प्यारी सहेलियों और भाईयों,
आपको तो पता है चौड़े में झप ताल कराने का शौक़ पुराना है मेरा. सिवालखास में बैंक के बाहर अपनी धन्नो समेत नाली से मधुर आलिंगन का एक्सपेरिमेंट आपसे साझा किया था: द डर्टी पिक्चर में! इस पोस्ट में भी कुछ ऐसा शेयर कर रहा हूँ!
पिछले से पिछले सन्डे को मेरा संगीत का प्रैक्टिकल था. तैयारी भी थी. मुझसे ज़्यादा मेहनत की थी मेरी गुरु ने. और आज मौका था, ढ़पोरशंख को सुर में बजाने का. इससे पहले कि मेरा नंबर आता, सेंटर संचालिका के बैटर हाफ मुझसे मैट्रीमोनियल जी.के. बढ़ाने लगे. मैं राग यमन कल्याण की फीलिंग ले ही रहा था के वो विवादी स्वर की तरह पूछने लगे, "बेटा, क्या करते हैं आप? कहाँ रहते हैं? डेट ऑफ़ बर्थ क्या है? शर्मा हैं?"
क्या अंकल!! शरमाये तो हम पैदा होते समय भी नहीं! जबकि एकदम कोरे पैदा हुए थे, हमारी माँ भी लेडीज़ थी और डॉक्टर आंटी भी! पर हमें लगा के जिस कन्या के संबंध में वो मेरी हेलो-टेस्टिंग कर रहे थे वो सांवली-सलोनी एकदम जड़ाजड़ पढ़ी-लिखी और सबसे बड़ी बात सुर में थी! दूसरे, के इस शादियों वाले सीज़न में कितनी ही सहेलियों का मैं 'बेस्ट-फ्रैंड' भर रह गया!!! इसलिए हमने तमीज की कमीज पहन के कहा के हम बनिये हैं, और सोचा के शर्माने से क्या हासिल होगा? कोशिश कीजिये और आप भी देश के अच्छे नागरिक बनिये!
तब तक यमन का तीव्र मध्यम अपनी जगह से हट चुका था और कल्पनाओं का तानपुरा किसी एक सप्तक में ठहरने को तैयार ही नहीं था. बाहर करारी धूप खिल रही थी और मन-मयूर राग मल्हार के साथ बरखा में भीग रहा था.
ऐसी स्थिति में एक्ज़ामिनर ने मेरा नाम पुकारा और कहा: 'पेश किया जाये'!!! और मैंने फिर जो 'सा' लगाया, तो बाजा अलग, तबला अलग, सुर अलग, तान अलग, लय अलग, ताल अलग. वो तो अच्छा हुआ के मुझे ज़्यादा आता नहीं था, वरना मैं न जाने क्या-क्या अलग कर देता! खैर रायता मैंने इतना फैलाया के जान बचाने के लिए एक्ज़ामिनर बोले: कुछ और सुनाइये! फिर धरातल पर पैर टिका कर मैंने उन्हें राग बिहाग सुनाया और अपनी और उससे भी ज्यादा अपनी गुरु की मिट्टी पलीत होने से बचाई! और चलते-चलते पंजाबी में एक सूफ़ियाना कलाम भी चिपका ही दिया!
कुल मिलाके यूँ है के अब ढ़पोरशंख हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन में 'मध्यमा प्रथम' हो चुका है! और आगे चढ़ाई जारी है! चढ़ने पर चिपकाते हुए चलते हैं:
ऐसी स्थिति में एक्ज़ामिनर ने मेरा नाम पुकारा और कहा: 'पेश किया जाये'!!! और मैंने फिर जो 'सा' लगाया, तो बाजा अलग, तबला अलग, सुर अलग, तान अलग, लय अलग, ताल अलग. वो तो अच्छा हुआ के मुझे ज़्यादा आता नहीं था, वरना मैं न जाने क्या-क्या अलग कर देता! खैर रायता मैंने इतना फैलाया के जान बचाने के लिए एक्ज़ामिनर बोले: कुछ और सुनाइये! फिर धरातल पर पैर टिका कर मैंने उन्हें राग बिहाग सुनाया और अपनी और उससे भी ज्यादा अपनी गुरु की मिट्टी पलीत होने से बचाई! और चलते-चलते पंजाबी में एक सूफ़ियाना कलाम भी चिपका ही दिया!
बाजत रहिल ढ़पोरशंख!!! |
कुल मिलाके यूँ है के अब ढ़पोरशंख हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन में 'मध्यमा प्रथम' हो चुका है! और आगे चढ़ाई जारी है! चढ़ने पर चिपकाते हुए चलते हैं:
एड़ियाँ उचका के मैं,
क्यूँ न छू लूँ आसमां?
नाकाम भी रहा अगर,
कुछ कद मेरा बढ़ जाएगा!
न हुआ हासिल मुझे,
ग़र क़ामयाबी का मकां!
हाथ छोटा ही सही!
कोना-ए-तजुर्बा आएगा!
क्यूँ न खुल के साँस लूं?
जी भर के मैं जी लूं ज़रा!
कतरा-कतरा जीने में,
क्या मज़ा कोई आएगा?
और भैय्ये, और कुछ आये या ना आये मज़ा नहीं आया तो क्या आया? जब तक मुझे कुछ और नहीं सूझता, तब तक ज़िंदगी को सीरियसली नहीं सिंसियरली लीजिये! खुश रहिये!!!
शंख का फोटू: गूगल महाराज
17 टिप्पणियां:
सुरीला ढपोरशंख विवादी स्वरों से घिर गया. अच्छा लगा. परिणाम क्या निकला यह नहीं बताया गया. यमन कल्याण का तीव्र मध्यम हट गया था तो फिक्र न करना. यह विवाद का विषय है. कहते हैं कि कल्यण में 'म' भी लगता है. गाने में कष्ट हो रहा हो तो इसे माँ के रूप में भी गाया जा सकता है जब तक उसकी बहु न आ जाए.
बहुत से पंजाबी गायक सुफ़ियाना कलाम गाते हैं लेकिन शाम होते-होते वे सूफ़ी नहीं रह जाते. बोतलें खुल जाती हैं और मुर्गे उनकी थाली में नंगा नाच करने लगते हैं. काहे के सूफ़ी जी !!!
ढपोर ही सही शंख तो बजा!
बाऊ जी,
नमस्ते!
१. बच के निकल गया साफ़, एज़ युज़ुयल!!!
२. यू आर स्पोट ऑन! यमन में शुद्ध मध्यम भी प्रयुक्त होता है. आपने बताया, स्वाद आया.
३. सूफी हूँ या नहीं, पता नहीं! पर दारु के लिए ख़ालिस मुसलमान हूँ और मुर्गों के लिए शुद्ध जैनी!
जय हो ढ़पोरशंख!
आशीष
आपके सूफ़ी होने पर मुझे पूरा भरोसा है वरना अब तक कोई परिणाम आ गया होता :))
ताल पे ताल चढ़ा,
राग पे राग चढ़ा|
चढ़ाई जारी रहे|
बहुत अच्छा अन्दाज़.......बधाई...
ashish bhaai ghodi chadhne ka waqt aa gaya hai shaayad aapka...bulaana na bhoolna...!!
jay ho!!
वाह ढपोरशंखी जी ... इतनी सारी रागें गा लीं ... चलो जैसे भी गईं कम से कम नाम तो पता है ... मध्यमा प्रथान क्या अप जल्दी ही द्वितीय भी कर लेंगे ... हमारी शुभकामनाएं साथ हैं ...
एड़ियाँ उचका के मैं,
क्यूँ न छू लूँ आसमां?
नाकाम भी रहा अगर,
कुछ कद मेरा बढ़ जाएगा! ...
और बकोल आपके खाली कद ही नहीं ... आप आसमां भी छू लेंगे ...
अब टिप्पणी क्या लिखें जी!!!!
"उनको खुद का पता नहीं होता
जिनके घर आईना नहीं होता "
आप भी न, दिन पे दिन!!!
और लड़कियों को सहेली कहेंगे तो
'बेस्ट फ्रेंड' ही हो कर रह जायेंगे बस, इस बार तो हिम्मत करके देखिये
घोडी पर बैठने का भी अपना लुत्फ़ है!!!
(वैसे लिखते झक्कास हो!!!)
अब टिप्पणी क्या लिखें जी!!!!
"उनको खुद का पता नहीं होता
जिनके घर आईना नहीं होता "
आप भी न, दिन पे दिन!!!
और लड़कियों को सहेली कहेंगे तो
'बेस्ट फ्रेंड' ही हो कर रह जायेंगे बस, इस बार तो हिम्मत करके देखिये
घोडी पर बैठने का भी अपना लुत्फ़ है!!!
(वैसे लिखते झक्कास हो!!!)
बेस्ट फ्रेंड से अब कुछ आगे बढ़िए .... बढ़िया पोस्ट ....
हमें तो लगता था कि आप केवल गद्यमय हैं, आप तो संगीतमय निकले। बहुत बहुत बधाई हो इस उपलब्धि के लिये।
बड़े दिनों बाद इस शंख से कोई आवाज़ आई है ।
बड़े दिनों बाद इस शंख से कोई आवाज़ आई है ।
बड़े दिनों बाद इस शंख से कोई आवाज़ आई है ।
Bhai waah! Mujhe nahi lagta isse behtareen kavita maine is warsh padhi hai! NAman aapko! Likhte rahiye!
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