प्यारी सहेलियों और भाईयों,
पिछले से पिछले मंगल को एक अनअवॉयडेबल सोशल सिचुएशन के चलते मंदिर जाना पड़ा. जैसे ही सीढ़ियों से अन्दर बढ़ा-चढ़ा तो देखा हनुमान जी मुस्कुरा रहे हैं. मैंने भी शिष्टाचार वश हाथ जोड़ के अभिनन्दन किया. मन से मैल जाता रहा और महसूस हुआ के मैं बिना वजह ही उनसे जूझता हूँ जिन्हें जग पूजता है. फिर शैतान खोपड़ी ने नोटिस किया के मुझे कोई स्पेशल वैलकम नहीं मिला था. हनुमानजी के फेस पे परमानेंट स्माईल थी जो सबको बराबर मिल रही थी. हाँ, प्रसाद ज़रूर मुझे नहीं मिला. पापा पंडित की जगह डेप्युटेशन पर ट्यूसडे मनाता छोटा पंडित शायद मेरे चेहरे से भांप गया हो के ढपोरशंख अनकम्फर्टेबल है. जिनके साथ गया था मंदिर, उन्होंने कह कर प्रसाद दिलवाया और टीका लगवाया. हनुमानजी अब भी स्माईल कर रहे थे. मैंने मन ही मन बोल बच्चन किया: "आज खुश तो बहुत होंगे तुम.........."
जब दिल्ली में पढ़ा करता था, तो भी हर ट्यूसडे को हलवाई से बीस रुपये का गुलदाना खरीद के खुद को भोग लगा कर 'अहम् ब्रह्मास्मि' की फीलिंग ले लेता था. नौकरी इज़ नौकरी! में शायद आपने पढ़ा हो, जम्मू में डेप्युटेशन के दौरान, रघुनाथ मंदिर के आगे से सुबह-शाम निकलता. लेकिन न उसने बुलाया, न मैं गया! दरअसल, अपनी माँ के आगे मैं किसी को कुछ समझता नहीं था. फिर जिससे मिले नहीं, कभी बात नहीं की, जिसका वजूद केवल काल्पनिक कलेंडरों तक सीमित हो...........! खैर, अब माँ तो है नहीं! शायद कलेंडर वाले किसी भगवान ने ही मुझे मेरी औकात दिखाते हुए अर्श से फर्श पर पटक दिया हो. कमबख्त कोई खजूर भी नहीं मिला जिसमे अटक जाता! बैकयार्ड क्षतिग्रस्त है!
पता नहीं ये अंतिम कन्क्लुज़न है या नहीं, पर अंतरिम निष्कर्ष तो है ही. रिश्ते तकलीफ़ देते हैं. और भगवान के घर की तरह यहाँ भी देर तो हो सकती है, पर अंधेर नहीं! रिश्ते से याद आया, पिछली पोस्ट ढ़पोरशंख: द म्युज़िकल!!! में मैंने एक सांवली-सलोनी एकदम जड़ाजड़ पढ़ी-लिखी कन्या का ज़िक्र किया था. मैंने सोचा था के संगीत का ज्ञान रखने वाले उसके माता-पिता मेरे ढ़पोरगान को सुन अपना विचार बदल देंगे! लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा. उनके मुझमे इंटरेस्ट शो करने से स्वाद तो बहुत आया!!! लेकिन हवा, बादल, नदी और सोच को कोई बाँध पाया है कभी? कास्ट का लॉजिक न चलने पर मैंने 'मंगली' कार्ड खेला. और बच गया मंगली मैनेजर!!!
चलिए, चलते-चलते चिपका देते हैं एक नादान परिंदे के आवारा अरमान:
पिछले से पिछले मंगल को एक अनअवॉयडेबल सोशल सिचुएशन के चलते मंदिर जाना पड़ा. जैसे ही सीढ़ियों से अन्दर बढ़ा-चढ़ा तो देखा हनुमान जी मुस्कुरा रहे हैं. मैंने भी शिष्टाचार वश हाथ जोड़ के अभिनन्दन किया. मन से मैल जाता रहा और महसूस हुआ के मैं बिना वजह ही उनसे जूझता हूँ जिन्हें जग पूजता है. फिर शैतान खोपड़ी ने नोटिस किया के मुझे कोई स्पेशल वैलकम नहीं मिला था. हनुमानजी के फेस पे परमानेंट स्माईल थी जो सबको बराबर मिल रही थी. हाँ, प्रसाद ज़रूर मुझे नहीं मिला. पापा पंडित की जगह डेप्युटेशन पर ट्यूसडे मनाता छोटा पंडित शायद मेरे चेहरे से भांप गया हो के ढपोरशंख अनकम्फर्टेबल है. जिनके साथ गया था मंदिर, उन्होंने कह कर प्रसाद दिलवाया और टीका लगवाया. हनुमानजी अब भी स्माईल कर रहे थे. मैंने मन ही मन बोल बच्चन किया: "आज खुश तो बहुत होंगे तुम.........."
जब दिल्ली में पढ़ा करता था, तो भी हर ट्यूसडे को हलवाई से बीस रुपये का गुलदाना खरीद के खुद को भोग लगा कर 'अहम् ब्रह्मास्मि' की फीलिंग ले लेता था. नौकरी इज़ नौकरी! में शायद आपने पढ़ा हो, जम्मू में डेप्युटेशन के दौरान, रघुनाथ मंदिर के आगे से सुबह-शाम निकलता. लेकिन न उसने बुलाया, न मैं गया! दरअसल, अपनी माँ के आगे मैं किसी को कुछ समझता नहीं था. फिर जिससे मिले नहीं, कभी बात नहीं की, जिसका वजूद केवल काल्पनिक कलेंडरों तक सीमित हो...........! खैर, अब माँ तो है नहीं! शायद कलेंडर वाले किसी भगवान ने ही मुझे मेरी औकात दिखाते हुए अर्श से फर्श पर पटक दिया हो. कमबख्त कोई खजूर भी नहीं मिला जिसमे अटक जाता! बैकयार्ड क्षतिग्रस्त है!
पता नहीं ये अंतिम कन्क्लुज़न है या नहीं, पर अंतरिम निष्कर्ष तो है ही. रिश्ते तकलीफ़ देते हैं. और भगवान के घर की तरह यहाँ भी देर तो हो सकती है, पर अंधेर नहीं! रिश्ते से याद आया, पिछली पोस्ट ढ़पोरशंख: द म्युज़िकल!!! में मैंने एक सांवली-सलोनी एकदम जड़ाजड़ पढ़ी-लिखी कन्या का ज़िक्र किया था. मैंने सोचा था के संगीत का ज्ञान रखने वाले उसके माता-पिता मेरे ढ़पोरगान को सुन अपना विचार बदल देंगे! लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा. उनके मुझमे इंटरेस्ट शो करने से स्वाद तो बहुत आया!!! लेकिन हवा, बादल, नदी और सोच को कोई बाँध पाया है कभी? कास्ट का लॉजिक न चलने पर मैंने 'मंगली' कार्ड खेला. और बच गया मंगली मैनेजर!!!
चढ़ तो गए हैं, उतरेंगे कैसे? |
चलिए, चलते-चलते चिपका देते हैं एक नादान परिंदे के आवारा अरमान:
गिनकर के मिली हैं साँसें सखी,
इन्हें बाँध नहीं मैं पाऊंगा!
ग़र क़ैद किया तूने मुझको,
बेवक़्त फ़ना हो जाऊँगा!!
बेहद आसमां की हद नापूं,
इसके सिरों को छूकर आऊंगा!
तेरी आँखें ग़र रस्ता देखेंगीं,
फिर तो हद में रह जाऊंगा!!
मेरे ज़हन को लगे हैं ख़्वाब के पर,
हक़ीक़त में क्या जी पाऊंगा?
बन बंजारा बन-बन घूमूँगा,
कहीं ठहर, भला क्या पाऊंगा?
मेरी रूह भटकती जाने कहाँ?
वहाँ से ढूंढ के लाऊंगा!
जब चैन नहीं मुझे एक पल भी,
तुझको क्या सुकूं दे पाऊंगा?
मुझको है पता, नादान हूँ मैं!
फिर भी मैं घर ना आऊंगा!
हालात से हार ना मानूंगा,
आवारा अरमान सजाऊंगा!
मेरी ज़ीस्त भले लिखती रहे दगा,
मैं वफ़ा ही पढ़ता जाऊँगा!
जिस दिन पा गया अपनी मंज़िल,
इन्श'अल्लाह हँसता हुआ जाऊँगा!
उम्मीद ना रख कोई मुझसे तू,
खरा नहीं उतर पाऊंगा!
मुझको भी तुझसे कोई आस नहीं,
मैं भी कोई हक़ ना जताऊंगा!
अहसासों का क्यूँ कोई नाम रखें?
तेरी आँखें ग़र रस्ता देखेंगीं,
फिर तो हद में रह जाऊंगा!!
मेरे ज़हन को लगे हैं ख़्वाब के पर,
हक़ीक़त में क्या जी पाऊंगा?
बन बंजारा बन-बन घूमूँगा,
कहीं ठहर, भला क्या पाऊंगा?
मेरी रूह भटकती जाने कहाँ?
वहाँ से ढूंढ के लाऊंगा!
जब चैन नहीं मुझे एक पल भी,
तुझको क्या सुकूं दे पाऊंगा?
मुझको है पता, नादान हूँ मैं!
फिर भी मैं घर ना आऊंगा!
हालात से हार ना मानूंगा,
आवारा अरमान सजाऊंगा!
मेरी ज़ीस्त भले लिखती रहे दगा,
मैं वफ़ा ही पढ़ता जाऊँगा!
जिस दिन पा गया अपनी मंज़िल,
इन्श'अल्लाह हँसता हुआ जाऊँगा!
उम्मीद ना रख कोई मुझसे तू,
खरा नहीं उतर पाऊंगा!
मुझको भी तुझसे कोई आस नहीं,
मैं भी कोई हक़ ना जताऊंगा!
अहसासों का क्यूँ कोई नाम रखें?
रिश्ता नहीं निभा कोई पाऊंगा!
ज़रा पंख फैला, संग दोस्त उड़ें!
खुशियों के शहर ले जाऊँगा!
वैधानिक चेतावनी:
1. महंगाई और फ़ैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना करें!
2. पागलों के सींग नहीं होते!
3. बादल अर्ज़ी सबकी सुनते हैं, पर बरसते हैं अपनी मर्ज़ी से!
4. रिश्ते तकलीफ़ देते हैं!
5. धुम्रपान से कैंसर होता है!
पगले पिजन्स: गूगलशंख
16 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
रोचक!
बच तो गया लेकिन 'कब तक बचेगी कैरी पत्तों की आड़ में' ? :))
भगवान भी सोचते हैं कि कोई अनाप शनाप चीज न माँग ले, औरों से अलग...
मंगली कार्ड हर बार नहीं चलेगा बॉस :)
सो टेक केयर !
मिस यू टिल नेक्स्ट पोस्ट ।
योर भाई!
ashish bhai, yakeen maan na jitna intezaar mujhe shastri ji ki post ke baad aapki post ka rehta hai shaayad kisi aur ki post ka nahee rehtaa, main actually bahut light feel karta hoon aapki post ko padhne ke baad, aaj hee ki baat le lo....aaj mera mood kharaab thaa...kyuki meri new-born baby mujh se door hai apni dadi ke ghar aur mujhe uski boht yaad aa rahee thee.....aapki post padh ek dil halkaa ho gaya!!!
बेहद आसमां की हद नापूं,
इसके सिरों को छूकर आऊंगा!
तेरी आँखें ग़र रस्ता देखेंगीं,
फिर तो हद में रह जाऊंगा ...
ऊंचा उड़ने की चाह सभी कों होती है ... उनकी आँखें रस्ता देखेंगी तो हद में रह जाएँ ... ये तो कोई बात नहीं ... उनको प्रेरणा की तरह भी देखा जा सकता है ...
आप भी आप हैं आप जैसा ढपोरशंख दूसरा नहीं मिलने का :-)
!!!!
भाई मेरे हनुमान जी तो हंसते ही रहते हैं...परमानेंट ..उनका फलसपा है जो आए उसका भी भला..जो न आए उसका भी भला...वैसे भी हनुमान जी से तुम्हारा प्यार नजर आ रहा है पोस्ट में....भई आखिर उनकी तरह ही तो कुंवारे का टैग लगा हुआ है तुम पर....और मंगल को जन्मे मंगल करने वाले हनुमान जी के मंगल का ही आसार लेकर तुमने मंगलिक का कार्ड खेला....क्यों कैसी रही....जाओ न जाओ प्यार न होगा कम....जय बजरंग बली...हीहीहीहीहीहीही
आशीष जी!
इतनी हस्सास, प्यारी. हल्की और खूबसूरत पोस्ट को सलाम!!!!
और बाद सलाम के आपकी इस पोस्ट जो कहती है :
"मेर बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है
मुझे संभाल कर रखना बिखर न जाऊं मै...." के एवज़
इतना अर्ज़ करना चाहूंगी
कि "भाईजान! जब कोइ सच्ची मुच्ची कि, अष्टम भाव की मांगलिक आ गयी न
और आपके भी लगाम पड़ गयी न! तब आप जानेंगे,'कितना सुख है बंधन में....'"
शुक्रिया, इस प्यारी पोस्ट के लिए.
और
कभी इस गली भी आकर देखें चाँद निकला कि नहीं!
\\http://meourmeriaavaaragee.blogspot.in
पागलों के सींग नहीं होते!
मेरे भी नहीं है, किसी और के भी नहीं देखे हैं अब तक...
कहीं मैं गलत जगह पर तो नहीं हूं...
:)
अच्छी हल्की और ताजा दम कर देने वाली पोस्ट। आभार...
hmm. so hanuman ji bhi ap time dekhke muskura rahe hain. :-)
bach lo jab tak bach sakte ho..
अहसासों का क्यूँ कोई नाम रखें?
रिश्ता नहीं निभा कोई पाऊंगा!
ज़रा पंख फैला, संग दोस्त उड़ें!
खुशियों के शहर ले जाऊँगा!
bahut badhiya prastuti...
Ha ha..Bahot hi umda rachana! Maza aaya padhkar. khaskar ye kuch panktiyaan :
उम्मीद ना रख कोई मुझसे तू,
खरा नहीं उतर पाऊंगा!
मुझको भी तुझसे कोई आस नहीं,
मैं भी कोई हक़ ना जताऊंगा!
Aur Widhanik chetwaniyon ka jawab nahi!
सुन्दर-सुन्दर-सुदर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
:-)
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