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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

प्रायश्चित


अंतर्मन की गहराई में, बीते कल की परछाई में,
खुद को खोजना चाहता हूँ, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!

इतने काले अंधियारे हैं के अँधियारा शरमा जाए!
फैला इतना घनघोर तमस के, उजियारा घबरा जाए!
पापों के घने उस जंगल में, खुद को भटका सा पाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!


कितनों के हक मारे मैंने, कितनों का किया मैंने शोषण!
फिर उनको मैं लतियाता था, करते थे वो फिर भी वंदन!
उन दलितों* की कुचली आहों के बोझ तले दब जाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!


कितनों को भूखा रख कर के, हर बार किया मैंने भोजन!
उनको रोटी भी नसीब नहीं, मेरे घर पकते थे व्यंजन!
उन भूखों की अतृप्त क्षुधा मैं शांत नहीं कर पाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!



जब ली थी मैंने प्रथम रिश्वत, ईमान बेच कर खाया था!
चुप करा दिया था मैंने उसे, दिल ने तो मुझे चेताया था!
करता वह कोलाहल अविरल मैं सहन नहीं कर पाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!
  
मरे हुए इकत्तीस बरस हुए मैंने बस पश्चाताप किया!
कितनों को सहलाया मैंने, कितनों ही ने मुझे माफ़ किया!
उनका शुक्रिया अदा करके औरों की खोज लग जाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!


ऐसा है अडिग विश्वास मेरा खोजूंगा उनको और खुद को!
उस मलिनता को मैं मिटा दूंगा कलुषित किया जिसने मन को!
जब मिल जायेंगे प्रभु और मैं उनमें विलीन हो जाता हूँ!
पर जब तक यह सब होता नहीं, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ!

अंतर्मन की गहराई में बीते कल की परछाई में!
लेकर के दिया आशाओं का, अंधियारा मिटाना चाहता हूँ!
आंसू पोंछना चाहता हूँ खुद को खोजना चाहता हूँ!
ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ! 

सभी चित्र:  गूगल से साभार 
* दलित शब्द को किसी जाति विशेष से ना जोड़ा जाए. मेरा तात्पर्य हर उस व्यक्ति से है जिसे आप जाने-अनजाने आहत करते हैं और वह निरीह और कमज़ोर होने के कारण विरोध नहीं कर पाता. 
 
यह प्रायश्चित मैंने 27.05.2004 को लिखा था. उस समय मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज (वेंकी) में पोलिटिकल साईंस पढ़ा करता था और खुद को 'इंटेलेकचुअल' समझता था! ये कविता उसी समझ की उपज है!!! अब मेरी आँखें खुल चुकी हैं! सारी भ्रांतियां मिट चुकीं हैं! यकीन नहीं होता तो ये लो मेरे हास्यताक्षर: हा हा हा!!! 

इस मसखरे (संज्ञा/विशेषण सौजन्य: मोनाली जौहरी, धन्यवाद सहित!)  की एक ही दुआ: 
मंदिर रहे ना रहे!
मस्जिद रहे ना रहे!
मुहब्बत कायम रहे!
चैन-ओ-अमन बना रहे! 
(बस ख़त्म हो गयी, दुआ है कोई सीरियल थोड़ी है, जो चलता रहे! हा हा हा!!!)  

97 टिप्‍पणियां:

Ashish (Ashu) ने कहा…

भाई कविता तो अच्छी हॆ पर भाई अगर इतनी गम्भीर कविता लिखोगे तो मसखरे की उपाधि सकंट मे आ सकती हॆ...

Udan Tashtari ने कहा…

2004 में भी सटीक उतार लेते थे मन के भाव रचना में.. :)

बहुत उम्दा रचना है.

Sunil Kumar ने कहा…

व्यंग का सहारा लेकर अपने बात कहना वह भी दिल की क्या बात है बधाई तो कम है ..

G Vishwanath ने कहा…

अरे वाह!

कितनी भी तारीफ़ करना चाहूँ मैं, शब्द ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!

जी विश्व्नाथ

बेनामी ने कहा…

waah ashish bhai, kavita to bahut hi behtareen hai.....
mahine ke pehle din ko sarthak kar dete hai aap.......
bhai maza aa gaya.....
aur aap to humein bhul hi gaye....
meri rachnaon ko aapka intzaar hai...

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

अपना हाल भी ऐसा ही कुछ है,
बस कहानी सबको न सुनाता हूँ,
मरना तो है ही आखिर में , इसलिए,
सब बातें मज़ाक में उड़ाता हूँ.

बढ़िया अभिव्यक्ति, लिखते रहिये ...

निर्मला कपिला ने कहा…

अंतर्मन की गहराई में बीते कल की परछाई में!
लेकर के दिया आशाओं का, अंधियारा मिटाना चाहता हूँ!
आंसू पोंछना चाहता हूँ खुद को खोजना चाहता हूँ!
ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ!
आज के आदमी के मन और कर्म की अच्छी व्याख्या की है अन्त मे सकारात्मक सोच कविता को कालजयी बना गयी बहुत ही अच्छी लगी रचना। बधाइ आपको।

Prem Farukhabadi ने कहा…

कितनों को भूखा रख कर के, हर बार किया मैंने भोजन!
उनको रोटी भी नसीब नहीं, मेरे घर पकते थे व्यंजन!
उन भूखों की अतृप्त क्षुधा मैं शांत नहीं कर पाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!

aapki soch ka bhav sarahneey hai. badhai!!

बेनामी ने कहा…

आशीष जी,

पहले तो लगा ही नहीं की आपके ब्लॉग में आकर ये पोस्ट पढ़ रहा हूँ शायद उम्मीद नहीं थी यहाँ इतना गंभीर भी कुछ मिल सकता है ..............पर दिल से कहता हूँ कविता बहुत ही अच्छी लगी मन को पवित्र करने वाली रचना है आपकी ........शुभकामनाये |

उम्मतें ने कहा…

कविता काफी लंबी है ! अच्छी भी है और उसके पीछे वाले ख्याल भी नेक हैं पर तारीफ करें भी तो कैसे ? तारीफ वाले शब्द जी विश्वनाथ साहब नें कहीं गुमा डाले हैं :)

और वैसे भी जब अपनी ही कविता पर आप खुद की आंखे खुल गयी हैं तो हम ज़्यादा कुछ कहनें का रिस्क क्यों लें :)

Jaan-Nisar ने कहा…

arre wah....aashish babu...kya likhte hain aap....for sure next chetan bhagat aap hi honge...."ab main rashan ki qataron main khada nazar aata hoon..." warna ulta seedha kuch bhi likhne ka mann toh mera bhi karta hai...khaas kar aap ka likha pad kar,

Jaan-Nisar ने कहा…

arre wah....aashish babu...kya likhte hain aap....for sure next chetan bhagat aap hi honge...."ab main rashan ki qataron main khada nazar aata hoon..." warna ulta seedha kuch bhi likhne ka mann toh mera bhi karta hai...khaas kar aap ka likha pad kar,

monali ने कहा…

Its tough to blv k aap aise bhi sochte the.. anyways, wonderful poem... cant say if i cud understand its depth or nt bt certainly i liked it... a lot.. thnk u :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

vandana gupta ने कहा…

तब भी लेखन मे गम्भीरता थी……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

दर्पण साह ने कहा…

ਵਧਿਯਾ ਜੀ ਵਧਿਯਾ !!! :)

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

ashish bhai...kya kahoon main...aap kamaal likhte ho and most importantly...the way you present it...is awesomme.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कितनों के हक मारे मैंने, कितनों का किया मैंने शोषण!
फिर उनको मैं लतियाता था, करते थे वो फिर भी वंदन!
उन दलितों* की कुचली आहों के बोझ तले दब जाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!

बहुत लाजवाब लिखा है आशीष भाई .... अगर इंसान स्वयं ही अपनी ग़लतियों का प्राशित कर सके तो फिर बात ही क्या है ... समाज सुधार जाएगा ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय आशीष जी
नमस्कार !
..........क्या खूब लिखा है

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया रचना है बधाई स्वीकारें।

Manoj K ने कहा…

ऊपर अच्छा स्कोर है... अभी आता हूँ कमेंट्री के लिए

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां है भाई !

रचना दीक्षित ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति. वाह!!!! यहाँ तो लगता है की ये मसखरा कभी मसखरा नहीं भी था. शायद तब दिमाग का इस्तेमाल भी करता होगा......लगता है मैंने सही पहचाना

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ग़ज़ब की पोस्ट... कविता तो ऐसे लगी जैसे कि इसमें जान है.....

आंसू पोंछना चाहता हूँ खुद को खोजना चाहता हूँ!
ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ


यह यह पंक्तियाँ तो ग़ज़ब की रहीं.... और उसके बाद का एक्सप्लेनेशन तो और भी ग़ज़ब का रहा....





बहुत सही पोस्ट....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

तारीफ़ भी कम पड़ रही है...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ईश्वर साक्ष्य,ईश्वर लक्ष्य,
मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं,
मेरे ब्लॉग पर आएं तो,
जो चाहें देना चाहता हूं।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

ਛੋਟੇ ਵੀਰ,
ਖੁਸ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਤੂ| ਜਿਹੋ ਜਿਆ ਮੈਂ ਸੋਚਦਾ ਸੀ, ਉਹੀ ਆਈਟਮ ਹੈ ਸਾਡਾ ਮਂਗਲੀ ਮੈਨੇਜਰ, ਅਪਨੀ ਪਸਂਦ ਗਲਤ ਨਹੀਂ ਸੀ|
ਬਹੁਤ ਪਿਆਰੇ ਜਜ੍ਬਾਤ, ਤੂ ਅਜ ਵੀ ਇਂਟਲੈਕ੍ਚੁਅਲ ਹੈ|
ਸਂਜਯ - (ਪਾਸ ਲੇਕਿਨ ਦੂਰ)

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना ! बधाई !

lori ने कहा…

"बैचलर पोहा"
के बाद एक गंभीर रचना बहुत प्यारी लगी
कभी भटकते भटकते " आवारगी" पर भी नज़र -ऐ--इनायत करें.

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ!

मंदिर रहे ना रहे!
मस्जिद रहे ना रहे!
मुहब्बत कायम रहे!
चैन-ओ-अमन बना रहे!
ईश्वर साक्ष्य रहे न रहे,
ईश्वर लक्ष्य रहे न रहे,
प्रायश्चित अपना सदा चलता रहे...........

भाई जी आपका प्रायश्चित और अमनचैन दोनों पसंद आया, इसीसे कुछ और जोड़ने की हिमाकत कर बैठा हूँ, कृपया अन्यथा न लें..........
(बस ख़त्म हो गयी, ये भी टिपण्णी है कोई सीरियल थोड़ी है, जो चलता रहे! हा हा हा!!!)
रचना पर हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Rohit Singh ने कहा…

हर मसखरे के भी दिल होता है। कुछ अरमां होते हैं, जो मचल मचल जाते हैं। फिल्म मेरा नाम जोकर के कुछ संवाद याद आ गए हैं। कालजयी फिल्म है। ठीक हम भी कालजयी। अपने से किए कई वादे निभाने की कोशिश एक साथ करते हैं। इसलिए अब वादे तो करने छोड़ दिए हैं।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

दर्पण साह, महेंद्र वर्मा खुशामदीद!
महफूज़ भाई और लोरी अली स्वागतम अत्र भवताम जीवनं प्रेमस्य च प्रयोगे प्रसारणं!

@ अली साहेब,
:)

@ अभय शर्मा,
:)

@ मोनाली,
शुक्रिया काहे का? ये तो मेरा फ़र्ज़ था!

@ वंदना जी,
तब भी नहीं तभी! :)

@ रचना माँ,
हां जी! सब वंस अपोन ए टाईम की बातें हैं!

@ ਸੰਜਯ ਬਾਉ ਜੀ,
ਆਈਟਮ! ਆਈਟਮ!! ਆਈਟਮ!!!
ਹਾ ਹਾ ਹਾ!!!

Archana writes ने कहा…

bahut shandar rachana likhi hai aapne....aashish ji....bt aap aaye bhi aur bina kuch kahe hi chal diye....kuch samjh nahi aaya....specially tab jab aapka blog hi experiment with love n life hai...anyway thank u so much...archana..

राजेश उत्‍साही ने कहा…

कहते हैं दिलीप कुमार ट्रेजडी के रोल करते करते खुद भी अवसाद में रहने लगे थे। डॉक्‍टरों ने उन्‍हें सलाह दी कि कुछ हल्‍के फुल्‍के रोल करिए। और उसी से राम और श्‍याम,गोपी जैसी कॉमेडी फिल्‍में आईं।
मुझे पता नहीं क्‍या आपको भी किसी ने ऐसी सलाह दी थी कि भैया ये दलित वलित की बात छोड़ो थोड़ी मसखरी भी करो। वरना बचोगे नहीं,समय से पहले ही चल बसोगे।
वैसे ये लोगों का भ्रम है कि मसखरे सोचते नहीं हैं। सच तो यह है आशीष भाई कि मसखरे ही सोचते हैं,बाकी लोग तो केवल उपदेश झाड़ते हैं। आपकी इस कविता पर मेरा इतना ही कहना है
मंदिर भी रहे!मस्जिद भी रहे!
शर्त यही है अपनी
मुहब्बत कायम रहे!
चैन-ओ-अमन बना रहे!

Prashant ने कहा…

ना जाने किस खोज में लगा है इंसा
ना जाने किस दौड़ में दौड़ रहा है वो
क्या अपने, क्या पराये, सबको पीछे छोड़
ना जाने क्या पाना चहाता है वो..

खुद को भूल कर कहीं
एक अनजानी सी मंजिल की ओर, दौड़ता नज़र आता है वो
आशा है, प्रार्थना है मेरी, खुद को जल्द खोज ले वो.....

खोज जारी रहे..................
प्रशांत.....

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

Manish ने कहा…

भई वाह!! मसखरापन अच्छा लगा... वैसे क्या और कैसे दूसरों को तकलीफ देते थे... या फिर दूसरे आपको देते थे...
अपनी समझ लगाने से अच्छा है कि आपसे ही समझ लिया जाय... दिल्ली बहुत बदमाश* सिटी है भाई..
बदमाश मतलब बादशाहत टाइप की... फुर्सत हो तो शेयरिंग कीजियेगा.. नहीं तो पक्का बता रहा हूँ.. मसखरेपन का दूसरा सैम्पल मैं पेश कर दूंगा... ही ही ही ... ये मेरा सिगनेचर है :P

Manoj K ने कहा…

भई कविता तो धासूं थी, या फिर कहूं intellectually satisfying.

ज़्यादा डिटेल तो नहीं जानता पर कविता बहुत ही अच्छी है, इस कविता के कई stanza ट्रेनिंग के दौरान काम में लूँगा.

मनोज

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ਹੂੰ.....ਹੁਣ ਤਕ ਤੇ ਪ੍ਰਾਸ਼ਚਿਤ ਹੋ ਚੁਕਿਆ ਹੋਵੇਗਾ ....?
ਵੈਸੇ ਗੱਲ ਕੇਹੜੀ ਸੀ ਓਹ ....?
ਕਿਸੇ ਨੂ ਧੋਖਾ ਤੇ ਨਹੀਂ ਸੀ ਦਿੱਤਾ .....?
ਹਾ....ਹਾ....ਹਾ...ਅੱਜ ਦੇ ਵਕ਼ਤ ;ਚ ਕੋਈ ਵੱਡੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਇਹ ...
ਵੈਸੇ ਤੁਹਾਡਾ ਪੋਹਾ ਸਦੀਆਂ ਤੈ ਨਹੀਂ ਭੁਲਣਾ .....

Unknown ने कहा…

hello dear
ur thoughts r excellent, really like it. mr. bachelor shaadi karo aur life ke sath jyada experiments mat karo......

Bharat Bhushan ने कहा…

रचनाएँ सुंदर हैं. लिखने का अच्छा रुचिकर अंदाज़ है. आपका ब्लॉग युवाओं के लिए है. दिल धड़काने वाला है. यहाँ कभी नहीं लौटूँगा.

Bharat Bhushan ने कहा…

रचनाएँ सुंदर हैं. लिखने का अच्छा रुचिकर अंदाज़ है. आपका ब्लॉग युवाओं के लिए है. दिल धड़काने वाला है. यहाँ कभी नहीं लौटूँगा.

Bharat Bhushan ने कहा…

रचनाएँ सुंदर हैं. लिखने का अच्छा रुचिकर अंदाज़ है आपका ब्लॉग युवाओं के लिए है. दिल धड़काने वाला है. यहाँ कभी नहीं लौटूँगा.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

अंतर्मन के भावों का बेहतरीन प्रस्तुतिकरण!

आशीष जी
जी हाँ आपने बिलकुल ठीक पहचाना मैं वही यशवन्त हूँ.लेकिन अब बिग बाज़ार customer service छोड़ कर खुद का छोटा सा business कर रहा हूँ.
आदरणीया आंटी जी को मेरी नमस्ते कहें.

यशवन्त

Hardeep Sandhu ने कहा…

ਜੇ ਆਪਾਂ ਇਹ ਦੁਆਂ ਇਓਂ ਕਰ ਲਈਏ ਤਾਂ ...
ਇਹ ਮਂਦਰ ਵੀ ਰਹੇ
ਤੇ ਮਸਜਿਦ ਵੀ ਰਹੇ
ਪਿਆਰ ਸਦਾ-ਸਦਾ ਰਹੇ
ਅਮਨ-ਚੈਨ ਬਣਾ ਰਹੇ
ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਖਿਆਲ ਹੈ ਅਸ਼ੀਸ਼ ਭਾਈ...
ਪੰਜਾਬੀ ਵੀ ਸੋਹਣੀ ਲਿਖਣੀ ਆ ਗਈ !
ਚਾਚੇ ਖੁਸ਼ੀਏ ਨੂੰ ਮਿਲਣਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਹੜੇ ਫੇਰਾ ਜਰੂਰ ਪਾਇਓ...ਪਤਾ ਤੁਸਾਂ ਨੂੰ ਹੁਣੇ ਦੱਸ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ...
http://punjabivehda.wordpres.com

Hardeep

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

तो भैया आशीष बात ये है कि आपका ये
पश्चाताप मुझे भी बहुत अच्छा लगा या यूँ कहूँ कि
दिल में उतर गया. काश ऐसा पश्चाताप असली गुनाहगार यानी नेता लोग करें तो अपना देश रहने के लिए बेहतर बन जाए.
आपकी भावनाएँ उम्दा हैं ....इसलिए आपकी
ये पोस्ट भी बेहद उम्दा है.
बधाई स्वीकार हो .......

मनोहर/ ਮਨੋਹਰ / MANOHAR ने कहा…

क्या रे! ये सब भी कर लेते हो!!!

Apanatva ने कहा…

are koun yakeen karega....poha banana seekhane wale aap hee hai........
bahut sunder.....
Aabhar !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

अंतर्मन की गहराई में बीते कल की परछाई में!
लेकर के दिया आशाओं का, अंधियारा मिटाना चाहता हूँ!
आंसू पोंछना चाहता हूँ खुद को खोजना चाहता हूँ!
ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ!
बहुत गंभीर रचना...और बेहतर संदेश समेटे हुए...
बहुत अच्छा लगा आपका लेखन...बधाई.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aapki likhi har panktiyoo ne mhjhe ise bar -bar padhne ko majbur kar diya.kya likhun -------shabd nahi samajh me aarahe,
behatreen,lazwaab bhut hi prabhav chod gai aapki yah post.
poonam

Vidushi ने कहा…

Very thoughtful, soulful n intellectual... gave new insights to me.. :)

Shubham Jain ने कहा…

२-३ पोस्ट एक साथ पढ़ी आपकी...बैचलर पोहा जितना मज़ेदार ये कविता उतनी ही गंभीर...

सुन्दर लेखन...

शुभकामनाये...

Bharat Bhushan ने कहा…

तीसरी कसम खा कर गया था कि आपके ब्लॉग पर नहीं लौटूँगा लेकिन यह कहने के लिए लौटा हूँ:
ज़रूर कुछ मस्तियाँ करी होंगी
यूँ ही कोई मसखरा नहीं होता

Roshani ने कहा…

आशीष जी,
नमस्कार.
इस बार मैने आपके हस्ताक्षर में गंभीरता देखी. बहुत ही अच्छी रचना .
और बात रही दुआ की... जब मनुष्य स्वयं को समझ जायेगा उस दिन हर जगह अमन चैन कायम रहेगा. अभी वह स्वयं को समझ नहीं पाया है इसलिए जात पात और मंदिर मस्जिद के झगड़े में पड़ा रहता है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

wah! behatarein prastuti :)

http://liberalflorence.blogspot.com/

Kailash Sharma ने कहा…

जब ली थी मैंने प्रथम रिश्वत, ईमान बेच कर खाया था!चुप करा दिया था मैंने उसे, दिल ने तो मुझे चेताया था!......
समसामयिक सन्दर्भ में बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई...

Dr Xitija Singh ने कहा…

bahut hi sunder rachna aashish ji ...

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

बड़ा मस्त लिखा हैं आपने.
बधाई एवं धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.CCOM

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दरता से व्‍यक्‍त किया है आपने हर शब्‍द को बिल्‍कुल सटीक, भावमय प्रस्‍तुति ।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

देखा, आपने इत्ता अच्छा लिखा कि सभी लोग बधाई देने आ गए....
________________

'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बढ़िया लिखा है ... सुन्दर रचना !

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बहुत प्रभावशाली रचना जो किसी का भी मनो-विश्लेषण के लिए काफी है...और हाँ एक बात और जो भी जन-पहचान का रिश्वत खोर दिखे उसे जरूर पढ़ा देना.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

bahut achhi abhivyakti....har bhaav ko samet liya aapne to...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आशीष जी
नमस्कार !

बहुत विलंब से पहुंचा हूं , लेकिन अच्छे विचार और भाव वाली आपकी रचना पढ़ कर आनन्द आ गया ।

वाकई आप की छवि मन में ऐसी गंभीर तो नहीं थी ।

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

वाणी गीत ने कहा…

प्रायश्चित का इरादा बदल गया है क्या ...!

RAJWANT RAJ ने कहा…

ashish ji
apne aap se jhooth mt boliye .itne emandar bhav aajkal hote hi kha hai .ye bhranti nhi aapke mn mstishk me baitha hua sach hai jo shbdbdh ho ke rchna ki shkl me pathko ke samne aaya hai. rchna ka shirshak bhi bhut jivnt hai .
apne vyktitv ka ek our pnna bkhoobi khola hai .bhut khoob .

RAJWANT RAJ ने कहा…

ashish ji
apne aap se jhooth mt boliye .itne emandar bhav aajkal hote hi kha hai .ye bhranti nhi aapke mn mstishk me baitha hua sach hai jo shbdbdh ho ke rchna ki shkl me pathko ke samne aaya hai. rchna ka shirshak bhi bhut jivnt hai .
apne vyktitv ka ek our pnna bkhoobi khola hai .bhut khoob .

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

Ashishji,
Kavita achchi aur prerak hai.Yashwant ne jaisi tarifen aapki ki vaisi hi aapki rachnayen hai.Yashwant ki mummy ko bred -poha wali post bhi pasand aayee.


krantiswar.blogspt.com
vidrohiswar.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

अंतर्मन की गहराई में, बीते कल की परछाई में,
खुद को खोजना चाहता हूँ, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ'
;इंसान' हो,मानवीय मूल्य भी जीवित हैं,मानवता भी है तुम में तभी इतना सोचते तो हो.एक दिन ढूंढ लोगे.तथागत को भी यूँ उद्वेलित किया था कुछ दृश्यों ने.जैसे तुम्हे कर रहे हैं कुछ सवाल,स्थितियां और अंतर्मन.भावुक व्यक्ति,संवेदनशील मन ...और इसी कारन जन्म हुआ इस रचना का.
अक्सर सोचती हूँ क्या रचनाये मात्र रचनाये मात्र होती है? हम,हमारा व्यक्तित्वा झांकता है इन आयनों में से और....मैं दूर से साफ़ देखती हूँ तुम्हे.जियो.
मैं?तेरी गर्ल फ्रेंड रे!
इंदु

कुमार संतोष ने कहा…

वाह सर जी क्या बात है ! बहुत ही बढ़िया कविता, एक दम जबरदस्त !

आज और कल हर एक पल

prasant pundir ने कहा…

bhai itne gmabhir bhi ho aap,

bachelor poha ke baad antarman kee gehrai.....

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

बहुत खुबसूरत ! कहने को शब्द कम पड़ रहे हैं !......बधाई !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आप सभी को हम सब की ओर से नवरात्र की ढेर सारी शुभ कामनाएं.

आदरणीया आंटी जी,अंकल जी और सभी को मेरी नमस्ते ज़रूर कहें.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बाउजी लाजवाब कर दित्ता...कमाल करते हो आशीष जी आप भी...

नीरज

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

यशवंत, कैलाश शर्मा स्वागतम अत्र भवताम जीवनं प्रेमस्य च प्रयोगे प्रसारणं!
शालिनी, प्रियंका.... लिल्लाह! खुशामदीद!
प्रशांत और जी एन शा खैरमकदम!
आशीष

Asha Joglekar ने कहा…

kamobesh sabki kahani kah dali bhaee. Hum sab khud ko hee dhoondanachhate hain par swartjh kee aisee dhund chee hai ki kuch soozta nahee. Sunder gambheer rachna.

बेनामी ने कहा…

aap bhi masha'Allaha.....
khushee dubbe

Priyanka Soni ने कहा…

कितना सुन्दर लिखा है आपने ! पढ़कर मन प्रसन्न हो गया.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अब तो नई वाली कविता पोस्ट कर दो आप...

____________________
'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut badhai dost

शोभना चौरे ने कहा…

बहुत ही सवेदनशील कविता |

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कृति, राहुल, उस्ताद जी, प्रियंका सोनी और अनीता..... वैलकम!
आशीष

Shruti Nagpal ने कहा…

jeevan hai har aas ka naam
jeevan hai har prayas ka naam

Ashish, aapne dil jeet liya :)

Dorothy ने कहा…

"अंतर्मन की गहराई में, बीते कल की परछाई में,
खुद को खोजना चाहता हूँ, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!
इतने काले अंधियारे हैं के अँधियारा शरमा जाए!
फैला इतना घनघोर तमस के, उजियारा घबरा जाए!
पापों के घने उस जंगल में, खुद को भटका सा पाता हूँ!"

अंतर्मन की गहराईयों में दबे हमारे किए अनकिए कृत्यों की वेदना और उससे उपजा अंत र्द्वंद हमें प्रायश्चित करने का अवसर देकर अंतत: एक बेहतर इसान बनने की प्रेरणा देता है.
संवेदनशील और मर्मस्पर्शी रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.

Anupama Tripathi ने कहा…

सहृदय मन की व्यथा का
खूबसूरत चित्रण -
अनेक शुभकामनाएं

नादान उम्मीदें ने कहा…

BHAI SAHAB,AAP ITNE SERIOUSLY LIKHTE HO YE PTA NAHI THA,,,
BAHARHAAL BADHAI,SUNDAR RACHNA K LIYE,,,,
MAIN BHI NAYI RACHNA LIKH RAHA HOON PURI HOTE HI POST KARUNGA,,,,


DHNYAWAAD

Coral ने कहा…

कविता तो बहुत अच्छी है ...

नादान उम्मीदें ने कहा…

bhai sahab namaskaar,,
post padhne ke liye aamantran de raha hu,,time mile to aaiyege

पंकज मिश्रा ने कहा…

बहुत उम्दा रचना

PAWAN VIJAY ने कहा…

क्या बात है गुरु?

बेनामी ने कहा…

आशीष जी,

जज़्बात....दिल से दिल तक पर मेरी नई पोस्ट जो आपके ज़िक्र से रोशन है....समय मिले तो ज़रूर पढिये.......गुज़ारिश है |

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

क्षितिजा परमार सिंह स्वागतम अत्र भवताम मासिकं जीवनं प्रेमस्य च प्रयोगे प्रसारणं.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

sangeeta ने कहा…

Very nice ..serious thoughts and great poetry as always.

The development in your poetry in these years has been really interesting...

ज्योति सिंह ने कहा…

अंतर्मन की गहराई में बीते कल की परछाई में!
लेकर के दिया आशाओं का, अंधियारा मिटाना चाहता हूँ!
आंसू पोंछना चाहता हूँ खुद को खोजना चाहता हूँ!
ईश्वर साक्ष्य ईश्वर लक्ष्य, मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ!
bahut hi sundar ,dhero badhai aapko ,bahut achchha likhte hai .

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

इतनी संजीदगी! अच्छा हुआ आपने हास्याताक्षर दे दिए वरना यकीन करने में मुश्किल होता.....