प्यारी सहेलियों और यारों,
ट्वाईस अपोन ए टाईम इन द बचपन, एक पहेली का जवाब मुझे बेहद पसंद था। पहेली थी किसी ऐसी भारतीय भाषा का नाम जो उल्टा-सीधा कैसे भी बोलो, रहेगा एकदम सेम-टु-सेम! और उत्तर ओबवियस्ली था: मलयालम! और मुझे इस शब्द की आवाज़ अच्छी लगती थी और बोलने में आता था स्वाद! इनफैक्ट, आज के चीफ मिनिस्टर के पापा को भी मैंने पहले-पहल 'मलयालम सिंह' कहना शुरू किया था! जब इंग्रेजी आ गयी, तो उनका नाम मेरे लिए 'सॉफ्ट लायन' हो गया! तब मैं छोटा बच्चा था, लेकिन अब मैं बड़ा बच्चा हूँ, इसलिए मुलायम सिंह जी क्षमा करें!
खैर लेट्स कम बैक टु मलयालम थर्टीन! मलयालम इसलिए के केरल गया था और थर्टीन इसलिए के 'मेरी पोस्ट है, मैं कुछ भी टाईटल रखूँ'! जब जाना तय हुआ तो एकमात्र मलयाली (शॉर्ट में मल्लु) मित्र दीपक से संपर्क किया। आपको 'दीपक' नॉर्थ-इन्डियन सी फीलिंग दे रहा होगा! चलो इसे मल्लुफाई कर देते हैं! 'अलाथुर भरथन दीपक' मेरा ग्रेजुएशन के समय से फ्रैंड है। उसकी और इंटरनेट मलयाली की हैल्प से मैं मुंबई और कोयम्बतूर होता हुआ, पहुँच गया कोज्हिकोड।
एयरपोर्ट से निकला तो प्रीपेड टैक्सी वाले से जीके बढ़ाने लगा। उसने बात करते-करते बिल फाड़ दिया आठ सौ साठ रुपये का! जब मुझे महसूस हुआ के पैसे बटुए से जाने वाले हैं, मैंने सारी पंजाबी इकट्ठी की और धावा बोल दिया! वो खालसा पंथ से थोड़ा घबराया और मैं मौका पाते ही वहाँ से 'इलेवन टू थर्टीन' हो गया! जान बची सो आठ सौ साठ पाए!
थोड़ा पैदल चलके, शेयर्ड ऑटो में पाँच रुपये देकर हाईवे पहुँचा। ये भी इंटरेस्टिंग है। ऑटो वाले से हिंगलिश में अपने गंतव्य के बारे में पूछता रहा और वो मलहिंगलिश में बताता रहा! फिर जब हाईवे पर छोड़ा तो किराया पूछने पर उसने उंगलियाँ खोलके पंजा दिखाया और कुछ बोला तो मुझे ऐसा लगा पचास मांग रहा है! मन में इम्मिडियेटली ख़याल आया, मुए ऑटो वाले होते ही ठग हैं, चाहे दिल्ली के हों या केरल के! मैंने कहा, नो फिफ्टी, ओनली ट्वेंटी! तब वो बोला, 'फाईव रुपीज़'! पाँच रूपए के साथ मैंने उसे जी भर के असीसा! खैर पूछते-पाछते, देखते-भालते उन्नीस और बारह रुपये देकर मैं पहुँच गया, जहाँ मुझे जाना था: कुन्नामंगलम।
एक चीज़ जो मुझे बेहद लिबरेटिंग लगी वो थी लुंगी! लोगों को आर-पार की हवा लेते देख मुझे अपनी जींस में ज़्यादा गर्मी लगने लगी! होटल के कमरे में बड़े से तौलिये को बाँध के लुंगी की आज़ादी का अनुभव किया! स्वाद आ गया जी स्वाद!
सबसे बड़ी दिक्कत जो पेश आयी वो थी खाने की! केरल का मालाबार क्षेत्र विशिष्ट रूप से अपने सी-फूड के लिए विख्यात है। पर मेरे जैसे घनघोर वेजिटेरियन के लिए ये सरवाईवल का प्रश्न था। जिधर भी रुख किया वहीं केकड़े, झींगे, मछलियाँ, और ना जाने क्या-क्या अल्लम-बल्लम आईटम मौजूद थे! उसके ऊपर से जलेबी सी नज़र आने वाली मलयालम में छपे हुए मेन्यू!! और उसके भी ऊपर मुख से जलेबियाँ बरसाते मल्लू वेटर्स!!! हम जिन मद्रासी खानों से परिचित हैं, मसलन इडली, डोसा, वडा, उत्तपम, साम्भर आदि, वो ऐसे गायब थे जैसे इस दुनिया से मेरी माँ! वैसे भी भूखे पेट वो ज़्यादा याद आती है!!!
एक बात जो अंडरलाईन की जा सकती है के बाई एंड लार्ज, मल्लूज़ हैल्पफुल होते हैं, बोले तो एकदम गुडमैन दी लालटेन! केरल में एकदम हरी-हरी हरियाली का प्रचंड साम्राज्य है! फेफड़े ऑक्सीजन से भर जाते हैं एकदम! कहावत है के सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नज़र आता है! केरल में कोई किसी भी मौसम में अंधा हो, गारंटी से हरा ही हरा नज़र आएगा!
'मैं क्यूँ गया? कहाँ घूमा?', ये सब फ़िर कभी के लिए! फिलहाल तो टीवी में हरी भरी मिसेज नेने और मिसेज जूनियर बच्चन नाच रहीं हैं और गा रहीं हैं: हमपे ये किसने हरा रंग डाला.........
ए पिक्चर इज़ वर्थ ए थाउजेंड वर्ड्स, फिर भी ज़्यादा जानकारी के इच्छुक फोटू में दिए फ़ोन पर संपर्क करें! |
खैर लेट्स कम बैक टु मलयालम थर्टीन! मलयालम इसलिए के केरल गया था और थर्टीन इसलिए के 'मेरी पोस्ट है, मैं कुछ भी टाईटल रखूँ'! जब जाना तय हुआ तो एकमात्र मलयाली (शॉर्ट में मल्लु) मित्र दीपक से संपर्क किया। आपको 'दीपक' नॉर्थ-इन्डियन सी फीलिंग दे रहा होगा! चलो इसे मल्लुफाई कर देते हैं! 'अलाथुर भरथन दीपक' मेरा ग्रेजुएशन के समय से फ्रैंड है। उसकी और इंटरनेट मलयाली की हैल्प से मैं मुंबई और कोयम्बतूर होता हुआ, पहुँच गया कोज्हिकोड।
एयरपोर्ट से निकला तो प्रीपेड टैक्सी वाले से जीके बढ़ाने लगा। उसने बात करते-करते बिल फाड़ दिया आठ सौ साठ रुपये का! जब मुझे महसूस हुआ के पैसे बटुए से जाने वाले हैं, मैंने सारी पंजाबी इकट्ठी की और धावा बोल दिया! वो खालसा पंथ से थोड़ा घबराया और मैं मौका पाते ही वहाँ से 'इलेवन टू थर्टीन' हो गया! जान बची सो आठ सौ साठ पाए!
थोड़ा पैदल चलके, शेयर्ड ऑटो में पाँच रुपये देकर हाईवे पहुँचा। ये भी इंटरेस्टिंग है। ऑटो वाले से हिंगलिश में अपने गंतव्य के बारे में पूछता रहा और वो मलहिंगलिश में बताता रहा! फिर जब हाईवे पर छोड़ा तो किराया पूछने पर उसने उंगलियाँ खोलके पंजा दिखाया और कुछ बोला तो मुझे ऐसा लगा पचास मांग रहा है! मन में इम्मिडियेटली ख़याल आया, मुए ऑटो वाले होते ही ठग हैं, चाहे दिल्ली के हों या केरल के! मैंने कहा, नो फिफ्टी, ओनली ट्वेंटी! तब वो बोला, 'फाईव रुपीज़'! पाँच रूपए के साथ मैंने उसे जी भर के असीसा! खैर पूछते-पाछते, देखते-भालते उन्नीस और बारह रुपये देकर मैं पहुँच गया, जहाँ मुझे जाना था: कुन्नामंगलम।
एक चीज़ जो मुझे बेहद लिबरेटिंग लगी वो थी लुंगी! लोगों को आर-पार की हवा लेते देख मुझे अपनी जींस में ज़्यादा गर्मी लगने लगी! होटल के कमरे में बड़े से तौलिये को बाँध के लुंगी की आज़ादी का अनुभव किया! स्वाद आ गया जी स्वाद!
सबसे बड़ी दिक्कत जो पेश आयी वो थी खाने की! केरल का मालाबार क्षेत्र विशिष्ट रूप से अपने सी-फूड के लिए विख्यात है। पर मेरे जैसे घनघोर वेजिटेरियन के लिए ये सरवाईवल का प्रश्न था। जिधर भी रुख किया वहीं केकड़े, झींगे, मछलियाँ, और ना जाने क्या-क्या अल्लम-बल्लम आईटम मौजूद थे! उसके ऊपर से जलेबी सी नज़र आने वाली मलयालम में छपे हुए मेन्यू!! और उसके भी ऊपर मुख से जलेबियाँ बरसाते मल्लू वेटर्स!!! हम जिन मद्रासी खानों से परिचित हैं, मसलन इडली, डोसा, वडा, उत्तपम, साम्भर आदि, वो ऐसे गायब थे जैसे इस दुनिया से मेरी माँ! वैसे भी भूखे पेट वो ज़्यादा याद आती है!!!
एक बात जो अंडरलाईन की जा सकती है के बाई एंड लार्ज, मल्लूज़ हैल्पफुल होते हैं, बोले तो एकदम गुडमैन दी लालटेन! केरल में एकदम हरी-हरी हरियाली का प्रचंड साम्राज्य है! फेफड़े ऑक्सीजन से भर जाते हैं एकदम! कहावत है के सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नज़र आता है! केरल में कोई किसी भी मौसम में अंधा हो, गारंटी से हरा ही हरा नज़र आएगा!
'मैं क्यूँ गया? कहाँ घूमा?', ये सब फ़िर कभी के लिए! फिलहाल तो टीवी में हरी भरी मिसेज नेने और मिसेज जूनियर बच्चन नाच रहीं हैं और गा रहीं हैं: हमपे ये किसने हरा रंग डाला.........
13 टिप्पणियां:
अक्षरनुमा जलेबियां कर्नाटक से ही शुरू हो जाती है.
रोचक यादें... :-)
~God Bless!!!
jalebi bayi, lungi aur hariyali ke darshan ke baad 'shahar' mein aake kaisa lag raha hai janab?
आज की ब्लॉग बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ की यादें - ब्लॉग जगत के विवाद - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मल्लुओं के यहाँ गये हो तो पंजाबियों की बेइज्जती करोगे क्या? पंजाबी लुंगी नहीं देखी क्या? :)
गज़ब रवानी है प्यारे, अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा>
हरियाली के शहर की दिलचस्प यात्रा ... ओर आपके जेहन में बंधी रोचक यादें ... लगता है बाई एंड लार्ज आपको केरल प्रदेश भा गया ...
रोचक रहा सफ़र.......अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा ।
बहुत ही बढ़िया जी......
बहुत ही बढ़िया जी......
हरी भरी मिसेज नेने और मिसेज जूनियर बच्चन नाच रहीं हैं और गा रहीं हैं: Dolaa re dolaa re...
Kaahe hare rang k chakkar me paaro ko bhi galat jegeh nachaye de rahe ho :P
Khair... mazedar post h, jaari rahe.. aashirvaad!!! ;)
मजा आ गया पढ़ कर :)
मजा आ गया पढ़ कर :)
रोचक ....
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