछ और भी मेरे अपने हैं!
जिनको हैं मुझसे उम्मीदें,
जिनके मुझसे कुछ सपने हैं!
ati sunder bhavon se saji kavita
Bahut Bahut Badhai.
गुरु तो आप हो यार..
शब्दों से कैसे खेलते हो.. सबकुछ लिख दिया..
कुछ भी नहीं छोड़ा
और आखिर में ऐसे हस्ताक्षर किये हैं मानो लगता है हाँ यह मैं हूँ..
मज़ा आ गया भाई..
viorah ki vedna ka bahoot hi sundeqr varnan..........
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