केमिकल लोचे के शिकार.....

पहचान कौन???

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मैं कौन हूँ, मैं क्या कहूं? तुझमे भी तो शामिल हूँ मैं! तेरे बिन अधूरा हूँ! तुझसे ही तो कामिल हूँ मैं!

आपको पहले भी यहीं देखा है....!!!

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

अशेम्ड!!!

मर्दानगी???!!!

वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
उसका मन किया!
उसने किया!
ज़रूरी है!
ये साबित करता है!
औरत जागीर है उसकी!
और उसका जिस्म मिल्कियत है!
नोच कर खाने का!
उसका मन किया!
उसने किया!
क्यूँ?!
क्यूँकि वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
औरत त्रियाचरित्र है!
पतिता है!
ज़रूर उकसाया होगा!
कुछ इशारा किया होगा!
हँसी होगी, निर्लज्ज!
ऐसे में वो क्या करता?!
उसका मन किया!
उसने किया!
आखिर वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
वो दुनिया पे राज करता है!
औरत? बांदी है उसकी!
अपनी सत्ता की मोहर लगाने के लिए!
उसे उसकी जगह दिखाने के लिए!
अपनी मर्दानगी निभाने के लिए!
उसका मन किया!
उसने किया!
अरे! वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!
क्या? औरत की मर्ज़ी नहीं थी?!
वो ज़रूरी नहीं थी!
कहा ना! औरत जागीर है उसकी!
अपना बल दिखाने का!
उस पर हल चलाने का!
उसका मन किया!
उसने किया!
जानते हो न! वो मर्द है!
मर्ज़ी का मालिक है!


अमूमन ढ़पोरशंख अपनी दुनिया में रहता है! पर कुछ वाकये मजबूर करते हैं उसे अपने खोल से निकलने के लिए! जो आप पढ़ आये हैं वो सोच ज़िम्मेदार है औरतों के खिलाफ़ होने वाले तमाम अपराधों के लिए।
सोच बदलें, समाज बदलें!
छायाचित्र: श्रीमती गूगल

19 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या कहें...निःशब्द!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

कौन बदलेगा समाज...???
कैसे बदलेगी सोच...????

सार्थक,सशक्त और विचलित करती रचना....

अनु

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आक्रोश अभिव्यक्त हुआ है।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

ashish jee...aapne bahut hee sahi vishay chuna hai....maarmik

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुखद और मार्मिक स्थिति..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

एक दम सटीक लिखे हैं बॉस।
इस समय खोल से निकलना बहुत ज़रूरी था।


सादर

इमरान अंसारी ने कहा…

सच कहा आशीष भाई..........हर बात पर चुप नहीं बैठा जा सकता..........चुप रहने के ही नतीजे है ये सब.......

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/17.html

हर्षवर्धन ने कहा…

उम्दा और सार्थक प्रस्तुति । धन्यवाद

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kya kahun
main bhi MARD hoon !!
sharam aa rahi mujhe...

Meenu Khare ने कहा…

निःशब्द!!

Meenu Khare ने कहा…

निःशब्द!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

व्यंजनात्मक शैली में आक्रोश फूट रहा है ...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…


दिनांक 24/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरा आक्रोश व्यक्त किया है आपने शब्दों के द्वारा ... सार्थक ओर सामयिक ...

Onkar ने कहा…

बहुत सशक्त रचना

Saras ने कहा…

समाज भी हमसे है ...और उसमें पनपनेवाली सोच भी हमारी होनी चाहिए ...लेकिन दुःख तो इस बात का है ...की हम अपनीही उलझनों में इतने उलझे हैं ....की समाज की तरफ ...उसमें पनपती सोच की तरफ हमारा ध्यान तभी जाता है जब इस किस्म की कोई दिल देहला देने वाली वारदात होती है ...और हम समाज को ...उसमें छिपे उन दरिंदों को कोसकर ...अपनी व्यथा, चिढ, आक्रोश को शब्दों में कार्यान्वित कर ....अपना फ़र्ज़ पूरा कर देते हैं....ज़रुरत है उन नकाबपोशों को सामना खड़ा कर...उनकी असलियत उघाड़, उन्हें सज़ा देने की ...हम लोगों में से कितनों के पास इतना समय है ...अपने दिल पर हाथ रखकर कहिये .....लेकिन ख़ुशी हुई यह देखकर की आज का युवा वर्ग....इस काबिल है ...मानती हूँ जिम्मेदारियों का बोझ अभी उनपर नहीं पड़ा...घर गृहस्थी के झमेलों से वे दूर है ....लेकिन जागरूक तो हैं...क्या यह कम है.....यह तो पहला कदम है ...विकास की और...पतन से उत्थान की और ...आज यह पहला कदम उठ गया है ....तो रास्ते अपने आप बनते जायेंगे...कारवां बढ़ता जायेगा.....

lori ने कहा…

"hmmm!!!"
baat niklegi to phir.......
http://meourmeriaavaaragee.blogspot.in/2012/12/blog-post_25.html?showComment=1356447167236

Madan Mohan Saxena ने कहा…

speechless.