मेरे जिस्म में तेरी रूह!
मेरी आँखों में तेरा नूर!
मेरे ज़हन में तेरा अक्स!
मेरी साँसों में तेरी खुशबू!
मेरी नींद में तेरे ख्व़ाब!
मेरी यादों में तेरे ख्याल!
लगता है…
तू मैं हो गई है…
मैं तू हो गया हूँ...
हम 'हम' हो गए हैं!!!
(२)
हम पंछियों की कौन ज़ात?
जिस पर बैठे वो अपनी शाख!
ज़रा पंख फैला ओ सोहणे यार!
आ उड़ चलिए अम्बर के पार!
जाने किस दम होवें शिकार!
हर दम हमदम अब करिये प्यार!
(३)
मैं बादल तू हवा बन जा!
जहाँ चाहे वहाँ मुझे लेकर जा!
तेरे इश्क में मैं जोगी बन झूमूँ!
कोई गीत मुहब्बत वाला गा!
कोई देखे हमें तो बस यही कहे:
बंजारन के संग बंजारा!
कोई महसूस करे तो ये सोचे:
आवारगी के संग आवारा!
(४)
पहले तुझमें रब दिखता था!
अब रब में भी तू दिखता है!
अब रब में भी तू दिखता है!
काफ़िर कह लो या दीवाना कहो!
अब सब में भी तू दिखता है!
यूँ बसा है तू मेरी आँखों में,
कोई देखे उनमें, तू दिखता है!
(५)
साँसों ने साँसों को छुआ!
हल्का-हल्का उन्स हुआ!
बाहर के चिराग बुझते गए!
भीतर कुछ रोशन सा हुआ!
फिर जिस्म जिस्म से मिला गले!
रूह ने रूह को रूह से छुआ!
(६)
उलझी ज़ुल्फें, सुलगी साँसें!
बोझिल आँखें, प्यारी बातें!
पंख लगा कर उड़ते लम्हे!
लगता है के तेरे साथ,
ये ज़िन्दगी यूँही गुज़र जाएगी!
(७)
तुझे ओढ़ लूँ मैं, तुझे ही बिछा लूँ!
तेरे अक्स को अपने दिल में बसा लूँ!
तुझे देख लूँ फिर किसी को ना देखूँ!
पलकों के चिल्मन में ऐसे छुपा लूँ!
बंदा-परवर मुझे माफ़ कर दे!
अगर बेख़ुदी में तुझे खुदा बना लूँ!
(८)
मस्जिद के रस्ते से गुज़रा था कल!
किसी ने काफ़िर कह कर पुकारा मुझे!
वो नमाज़ी पाँच वक़्त का था!
और मैं हर वक़्त पढ़ता हूँ तेरे इश्क़ की नमाज़!!
उसे जन्नत नसीब होगी क़यामत के रोज़!
मुझे तो तेरे दिल में एक कोना मिल जाए बस !
(९)
किसी शराब से नशा होता नहीं!
ए साक़ी! तेरी आँखों से पीने के बाद!
नज़रें मिला कर दिल चुराने वाले!
क्या मज़ा आता है मुझे सताने के बाद?
तेरे इश्क़ में मस्त रहता हूँ, चूर रहता हूँ!
आँखों में तेरा तसव्वुर और ज़हन में तेरी याद!
(१०)
सय्याद नहीं हूँ मैं हमदम!
जो उड़ते पंछी का शिकार करूँ!
या बंध जाऊँ दुनियावी झमेलों में!
या तुझको मैं गिरफ़्तार करूँ!
आ उड़ते जाएँ अर्श-ए-मुहब्बत पे!
तेरे संग मेराज-ए-इश्क़ पार करूँ!
(११)
निशान-ए-ज़ीस्त, मेरी साँसों पे अब बस तेरा नाम है!
तुझे चाहना, तुझे पाना बस मेरा काम है!
तू सुबह है मेरी, तू ही अब मेरी शाम है!
जो मुझको सबसे ख़ास, तू वो ही आम है!
मैं रिंद बेपरवाह, तू मेरा जाम है!
तू ही अल्लाह है अब, बस तू ही राम है!
(१२)
रास्ता देखूँ!
या रास्ता बन जाऊँ?
तू ना आये,
तो मैं तुझ तक आऊँ!
तेरी मैं हबीब!
परछाई बन जाऊँ!
रोशनी में,
तेरे संग घूमूँ!
अँधेरे में,
तुझमें मिल जाऊँ!
(१३)
जब दम मेरा निकले, तेरी बाहों में ए हमदम!
अब सब में भी तू दिखता है!
यूँ बसा है तू मेरी आँखों में,
कोई देखे उनमें, तू दिखता है!
(५)
साँसों ने साँसों को छुआ!
हल्का-हल्का उन्स हुआ!
बाहर के चिराग बुझते गए!
भीतर कुछ रोशन सा हुआ!
फिर जिस्म जिस्म से मिला गले!
रूह ने रूह को रूह से छुआ!
(६)
उलझी ज़ुल्फें, सुलगी साँसें!
बोझिल आँखें, प्यारी बातें!
पंख लगा कर उड़ते लम्हे!
लगता है के तेरे साथ,
ये ज़िन्दगी यूँही गुज़र जाएगी!
(७)
तुझे ओढ़ लूँ मैं, तुझे ही बिछा लूँ!
तेरे अक्स को अपने दिल में बसा लूँ!
तुझे देख लूँ फिर किसी को ना देखूँ!
पलकों के चिल्मन में ऐसे छुपा लूँ!
बंदा-परवर मुझे माफ़ कर दे!
अगर बेख़ुदी में तुझे खुदा बना लूँ!
(८)
मस्जिद के रस्ते से गुज़रा था कल!
किसी ने काफ़िर कह कर पुकारा मुझे!
वो नमाज़ी पाँच वक़्त का था!
और मैं हर वक़्त पढ़ता हूँ तेरे इश्क़ की नमाज़!!
उसे जन्नत नसीब होगी क़यामत के रोज़!
मुझे तो तेरे दिल में एक कोना मिल जाए बस !
(९)
किसी शराब से नशा होता नहीं!
ए साक़ी! तेरी आँखों से पीने के बाद!
नज़रें मिला कर दिल चुराने वाले!
क्या मज़ा आता है मुझे सताने के बाद?
तेरे इश्क़ में मस्त रहता हूँ, चूर रहता हूँ!
आँखों में तेरा तसव्वुर और ज़हन में तेरी याद!
(१०)
सय्याद नहीं हूँ मैं हमदम!
जो उड़ते पंछी का शिकार करूँ!
या बंध जाऊँ दुनियावी झमेलों में!
या तुझको मैं गिरफ़्तार करूँ!
आ उड़ते जाएँ अर्श-ए-मुहब्बत पे!
तेरे संग मेराज-ए-इश्क़ पार करूँ!
(११)
निशान-ए-ज़ीस्त, मेरी साँसों पे अब बस तेरा नाम है!
तुझे चाहना, तुझे पाना बस मेरा काम है!
तू सुबह है मेरी, तू ही अब मेरी शाम है!
जो मुझको सबसे ख़ास, तू वो ही आम है!
मैं रिंद बेपरवाह, तू मेरा जाम है!
तू ही अल्लाह है अब, बस तू ही राम है!
(१२)
रास्ता देखूँ!
या रास्ता बन जाऊँ?
तू ना आये,
तो मैं तुझ तक आऊँ!
तेरी मैं हबीब!
परछाई बन जाऊँ!
रोशनी में,
तेरे संग घूमूँ!
अँधेरे में,
तुझमें मिल जाऊँ!
(१३)
जब दम मेरा निकले, तेरी बाहों में ए हमदम!
तेरी धानी चुनर का मुझे कफ़न ओढ़ा देना!
तेरी बगिया के फूलों से, मेरी मय्यत सजा देना!
मेरे सुकून पर रफीक़, ज़रा भी सोज़ मत करना!
दुनिया को दिखाने को चंद आँसू बहा देना!
ये जो इश्क़ है अपना, रूहानी है, नूरानी है!
देख कर मेरी मिट्टी, एक बार मुस्कुरा देना!
ढ़पोरप्रश्न:
ढ़पोरप्रश्न:
लगता है प्रेम वैज्ञानिक ढ़पोरशंख को मुहब्बत की प्रयोगशाला में असंख्य असफल एक्सपेरिमेंट्स के बाद 'द एल्युसिव फ़ॉर्मूला ऑफ़ लव' मिल गया है! तो क्या लैब में ताला लगाने का वक़्त आ गया है? आप बताओ!!!
फोटू: गूगल प्रेमी
22 टिप्पणियां:
अरे, लैब की बदौलत यह सब हासिल हुआ है, उसमें काश कभी ताला न लगे..नये नये फार्मूले ईज़ाद करते चलो...
बेहतरीन..अद्भुत!!
लैब में काफ़ी गंभीर अनुसंधान हुआ है. जब तक स्वास्थ्य ठीक है सल्फ्यूरिक एसि़ड सूँघने आता रहूँगा. इसे तेरह की संख्या से कुछ आगे बढ़ाइये, आखिर प्रेम-प्यार का मामला है.
thr z lub in da air.. :P
मुहब्बत की प्रयोगशाला में ज़बरदस्त प्रयोग हुआ है .... अभी तो ताला खुला है .... प्रयोग जारी रखें :):)
बल्ले बल्ले वीर जी किथ्थे रहिंदे हो इनने दिन ....?
बड़ी अच्छी शायरी करदे हो जी ...सादे वर्गिआं लई उर्दू शब्दां दे अर्थ वि लिख दिन्दें .....:))
एक्सपैरिमैंट जारी रहे
लव का फार्मूला मिलने पर तो जनाब आप दुनिया का हर ताला तोड़ने में सक्षम हो जायेंगे क्योंकि ये एक ऐसी चाबी है जिस से जंग लगे दिलों के दरवाजे भी खुल जाते है। चिड़िया की मानें तो लैब में ताला लगाने का ख़याल भी ज़ेहन से निकाल दे ..
हा हा अब जब फार्मूला मिला तो अकेले काटने का सोच रहे हैं ... सब के साथ शेअर भी करें ... ताला न लगाएं ..
लगता है…
तू मैं हो गई है…
मैं तू हो गया हूँ...
हम 'हम' हो गए हैं ..
हम हो जाना ही तो जीवन जी लेना है ...
पहली बार आपका ब्लाग देखा है । आपकी कविताएं हट कर और विशिष्ट लगीं अच्छी और सच्ची ।
~अब कौन सा ख्वाब देखूँ ... एक तेरे ख्वाब को जीने के बाद....~
इतने ख़ूबसूरत एहसास से गुज़रना हरेक के नसीब में नहीं होता..! और फिर उसको बयाँ करने का अंदाज़.. हर किसी की क़लम में नहीं होता..!
लैब क्यों बंद करेंगे आप? वैसे भी महीने में एक ही दिन तो खुलती है, और हमारे जैसे कई लोगों को १३ तारीख़ का इंतज़ार रहता है !
~सादर!!!:)
प्रेम ग्रंथ का ककहरा भी पढ़ा होता तो सलाह देने वाले बनते भी।
एक्सप्रेशंस ऑफ़ लव पर वाह-वाह कुबूल की जाये।
ओहॊओ.........आज तो इश्क का खुमार नज़र आ रहा है........हरगिज़ लैब बंद नहीं होनी चाहिए मुहब्बत कभी न ख़त्म होने वाला खेल है हुज़ूर......नित नूतन । मुबारकबाद कबूल हो एक आशिक के इजाफे पर :-))))
एक से बढ़ कर एक लिखे हैं बॉस।
अगर लैब मे ताला लगा तो हड़ताल हो जाएगी जिसका कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए हड़ताल से बचिए .....तालबंदी नहीं होनी चाहिये।
समझे बॉस !
वाह! सुन्दर है!
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 17/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
पिछले कमेन्ट मे तारीख गलत ह गयी है;उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
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आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 18/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
वाह ,क्या खूब कहते हैं आप .....एक एक शेर
अपने आप में नायाब रंग बिखेरता सा.....
शुक्रिया....
isk ek ananat akash ki tarah hai.
Aap usme ud to rahe ho. Par uska or - chhod koyi nahi dhundh paayega.
Waise udaan kafi unchi thi saheb ....
और मैं हर वक़्त पढ़ता हूँ तेरे इश्क़ की नमाज़!!
उसे जन्नत नसीब होगी क़यामत के रोज़!
मुझे तो तेरे दिल में एक कोना मिल जाए बस !
महोब्बत में इन्सान किस कदर कहाँ तक कर गुजरने को तत्पर हो जाता है?वाकई लव एक्सप्रेशंस है जनाब,करते रहिये,लिखते रहिये,अपने अनुभवों से हमें भी वाकिफ कराते रहिये.
सुन्दर प्रस्तुति
और मैं हर वक़्त पढ़ता हूँ तेरे इश्क़ की नमाज़!!
उसे जन्नत नसीब होगी क़यामत के रोज़!
मुझे तो तेरे दिल में एक कोना मिल जाए बस !
महोब्बत में इन्सान किस कदर कहाँ तक कर गुजरने को तत्पर हो जाता है?वाकई लव एक्सप्रेशंस है जनाब,करते रहिये,लिखते रहिये,अपने अनुभवों से हमें भी वाकिफ कराते रहिये.
सुन्दर प्रस्तुति
"Be mine still, still make me thine
rather r no thine or mine..."
kabeer ka andaz e bayaan!
ashish ji ya kabeer!!!
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