भाईयों और सहेलियों,
ज़िंदगी की किचेन में मुहब्बत का पकवान फ़िर तैयार है! जी हां, आज हम आपको सिखायेंगे बैचलर पोहा!
इनग्रीडिएंट्स
ब्राऊन ब्रैड (5-6 स्लाईस)
प्याज़ (दो बारीक कटे हुए)
टमाटर (एक चोप्ड)
शिमला मिर्च (दो बारीक कटी हुई)
दही (पांच रुपये की)
करी पत्ता (कुछ नए पत्ते)
उड़द-चने की दाल (थोड़ी सी)
नमक (स्वादानुसार, कम ही रखें,अच्छा है)
देसी घी (एक रमचा/ चमचा)
लाल मिर्च, पिसा हुआ धनिया, हल्दी, गरम मसाला (सभी अंदाज़े से)
सौस, नमकीन और चीनी
बैचलर विधि
बैचलर पोहा बनाने के लिए आपको चाहिए सन्डे की एक उबाऊ दोपहर, मोबाईल पर हैडफोन की मदद से बजते गाने और पेट की आग! अपने शरीर को गुप्ताजी के सन्डे वाले स्पेशल छोले-भठूरे और लस्सी से जनित नींद की खुमारी से आज़ाद कर किचेन का रुख करें! कमरे से निकलने से पहले बुनियादी कपडे पहनना ना भूलें, कहीं आपको किसी की बुरी नज़र ना लगे!
सबसे पहले अपनी पहली सच्ची मुहब्बत को याद करते हुए प्याज़ को बारीक-बारीक काटें. साथ में अगर राहत फ़तेह अली खान साब का 'मैं जहाँ भी रहूँ, तेरी याद साथ है...' कानों में बज रहा हो तो विरह की पूरी फीलिंग आप एन्जॉय कर सकते हैं! आपके आंसूओं से आपके इश्क की मैय्यत को भी तस्सली मिलेगी और प्याज़ का भी मान रह जाएगा! अब अपने बॉस को याद करते हुए ब्राऊन ब्रैड के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें! लेकिन याद रहे इन्हें कुत्तों को नहीं खिलाना है, खुद खाना है! ये गाना आपके फोन में नहीं होगा, मन ही मन दोहरायें: 'एक रावण को राम ने मारा, एक रावण को मैं मारूंगा! तेरी लंका आज उजाड़ून्गा, जय जय श्री राम पुकारूँगा!' आप हल्का फील करेंगे! अब टमाटर और शिमला मिर्च को भी बारीक काट लें! ऐसा करते समय कोई भी गाना काम कर जाएगा, ध्यान रहे के टमाटर गला हुआ ना हो और कैप्सिकम (शिमला मिर्च की संस्कृत) में कीड़ा ना हो!
अब कढ़ाई में थोडा सा देसी घी डाल कर गैस जला दें. घी पिघलने पर इसमें प्याज़ रुपी श्रद्धा-सुमन अर्पित करें. अब इसे अकेला छोड़ कर कूलर में वाटर-लेवल चेक कर आयें. वापिस आने पर शिमला मिर्च भी कढ़ाई में डाल दें. अब जब तक 'तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकले', तब तक मंदी आंच पे प्याज़ और कैप्सिकम को घी की सरपरस्ती में इश्क फरमाने दीजिये. प्याज़ के भूरा और कैप्सिकम के अधकचरा (कृपया इसे कूड़े वाले कचरे से ना जोड़ें) होने पर उड़द-चने की दाल डाल दें. दोनों दालों के सुनहरा और करारा होने तक भूनें और फ़िर टमाटर की आहूति दें. ठीक इसी समय इस मिश्रण में करी-पत्ता डाल दें. सही स्वाद और सुगंध के लिए ज़रूरी है के करी-पत्ता माँगा हुआ ना हो. पर आपके बैचलर घोंसले में तो इसका पौधा है ही नहीं! घबराईये नहीं, इसका उपाय भी है हमारे पास. जब सामने वाली खिड़की में कौशल जी की बेटी रूपिका खड़ी हो, ठीक उसी समय उनकी क्यारी में लगे हुए पेड़ से बिना पूछे पूरी टहनी तोड़ लें. पूछना आपकी बैचलर इमेज के अगेंस्ट है! अब इस टहनी को रुपिका की तरफ ऐसे उठाएं मानो सचिन ने एक और शतक ठोक दिया हो! आगे क्या करना है ये रुपिका के रीऐक्शन पर निर्भर करता है!
इसके बाद कढाई में स्वादानुसार (कम हो तो सेहत के लिए बेहतर) नमक, लाल मिर्च, पिसा हुआ धनिया, हल्दी, गरम मसाला आदि डाल दें. अगर एमडीएच का छोले मसाला बचा हुआ है, तो वो भी आप इसमें डाल सकते हैं. अब वक़्त आ गया है दोस्तों के ब्रैड के रूखे-सूखे जीवन में प्रेम की तरलता का आगमन हो. लेकिन ये क्या? आप दही लाना तो भूल ही गए! कोई बात नहीं, टेंशन नहीं लेने का. पास ही के मायाराम हलवाई से पांच रुपये का दही ले आयें. दही को ब्रैड में आधा-अधूरा मिक्स कर दें. अब दही और ब्रैड के अमर-प्रेम को आज़माने के लिए उसे अग्नि-परीक्षा की आंच पर चढ़ा दीजिये! मेरा मतलब, कढ़ाई में!
इसके बाद कढाई में स्वादानुसार (कम हो तो सेहत के लिए बेहतर) नमक, लाल मिर्च, पिसा हुआ धनिया, हल्दी, गरम मसाला आदि डाल दें. अगर एमडीएच का छोले मसाला बचा हुआ है, तो वो भी आप इसमें डाल सकते हैं. अब वक़्त आ गया है दोस्तों के ब्रैड के रूखे-सूखे जीवन में प्रेम की तरलता का आगमन हो. लेकिन ये क्या? आप दही लाना तो भूल ही गए! कोई बात नहीं, टेंशन नहीं लेने का. पास ही के मायाराम हलवाई से पांच रुपये का दही ले आयें. दही को ब्रैड में आधा-अधूरा मिक्स कर दें. अब दही और ब्रैड के अमर-प्रेम को आज़माने के लिए उसे अग्नि-परीक्षा की आंच पर चढ़ा दीजिये! मेरा मतलब, कढ़ाई में!
इस मिली-जुली सरकार को मंदी आंच पर थोड़ी देर तक सिकने दें और फ़िर प्लेट में परोसें. गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी सौस, काफी सारी नमकीन (शाही मिक्सचर हो तो क्या बात है!) और ऊँट के मूंह में ज़ीरा के बराबर चीनी प्लेट में चारों तरफ बिखरा दें. बैचलर पोहा तैयार है. सन्डे की एकमात्र अच्छी बात, एचटी मैट्रीमोनियल्स के ऊपर रख कर खाएं. प्लेट को हिला-हिला कर आप अपनी जानकारी में इज़ाफा भी कर सकते हैं! और हां, नुसरत साब को गाने दीजिये: 'मस्त नज़रों से अल्ला, अल्ला बचाए..... हर बला सर पे आ जाए लेकिन, हुस्न वालों से अल्ला बचाए'!!!!!
चलते-चलते डायरी के भीगे पन्नों से कल की बातें:
चलते-चलते डायरी के भीगे पन्नों से कल की बातें:
आज के रंगीं महकते लम्हें
कल तेरा माज़ी बन जायेंगे,
पलट के देखोगी जब इनको तो
हम भी कहीं नज़र आयेंगे!
खुशियाँ बांटते प्यार लुटाते
हम तो हमेशा शाद रहेंगे,
दीद हुई जो आब तुम्हारी
अश्कों में भी मुस्कायेंगे!
कल तेरे आज को रोशन करना
हो तो बेहिचक बताना,
अपना क्या है हम मनमौजी
मुस्तकबिल में चले आयेंगे!
सूरत क्या है एक लम्हा है
कितना रोको बदल जायेगी,
सीरत पर हम आज मरें हैं
सीरत पर कल मिट जायेंगे!
शायर हूँ तुम सबका हिस्सा
मैं बन जाऊं ये लाज़िम है!
मेरा हिस्सा कोई बन जाए
ऐसे दिन कब आयेंगे?
हा हा हा.....
100 टिप्पणियां:
हा हा हा,
व्हाट अ डिश बनानी सिखाई है जी। लेकिन पंगा रुचिका वाली बात से है, सारे बंदे रुचिका को ही टहनी दिखायेंगे तो किसी का कम्पीटिशन तो टफ़ होगा ही, पेड़ का ठूंठ बन जायेगा।
बहुत खूब आशीष।
बड़ा ही ठाठदार बैचलरपन है ये :)
हा हा!! छा गये सिर्फ इतने में ही:
दही (पांच रुपये की)
:)
गजब बनेगा पोहा... :)
क्या कमाल का लेखन है आपका मज़ा आ गया बहुत बहुत बधाई
बड़ा ठाठदार बैचलरपन है !
रेसिपी पसंद आई. दुष्ट! इतना दिमाग पाया कहाँ से तुमने.
'जेंट्स के लिए 'भाइयों' और....बाकी 'सहेलियों'
नालायक! तुम्हारी नालायकी दूर से ही दिख रही है मुझे. शादी कर लो फिर 'सब बहिने' दिखने लगेगी. कभी कभी तो.....
इतनी हँसी ( नही रे बाबा मुस्कराई,सब जाग जाते तो????)सुबह सुहानी हो गई.वैसे करी पट्टे का पौधा बाज़ार से गमले सहित ले ही आओ.क्यों????
हा हा हा नही बताउंगी,समझदार को इशारा काफी है.
'एचटी मैट्रीमोनियल्स के ऊपर रख कर खाएं.'
हाय ! मेरा बच्चा!
'सूरत क्या है एक लम्हा है कितना रोको बदल जायेगी,सीरत पर हम आज मरें हैं सीरत पर कल मिट जायेंगे!' दार्शनिक आशीष.
'शायर हूँ तुम सबका हिस्सा मैं बन जाऊं ये लाज़िम है!मेरा हिस्सा कोई बन जाएऐसे दिन कब आयेंगे?'
आएगा आएगा. ये है 'बेचलर आशीष' जिसके लिए शुभकामनाएं और.......अपने अंकल से मिल लो बेटा एक बार
हा हा हा.....
काम हो इतने सारे तो,
मियां 'मजाल' कैसे निभाएँगे ?
recipe पढेंगे या कविता,
पोहे बनाएंगे, या खाएंगे ?!
.... fundo !
kya baat hai....taste aa gaya!!
वाह भाई वाह...
मैं फोटो देख कर सोच ही रहा था की ये फोटो लाख टके का है, (मैट्रिमोनियाल पन्ने पर बिछा हुआ बैचलर डिश)
मजा आ गया. सचमुच शानदार रेसिपी है. हम तो यही कहेंगे आशीष - सन्डे मुबारकबाद !!
सूरत क्या है एक लम्हा है कितना रोको बदल जायेगी, सीरत पर हम आज मरें हैंसीरत पर कल मिट जायेंगे!
अबस वो समझ ले ये बात..... लिखते रहो, गाते रहो, खाते रहो.
पोहा बनाने से खाने तक ही हिदायत ....बहुत बढ़िया ...
वाह क्या डिश है ..
वाह जी ! keyboard तोडू किस्म की रचना है ..पोहा इतनी भावनाओं के साथ बन सकता है ये तो कभी सोचा ही नहीं ... bread को बॉस समझ कर काटने का आईडिया विशेष पसंद आया. बैचलर जीवन बड़ा मस्त जीवन होता है पर ये मस्त लाइफ की हैप्पी एंडिंग हो ऐसी शुभकामना है
वाह वाह क्या रेसिपी है और क्या स्वाद जो कमी रह गयी थी वो आपकी कविता ने पूरी कर दी लाजवाब, और लज़ी4ज़ व्यंजन के लिये धन्यवाद।
भाई वाह...वाह ...छा गए गुरु ..........आपके लिखने का अंदाज़ बिलकुल निराला है ...और क्या खूब है .....मज़ा आ गया .......बहुत ही शानदार ......ऊपर की रेसिपी जितनी बढ़िया थी ....नीचे की शायरी भी उतनी ही बेहतरीन|
कभी फुर्सत में... हाँ भाई सन्डे को ही... हमारे यहाँ भी तशरीफ़ लायें -
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
बहुत बढ़िया रेसिपी बताई हैं आपने.
लेकिन, पोहा भी भला कभी अनपढ़, पढालिखा, बैचलर या स्नातक होता हैं क्या???
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
kaash aisa bachlorpan aaj bhi hota........to try maaar hi lete.......:D
sach me gajab ki recipee hai aapki.........shandaar, dil garden garden ho gaya........:)
kaash aisa bachlorpan aaj bhi hota........to try maaar hi lete.......:D
sach me gajab ki recipee hai aapki.........shandaar, dil garden garden ho gaya........:)
सूरत क्या है एक लम्हा है
कितना रोको बदल जायेगी,
सीरत पर हम आज मरें हैं
सीरत पर कल मिट जायेंगे...
वाह क्या डिश बनाई है ... भाई हम भी अपने ज़माने में आटा घोल कर उसके पूड़े बनाया करते थे ......
बातों ही बातों में बहुत कमाल की रचना भी गढ़ दी है आपने ... लाजवाब ...
kya dish banayi hai maza aa gaya.....
sach me aapki rachna mahine me ek baar hi sahi lekin uska koi jawab nahi...
bahut khub....
thodi hari mirch hoti to maza do guna ho jata....
जितना तो पोहा नहीं पका उससे ज्यादा तो दिमाग पक गया. हे भगवन जल्दी से इसका बेचलर पन दूर करो वर्ना जाने कितनी ऐसी ही डिश सीखनी पड़ेगी.जाने रुचिकाएं कैसे झेल रही होंगी !!!!!
........रेसिपी पसंद आई.
apki real batein aur lateefon ka mishran.
behatreen... sir ji, behatreen...
:)
ओ जी आशीष सा'ब !!!
बेचलेरिटी की हल्की हल्की आंच में पके
इस पोहा में, अधजले प्याज की हल्की सी कसक है
ओ रब्बा!! रूपिका के ही सदके, आप के कच्चे कोरे
कंवारे पोहे, जल्द से जल्द शादी की कडाही चढ़ जाएं.
आमीन!!!!
वैसे रचना में दम है, रूपिका से ज्यादा, हा हा!!!
ghazab bhai....mazaa aa gaya is post mein to....
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
मनिशवा, तोहार स्वागत बा!
पुश्प प्रकाश, वैलकम!
मधुरेन्द्र मोहन पाण्डेय, खैरमकदम!
@ संजय बाऊ जी,
नमस्ते!
रूचिका नहीं रूपिका! कम्पीटीशन कितना भी टफ हो, जीतेगा आपका अनुज ही!
@ माँ सा,
घनी खम्मा!
सब कन्हैय्या की लीला है! नटखट कहीं का!
@ चन्द्र कुमार सोनी,
बड़े भाई, ये 'स्नातक' वाला बैचलर नहीं, 'कुंवारा' वाला बैचलर है!
@ रचना माँ,
चरण स्पर्श!
अच्छा अपना काम भगवन पर टाल दिया! 'रुचिकाएं कैसे झेल रही होंगी?' इसका उत्तर अताउल्लाह खान की जुबां में:
मेरी मौत परियों के झुरमुट में होगी,
जनाज़ा हसीनों के काँधे पे होगा!
कफ़न मेरा होगा उन्ही का दुपट्टा,
बड़ी धूम से मेरी मैय्यत उठेगी!
आप सभी को कृष्ण का हैप्पी बर्थ डे मुबारक! और पोहा चखने और पसंद करने का शुक्रिया!
very good.
बेहतरीन रैसीपी!...मजा आ गया!जन्माष्टमी की बधाई...अनेको शुभ-कामनाएं!
पहले तो ये बताएं की रमचा क्या होता है , आंसुओं और आहों से भरा हुआ ये पोहा जब HT matrimonials पर रख कर खाया जाये तभी इसकी असली उपयोगिता है .
पांच रुपये का दही और करी पत्ता की टहनी काफी दिलचस्प रही.....वैसे आपने हमारे वादे की तारीफ किये बिना ही अपनी तारीफ निकलवा ली ....दाद है !!!
हा हा हा हा...
क्या बात है..!
हम तो कहते हैं बस कमाल है, धमाल है, बौवाल है, झपताल है...महागज़ब लिखा है आपने....हमारी तो हँसी ही नहीं रुक रही और यहाँ रात के १२ बज चुके हैं....हाँ नहीं तो!
हा हा हा ...
सच में...
आपका बहुत शुक्रिया...
Ashish ji........Mazaa aa gayaa.
kya Mast likha aur Dil lagaakar likha hai.
Dobara Abhi aur padhungaa. Pyaz kaatne vaali baat.....teri lanka aaj ujadungaa......jaisi pannktiyon ko padhte hi hansi chhootne lagti hai.
Is Sunder aur Ati prabhavi lekhan ke liye aapko Dhanaybaad aur Badhaai.
Mere blog par aapne jo SACHHI AUR ACHHI BAATEN likhi hain ....Uske liye bhi apko Dhanyabaad. Apka comment padhkar bahut khushi hui.
वाह आशीष जी,बहुत पसंद आया आपका बैचलर पोहा.व्यंगोक्तियों के क्या कहने... कलम तोड़ दी है आपने तो.चित्र तो जैसे सोने पर सुहागा है.
और हां मेरे विचार से अगर ये पोहा आप "किसी" के साथ शेयर करें तो आगे बहुत कुछ हो सकता है जैसे आप अपनी बैचलर की पदवी छोड़ किसी "खूंटी" से बंध जायें और मेरी तरह की विवाहित सुख(?)वाली रचनायें रचनी शुरु कर दें.मेरी शुभकामनायें
kamaal ka likhte hain aap
wah wah......
वीकेंड रेसिपी सीखने तो आना ही था मुझे भी....जबरदस्त सिखाया है आपने...महाराज ये करी पत्ता बड़ा दुर्लभ हो गया है, यहाँ तो पास पड़ोस क्या दूर दूर तक कोई पेड़/पौधा/गमला नहीं है...इसका कोई उपाय :)
और यहाँ दही भी नहीं देता कोई आठ से कम की...बड़े टंटे हैं पोहा बनाने में.
और हाँ...
शायर हूँ तुम सबका हिस्सा
मैं बन जाऊं ये लाज़िम है!
मेरा हिस्सा कोई बन जाए
ऐसे दिन कब आयेंगे?
Simply too good :)
और एच टी maitrimonial तो बस....हेहेहे ... सन्डे मुबारक हो सरकार
आपके लिखने की स्टाइल पर तो हम फिदा हो गये
लेकिन किसी दिन हम ये पोहा बनायेंगे जरूर्
मैरिड बेचारा तो बैचलर से ज्यादा दयनीय होता है
@ मिसेज़ खन्ना,
दरअसल चमचे और रमचे में फर्क मुझे मालूम नहीं है. मेरा मतलब एक बड़े डंडे वाले बर्तन से है जिसे फ्राई करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हो. कहीं-कहीं पर इसे पौना भी कहते हैं शायद!
".....वैसे आपने हमारे वादे की तारीफ किये बिना ही अपनी तारीफ निकलवा ली ....दाद है !!!" माफ़ी चाहता हूँ, इसके मायने मैं नहीं समझा.
@ विजयप्रकाश जी,
आमीन!लिल्लाह! हाय.... मैं शर्म से लाल हुआ!!!
@ अविनाश,
भाई, करी पत्ते के लिए रुपिका का घर ढूंढो.
और दही के सम्बन्ध में यही कहूँगा के हालांकि के सरासर अत्याचार है, अंधेर है, असंवैधानिक है..... फ़िर भी हंस के सहो दोस्त. आठ का दही खरीदो, तीन के दही में चीनी डाल के खाओ (बाद में एज़ स्वीट डिश) ..... पोहा पांच के दही से ही बनेगा!
टंटे के लिए: "टंटा कटे, मिटे सब पीरा.... जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा'
ਰੱਬ ਨੇ ਤੁਹਾਨੂ ਅਨੋਖਾ ਹੁਨਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ .....ਏਹੋ ਜੇਹੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਖੇਡਦੇ ਹੋਏ ਕਿਸੇ ਰੋਂਦੇ ਨੂ ਹ੍ਸਾਨਾ ਭੀ ਬਹੁਤ ਵਾਦਾ ਹਾਨਾਰ੍ਮੰਦ ਹੁੰਦਾ ....
ਅਸੀਂ ਤੁਹਾਡੀ ਇਸ ਕਾਮਯਾਬੀ ਤੇ ਸਰਧਾ ਸੁਮਨ ਅਰਪਿਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਜੀ .....
ਮਸਤ ਨਜ਼ਰੋੰ ਸੇ ਅੱਲਾ ਬਚਾਏ ਤੁਝੇ ......
ਤੇ ਸਚ ਕੇਹਾ ...
ਆਜ ਦੇ ਇਹ ਹਸੀਨ ਲਮ੍ਹੇੰ
ਕਲ ਦੇ ਮਾਜੀ ਬਣ ਜਾਣਗੇ
ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਮੈਂ ਰਹੂਂ ਨ ਰਹੂਂ
ਮੇਰੇ ਏ ਅਲਫਾਜ਼ ਰਹਿ ਜਾਣਗੇ
ਲਖਾਂ ਅਸੀਸਾਂ .....!!
कितने ही बार ब्रेड का पोहा बनाया है खाया है किन्तु इतना स्वादिष्ट ,लज्जतदार पोहा कभी नहीं चखा जैसा की आशीष ने अपनी साडी खूबियों के साथ बनाया |
कुछ और भी सीख जाना बच्चूजी!क्योकि बाद में भी आपको ही बनाना है ?नहीं तो रुचिका सूचिका जो भी आवेगी वो कहेगी इतनी सारी माँ है ?कुछ भी नहीं सिखाया लाडले बेटे को ?
ashish
bhut kuchh hota hai jo insan kabliyt ke bavjood abhivykt nhi kr pata hai . lekin aapki ye post to is ksauti pr bhut khri utri hai . hlki fulki bat ko bhi itne rochk andaj me pathko ke samne prstut kiya hai vo kabile yareef hai .
poha bhut swadisht hai .best one .
jis trha subah ki sair sehat ke liye achchhi hai usi trha blogs ki sair dimagi khurak ke liye fufeed hai our isme koi burai nhi .aapki safgoi achchhi lgi .swagt hai .
jis trha subah ki sair sehat ke liye achchhi hoti hai usi trha blogs ki sair dimagi khurak ke liye mufeed hoti hai .hum sub sair krte hai . isme koi burai bhi nhi . aapki safgoi achchhi lgi .swagat hai
मामला क्या है कि अपन भी आजकल बैचलर(अकेले) जिंदगी की सजा काट रहे हैं। तो सोचा चलो यह रेसपी भी सीख लें,कुछ काम आएगी। नहीं तो अपने को तो बस एक ही तरह का पोहा बनाना आता है। पर आशीष जी बाकी सब तो ठीक है। ये 30 से ऊपर लोग टिपिया कर चले गए। किसी ने नोटिस ही नहीं किया या कि मेरी आंखें खराब हैं। भैया पोहा कहां है। क्या पोहा नहीं है इसलिए आप इसे बैचलर कह रहे हैं। और ये कढ़ाई में घी डालकर गैस कैसे जलाते हैं। हम तो गैस लाइटर से या फिर माचिस से ही जलाते हैं।
वैसे आपकी रेसेपी मजेदार है,किसी गृहशोभा में भेज दो तो कुछ इनाम भी मिल जाएगा।
एक सलाह और है इस पोस्ट की लिंक अपनी रुपिकाओं को भेज दें,सचमुच कोई न कोई तो आपकी पकाने की कला से प्रभावित हो ही जाएगी।
और भैया ये जो शुक्रिया सुनने पर जो शर्म आती है न,उसे बचाकर रखें,वक्त पर बहुत काम आएगी।
मैट्रीमोनियल्स पर रखकर बैचलर पोहा! अजब डिश की गजब कहानी
ही ही हा हा हा हा हा… …
आज इतवार है। आज ट्राई करूंगा :) लेकिन बड़े भैया जी ! रुपिका और उसका रिएक्शन कित्थे मिलेगा… स्वाद नही आया तो?
ये लाइन बहुत ही मजेदार लगी… पेट दुख गया हँसते हुए
"सबसे पहले अपनी पहली सच्ची मुहब्बत को याद करते हुए प्याज़ को बारीक-बारीक काटें."
ऐसे ही काटता था हमारा पार्टनर!! रोते हुए… उसी की याद दिला दी आपने…
"प्लेट को हिला-हिला कर आप अपनी जानकारी में इज़ाफा भी कर सकते हैं!"
ही ही हा हा हा हा हा…
बहुत बड़े कामेडियन हैं आप :) :)
आपको समझने वाले भी उसी लेवल के होते हैं… :P नही तो आजकल मजाक किसी की समझ में आता कहाँ है।
इस छोटे बैचलर को बड़े वाले बैचलर की रेसिपी बहुत मजेदार लगी। खायेंगे तब… जब आप बनायेंगे… बिना रूपिका जी के बगैर वो स्वाद नही आयेगा। :P
वाह आशीष जी,बहुत पसंद आया आपका बैचलर पोहा. कमाल की रेपसी है........बिना खाये ये जायका खाने के बाद क्या होगा?
पु पु पु पु /हा हा हा हा/
पु पु पु पु/हा हा हा हा/
पु पु पु पु/ हा हा हा हा/
पु पु पु पु /हा हा हा हा........
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
hahhahhhahahahhahah
mast hai........maza aa gaya...
bahut zor se bhukh lagi hai.....
jab tak bachelor hi raho sab paathakon ke liye acha hai.....hahaha
master ho jaoge to poha bhi bechlor nahi rahega........
हा हा ...दही पाँच रुपये की पढ कर हंसी आ गई ।कमाल का पोहा बनाया है । देखने में भी लजीज लग रहा है।
बहुत बढ़िया ...
aapke comment ke liye shukriya,banda prayaas karega,ek or rachna khidmat me pesh ki hai,samay nikal kar aaiyega jarur,,,
or haan pohe wali dish main bhi ghar par try karunga,,,dhanyawaad,,,BHARAT CHARAN
You managed to make me smile again..thanks
bhaaI poha kha ker ,maza aa gaya...aap ne kari patta magne ko kaha tha mera bad luck vo bhi aapki post read ker ke poha bana rahi thi...pata torte hi kahne lagi poha bana rahe ho kya ?
behad badiya..aap koun banega kitchen champion mei kyo nahi try kartey...!! chha gaye aap!
badhiya he ji.
हाहाहाहाहाहहाहाहाह क्या आशीष जबरदस्त पोहा खिलाया है यार....पढ़कर या हंसर दोहरा हो गया हूं....हाहाहाहाहहा.....यार अपना अपना हाथ तो पूरा ही तंग है कुछ बनाने के मामले में....चाय ..अगर बड़िया बन जाए तो क्या बात है...औऱ कुकर में चावल, पानी, हल्दी औऱ एमडीएच का मीट मसाला..डाल देता हूं पानी के साथ..ज्यादा पानी तो खिचड़ी वरना पुलाव समझ कर खा लेता हूं...पर पिछले तीन साल से वो भी नहीं बनाया...हाहाहाहा बेचलर का दर्द जानता हूं अच्छी तरह से....शादी भले ही न की हो..पर किचन की तरफ तो रुख कभी करता नहीं.....हाहाहाहाहहा..इसलिए ऐसी शानदार डिश बनाना नहीं सिखा.......
उस पर वो कमबख्त मेट्रोमोनियल पेज में से कोई दुल्निया नहीं निकली क्या?
वैसे मेरी पोस्ट में क्या समझ में नहीं आया.....?
bahut hi umdha lekhni :)
http://liberalflorence.blogspot.com/
बेचलर पोहा बनाने में इतनी मशक्कत, न बाबा न, इत्ता टाइम किसके पास, पांच रुपये दही पर अलग से, करी पत्ते के साथ की टहनी अगर भरी पड़ गई तो उसका कौन जिम्मेदार होगा.......... कूलर में वाटर लेवल चेक करने के पहले ओवर फ्लो हो रहा हो तो................
शानदार, लच्छेदार प्रस्तुति की जितनी भी तारीफ की जाये कम है.
हमारी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
शायर हूँ तुम सबका हिस्सा
मैं बन जाऊं ये लाज़िम है!
मेरा हिस्सा कोई बन जाए
ऐसे दिन कब आयेंगे?
क्यूँ अपनी आजादी खोना चाहते हो बच्चा ?
वैसे बैचलर पोहा (ब्रेड) अच्छा था ।
कूलर का लेवल चेक करके आयें.. हा हा हा
ऐसा लगता है मानो खाना खज़ाना चल रहा हो..
पत्नी को रेसिपी बता दी है/पढ़ा दी है. कल नाश्ते में "बेचलर पोहा" :)
मनोज खत्री
भारत स्वागत!
@ शोभना माँ,
नमस्ते!
आता है माँ. मैं तैयार हूँ.
@ उत्साही बाउजी,
नमस्ते!
आँखें खराब नहीं हैं आपकी! बल्कि बेहद पैनी हैं.... तभी तो लाईटर/ माचिस की कमी खली आपको!!! आपकी ये बात विस्मित करती है मुझे के आप कुछ भी पढ़ें.... आई मीन कुछ भी, गौर से पढ़ते हैं. रहा पोहा.... कहीं नहीं है. दरअसल ये ब्रैड से ही बनता है. और 'बैचलर' इसे इसलिए कहा गया है क्यूंकि ये 'बैचलर विधि' से बनाया गया है!
दोनों सलाहों के लिए हृदय से धन्यवाद!
@आशु,
:)
हां आशीष भाई अपन तो 'कुछ भी पढ़ते हैं' तो उसमें भी ढूंढ ही लेते हैं।
हिमाकत अच्छी है। लगे रहिए।
हां आशीष भाई अपन तो 'कुछ भी पढ़ते हैं' तो उसमें भी ढूंढ ही लेते हैं।
हिमाकत अच्छी है। लगे रहिए।
हमें भी बैचलर पोहा डिश बहुत पसंद आयी... लाजवाव डिश तैयार कर परोसने के लिए धन्यवाद
अरे भाई आशीष, कमाल दा लिखदे हो यार..........बैचलर वाले दिनां दी याद दिला दित्ती..........seriously ........तुहाडा सेन्से ऑफ़ हुमौर बड़ा चंगा है यार..........मशहूर वयंग्य लेखक 'शरद जोशी' की याद आ गयी...........कीप इट उप..
बहुत खूब लिखा है ............
शुभकामनाओं के साथ ...
प्रियंका राठौर
बहुत खूब लिखा है ............
शुभकामनाओं के साथ ...
प्रियंका राठौर
कमाल का पोहा बनाया है
देखने में भी लजीज ....मैट्रिमोनियाल पन्ने पर बिछा हुआ बैचलर पोहा ....हा हा हा हा!!
गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
आपका लिखने का तरीका बड़ा अच्छा है।
यह सबके लिए ही काम की पोस्ट है ।
अच्छा लगा पढ़कर ।
बढिया है ब्रदर! एकदम आशीष टाईप पोस्ट.. बिंदास..
Really very tasty recepie,must be very very good formarried or bachelor.Iliked youir style and approach very much.Keep writing.
yours,
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
वाकई कमाल की पोस्ट है पढकर मजा आ गया,धन्यवाद जी।
poha banana sikhane ke liye dhanyawad
kabhi khilane ke liye bhi bulaiye hum hamesha taiyaar hai.
appki kavita bahut acchi lagi.
सदके जावां इस बाचलर पोहे पर
का बात है बचवा मज़ा आयगा हो.............
वाह वाह क्या रेसिपी है
already so many comments....well interesting...
kafi achha laga ye aapki dish wali rachna ..........bdhai
मौजू ।
:)आशीष जी, आज मैने दो ब्लॉग देखे महफूज़ भाई और आपका. आप दोनों की ही अभिव्यक्ति जबरदस्त है कि आदमी अगर न भी चाहे तो भी खिलखिला उठे.आपको बहुत सारी बधाइयाँ. यह जबरदस्त कौशल और हुनर है आप इसी तरह लोगों की जिन्दगी को खुशियाँ से भर दें यही हमारी शुभकामनाये हैं.
रोशनी
ओ जी बाउजी स्वाद आ गया...दुनिया में शायद ही किसी ने इतनी मस्ती लेकर पोहा बनाया हो...तुसी ग्रेट हो जी...रेसिपी के साथ साथ आपकी पाक विधि भी लाजवाब है...
कमाल का लेखन...बल्ले बल्ले हो गयी है...
सूरत क्या है एक लम्हा है
कितना रोको बदल जायेगी,
सीरत पर हम आज मरें हैं
सीरत पर कल मिट जायेंगे!
... बहुत सुन्दर ... बढिया पोस्ट !!!
Yummy poha... N keep cooking lyk dis, wo din bhi dur nahi jab koi aapka ho jaye... :)
अरे वाह!
पढ़ते पढ़ते ही पेट भर गया।
अब जलदी शादी कर लीजिए।
पत्नी को यह पोहा बनाकर नहीं खिलाओगे क्या?
लिंक भेजने के लिए धन्यवाद।
आपका लिखने का स्टाइल मज़ेदार है।
आगे जब भी आप कुछ नया पोस्ट करते हैं तो हमे ई मेल द्वारा संदेश भेजिए।
अवश्य पढ़ेंगे और टिप्पणी भी करेंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ, बेंगळूरु
आशीष ! रचना ने सही कहा है ...दिमाग पका देते हो ! तुम्हारा बैचलरपना जल्दी जाये ! मैंने सोचा इस बार तो कविता जरुर अच्छी लगेगी ! कुछ लिखाही नही ! बहरहाल इस पोहे की खुशबु बड़ी तेजी से फ़ैल रही है ! इलाइची वाली बधाई
अभी तक मुंह में पानी आ रहा है ऐसी ल्गीज डिश
के लिए |क्या आप अकेले खाएंगे |हम लोगों को बंचित रखेंगे |रचना अच्छी लगी बधाई |
आशा
क्या बात है ।
really tasty poha.....sorry bachelor poha!
Bhai, poha bahut khaya hai, but bachelor poha jaisa sangeetmay, jaankariyukt, premvirah, poha kabhi nahi khaya.
Lajawab hai!
and thanks for your valuable comment
wah! kya likha hai aapne...! maza aa gaya! lagta hai aapko iska bahut zyada "experince" hai...! mujhe bhi nahi pata tha! aapki "conversation" padhkar mujhe bhi pata chal gaya!
aapka mere blog par swagat hai:-
http://alahindipoems.blogspot.com/
हम्म बैचलर पोहा बनाने की ये नयी विधि इस सन्डे हम भी ट्राई करेंगे. मगर करी पत्ते वाले सीन में कोई मिस्टर रूपक / रूपेश मिलेगा की नहीं इसमें डाऊट है. गर्ल्स हॉस्टल में तो और भी चांस नहीं है दीखने का. अब आप बताईये पोहा क्या खाक बनेगा.
साहिल, प्रिंस और वंदना स्वागत है!
@वंदना,
हारिये ना हिम्मत, बिसारिये ना राम!
आएगा, आएगा आएगा.... आएगा आने वाला! आएगाssssss!
क्या हुआ ? आप ने आगे कुछ नहीं लिखा?
एक सितंबर से वही बैचलर पोहा का प्रदर्शन?
कुछ ताजा खिलाइए।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
वाह क्या पोहा था
सच मे मजा आ गया शुक्रिया
अमर जीत एंड प्रशांत पुंडीर, यू आर वैलकम!
arre ashish bhai kahan hai aaj kal, mere blog par dikhte hi nahi....
aaj 29 taarikh hai iska matlab 2 din aur aapki post ke liye....
beshabri se intzaar hai.....
aur hamare aakhon ko bhi to thoda sukun dein....
आशीष
पोस्ट इतनी मजेदार है की इतनी पुरानी पोस्ट पर भी टिप्पणी दिए बिना नहीं रहा जाता | कहु क्या सब ने सब कुछ पहले ही कह दिया है | सब ने तो कहा है की अब ये बैचलर पोहा बनना छोड़ दो पर मै तो कहती हु की जितने दिन तक ये बैचलर पोहा बना सकते है बनाइये बाद में इस स्वाद के लिए तरसेंगे कल को उसके ड्राई फ्रूट वाले पोहे में भी वो स्वाद नहीं आएगा जो आज के आप के बैचलर पोहे से आएगा | वैसे आप ने ब्रेड से पोहे बनाने की याद दिला दी जब हम भी बैचलर थे तो कई बार बना कर खाया था आप ने याद दिलाया है तो एक बार फिर से बनाते है खाए हुए जमाना हो गया है |
99 comments hmmm.. Waise poha kafi tasty laga..
यार , पोस्ट का आकर्षण इतना था कि सारे कमेन्ट भी पढ़ गया :) गज़ब की युनिवर्सल पोस्ट, हर उम्र के , हर दौर के लोगों के लिए |
well tajmahal to nahi dikhte app phir mumtaj kaise samati hai apme......
well tajmahal to nahi dikhte app phir mumtaj kaise samati hai apme......
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