प्यारी सहेलियों और यारों,
नौ दो ग्यारह अथवा नाईन टू इलेवन होना तो सुना ही हैगा, लैट अस सी के ग्यारह दो तेरह या इलेवन टू थर्टीन का फ़ार्मूला क्या है:
इलेवन टू थर्टीन!!! |
बस! अब और नहीं!
तेरे सितम!
तेरी ज़ुल्मत!
तेरे फतवे!
तेरी हुकूमत!
बस! अब और नहीं!
सितम Tyranny, Injustice ज़ुल्मत Darkness
दिन में धुँधले उजाले!
शब-ए-ग़म की क़यामत!
पलकों में आँसू छुपाना!
हँसी की झूठी सजावट!
बस! अब और नहीं!
शब-ए-ग़म The night of sorrow
मुहब्बत के बहाने से!
तेरा वो लूटना अज़मत!
मेरे इनकार करने पर!
तेरी दलील-ए-रवायत!
बस! अब और नहीं!
अज़मत Glory, Honour दलील-ए-रवायत Argument based on tradition
दुनिया के आगे!
हक़ों की वक़ालत!
और सबसे पोशीदा!
तेरी वहशी हकीक़त!
बस! अब और नहीं!
पोशीदा Hidden, Covered वहशी Savage
महफ़िलों में झूठ की!
तेरी वो अदा-ए-शराफ़त!
लौट कर चारदीवारी में!
मुझसे बेवजह अदावत!
बस! अब और नहीं!
अदावत Animosity
वो स्याह सवेरे!
और तेरी मुझसे रक़ाबत!
वो रंजीदा रातों में!
मेरी किस्मत से शिकायत!
बस! अब और नहीं!
रक़ाबत Rivalry, Enmity रंजीदा Sad
तेरी नुख्ताचीनी!
और मेरी ख़ुशामद!
मेरे 'मैं' की हर लम्हा!
होती शहादत!
बस! अब और नहीं!
नुख्ताचीनी Criticize
नाश्ते में ताने!
खाने में लात-ओ-लानत!
राज़-ओ-नियाज़ नहीं!
बल्कि! तैश-ओ-हिक़ारत!
बस! अब और नहीं!
लात-ओ-लानत Physical and Verbal Abuse
राज़-ओ-नियाज़ Intimate conversation between the lover and beloved
तैश-ओ-हिक़ारत Recklessness and Disgrace
तैश-ओ-हिक़ारत Recklessness and Disgrace
सब्र का इम्तेहां इन्तेहा तक लेना!
फिर कहना मुझमे नहीं है सबाहत!
चर्ब-ज़बां! तेरे तेज़ नश्तर!
और किसे फिर कहते हैं सियासत?!
बस! अब और नहीं!
सबाहत Grace, Beauty चर्ब-ज़बां Sharp-tongued नश्तर Knife
क़ैद करके रखना!
और उदासी की तोहमत!
लाश का साँस लेना!
सय्याद तेरी रहमत!
बस! अब और नहीं!
सय्याद Hunter
ग़र्दिश-ए-क़फ़स में!
ग़म की ग़नीमत!
ख़ामोशी में मेरी!
तेरी हशमत की हिफाज़त!
बस! अब और नहीं!
ग़र्दिश Misfortune क़फ़स Cage ग़नीमत Abundance हशमत Dignity
लहू के घूँट पी कर रह जाना!
रूह को चाक करता तेरा तोहफ़ा-ए-ज़िल्लत!
बेसबब यूँही! तेरा तल्ख़ होना!
और मेरी चुप रह जाने की आदत!
बस! अब और नहीं!
चाक Torn ज़िल्लत Disgrace, Insult तल्ख़ Bitter
तेरी बंदगी बहुत करके देखी!
ख़ुद से करनी है अब थोड़ी सी उल्फ़त!
उड़ना तेरे पिंजर से पंख लगा के!
तेरे डाले दानों की मुझको हाजत!
बस! अब और नहीं!
उल्फ़त Affection हाजत Need
ढ़पोरशंख उवाच:
If you face a problem, solve it!
If you can't solve it, ignore it!
If you can't ignore it, escape!
If you can't escape, You have chosen to suffer! Enjoy!
This post is dedicated to the 'Free Spirit', who chooses not to suffer, but goes...........'Eleven Two Thirteen!!!'
क़फ़स-ओ-कबूतर: गूगल परिंदा
21 टिप्पणियां:
जो मिलता है, आनन्द उठाने या सहने को तैयार बैठे रहते हैं।
:)
बहुत मस्त लिखे हैं बॉस ।
H V D :)
badhiyaa
बस अब और नहीं .... बहुत कुछ कह दिया इसमें .... सुंदर अभिव्यक्ति ...
Beautiful! Just Wonderful Expression! ! बहुत सी ज़िंदगियों की सच्चाई को ज़ुबान दे दी आपने.... I wish they gather some courage, rise & deny to suffer..
~सादर!!!
ओर नहीं बस ओर नहीं ... गम के प्याले ओर नहीं ... क्या बात है आशीष जी ... हर छंद लाजवाब है ...
One heart...lost in the hurricane of time,
wondering around the garden of truth,
trying to clear the mind of all the problems,
and talking to herself,
striking the chord with the inner self,
seeing the light and warmth...
In this confusing atmosphere,
with mad people all around,
at times dreaming,
of a carefree world...
Standing next to the window
Seeking God for a space and time to turn the life's page to
And then she realises,
She needs to fly
Far away… where there are no clutches
Where there is no fence
Where she can just be ‘herself’… an individual that she is…and not a ‘type’the world wants her to be...
This is absolutely a wonderful post. I don't have words to express what I felt after reading this. Just got tears in my eyes. Thank you so much for sharing this!
एक कोकिला से दूसरी कोकिला तक - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत कहूब, सुन्दर अभिव्यक्ति.
और नहीं बस और नहीं.............
अनु
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
bahut suder likhte hain aap.....
पोस्ट पढ़ते पढ़ते जो याद आया था, वो दिगम्बर नासवा जी ने पहले ही कह दिया - ’और नहीं बस और नहीं’
बट, लेकिन, किन्तु सच्ची बात ये है कि इस नादानी को कैसे छुपाऊँ कि "इलेवन टू थर्टीन" का फ़ंडा समझ नहीं आया :( ब्रेकअप की डेट है या मेकअप की?
बैंकर बाऊ जी,
राम राम!
ना ब्रेकअप की डेट है, ना मेकअप की!
प्रचलित मुहावरा है, 'नौ दो ग्यारह' होना, यानी भाग जाना! और जब ये भागना किसी की लात-ओ-लानत से 'रिहा' होना हो, तो उसे 'ग्यारह दो तेरह' बोले तो 'इलेवन टू थर्टीन' कहते हैं!
(लगता है ढ़पोरशंख नाद की एक डिक्शनरी छपवानी पड़ेगी!!!)
रही बात आपकी नादानी की, जनाब इसी 'भुरभुरे' स्वाभाव के तो पंखे-कूलर-एसी हैंगे असीं!
'और नहीं बस और नहीं'..... काश आप फंडा जानते तो इलेवन टू थर्टीन हो जाते!
क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
ओहो, तो ये है अप्रचलित बैकग्राऊंड ऑफ़ दिस ’इलेवन टू थर्टीन’ की ? हुण समझ आया।
काके, डिक्शनरी छपवा ही लो और एक हस्ताक्षरित प्रति मुझ प्रेरक के लिये आरक्षित रख लो, पुराने चाहने वाले भी है और अर्ली बर्ड भी।
लास्ट लाईन भी सही है, फ़ंडा जानते तो हम भी ’इलेवन टू थर्टीन’ न हो जाते :)
:)
तेरी नुख्ताचीनी!
और मेरी ख़ुशामद!
मेरे 'मैं' की हर लम्हा!
होती शहादत!
बस! अब और नहीं!
स्वाभिमान की रक्षा तो जरुरी है ....
साभार !
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