ट्वाईस अपोन ए टाईम की बात है, जब मैं स्कूल में निक्कर पहन के जाया करता था. बरसात के मौसम में अक्सर 'रेनी डे' घोषित कर दिया जाता था. कारण, अटेंडेंस थिन रहती थी, और जो कुछ मेरे जैसे दिलेर पढ़ने के बहाने तफरीह की आस लिए स्कूल जाते थे, उन्हें 'रेनी डे' कहकर मोड़ दिया जाता. खैर हम तो पैदा ही हुए हैं खुश रहने के लिए. लौटती डाक से वापस किये जाने पर भी, हम मायूस ना होते. क्यूँ? अरे भई, जिस टिफिन के लेकर दोपहर में दूसरे पौदीनों से छीना-झपटी होती, उस पर हमारा एकाधिकार जो होगा! दरअसल, पिताजी बहुत उम्दा सब्ज़ी बनाया करते थे! माँ का डिपार्टमेंट था हमें ठोक-पीट के पढ़ाना, और पिताजी रसद तैयार करते थे मेजर और उसकी फ़ौज के लिए! खैर वापस आने पर जहाँ घड़ी साढ़े नौ की तरफ इशारा करती, मैं माँ से दफ्तर ना जाने की जिद पकड़ के बैठ जाता. अच्छा आर्ग्युमेंट देता था, "क्या रेनी डे सिर्फ बच्चों के लिए होता है? आप को भी तो ठण्ड लग सकती है!'' और उसके बाद, गिड़गिड़ता : "मत जाओ! मत जाओ! मत जाओ!" और माँ हंस कर कह देती, "नौकरी इज़ नौकरी!" और दफ्तर के लिए रुखसत हो जाती.
आज ये पोस्ट जम्मू से लिख रहा हूँ. और आज सही मायनों में "नौकरी इज़ नौकरी" का मतलब समझ पाया हूँ. (क्या आपने मन-मन में कहा: आंवले का खाया और बड़ों का कहा, बाद में पता चलता है!?) पिछले हफ्ते ही फिल्लौर से लुधिआना तबादला हुआ. भोली के परोंठे मुझे अप एंड डाऊन करे पर मजबूर कर रहे हैं. रविवार को जे. ए. आई. आई. बी. का इम्तेहान देकर जोइनिंग टाईम का स्वाद लेने का प्लान था. चंडीगढ़ आर. ओ. से फोन आ गया. जम्मू जाइये! मैंने कहा अजी अभी तो साल भी नहीं हुआ, एल टी सी दे रहे हैं! मगर जम्मू! जम्मू! जम्मू! मैंने शॉक में इको की फीलिंग ली! अजी छड़े हैं, भेजना ही है तो ऐसी जगह भेजो जहाँ कुछ स्कोप हो! मन-ही-मन में हो रही चें-चें पौं-पौं भंग हुई जब दूसरी तरफ से आवाज़ आयी, आप डेप्युटेशन (संजय बाऊजी, इसकी हिंदी क्या होती है?) पर जा रहे हैं!
हैंस प्रूव्ड!!! |
फोन काम नहीं रहा है. ठीक-ठाक ठण्ड है. गरम कपड़े नहीं हैं मेरे पास. दारु मैं पीता नहीं हूँ. और उपर से ये अकेलापन! लिल्लाह! कहीं मेरी डेथ ही ना हो जाए! रघुनाथ मंदिर के आगे से निकल के जाता हूँ दफ्तर, पर अन्दर नहीं गया. वैष्णो देवी तो दूर की बात है! पता नहीं, अन्दर से फीलिंग ही नहीं आती! कुछ दिनों पहले हरमंदर साहेब गया था, सरोवर में स्नान भी किया, कड़ा-परशाद लिया भी, चढ़ाया भी और खाया भी, घंटे भर लाइन में भी खड़ा रहा मत्था टेकने लिए, टेका भी. पर अन्दर से फीलिंग आयी ही नहीं. मेरे लिए ऐसे स्थानों की कोई धार्मिक-वैल्यू नहीं है, हां टूरिस्टिक-वैल्यू हो सकती है. हो सकता है जाने से पहले एक बार रघुनाथ मंदिर में भगवान को हेल्लो कर ही दूं, या शायद नहीं! कह नहीं सकता! मार्क्सिस्ट नहीं हूँ मैं. पर कर्म-काण्ड में भी नहीं मानता. इतना ज्ञानी नहीं हूँ के खुद को आध्यात्मिक कहूं. इस पर फिर कभी. आपका तो पता नहीं, पर मैं बोर होने लगा हूँ!
चलिए, एक तुकबंदी ठेल देते हैं. अब तो आप पढ़ रहे हैं, झेल जायेंगे. फिर एक महीने को बात गयी! ये एस एम एस भेजा था मैंने अपनी एक अच्छी सखी को. जिस किसी अन्य सहेली पर भी अप्लाई होता हो, वो समझे के उसी के लिए है. भाई लोग तो बस स्वाद लें:
मेरी बातों का उसपे है कोई असर जाने!
कब होगी चाहत की सेहर जाने!
उसकी बातों से भी तो झलकता ही है!
पसंद हूँ मैं उसे किस कदर जाने!
डरना, मुकरना उसकी मजबूरी है शायद!
ज़माने का कितना है उसे फिकर जाने!
जीत कर हारना तकदीर है अपनी!
विसाल-ए-यार? मुक़द्दर जाने!
ज़िन्दगी पिरो लेते हैं लफ़्ज़ों में यूँ तो!
शायरी करना तो कोई सुख़नवर जाने!
और ये अभी-अभी पुटपुटा रहा है:
मुहब्बत और खुशियाँ लुटाते हैं हम तो!
दीन की बातें तो कोई पैग़म्बर जाने!
सर्वाधिकार असुरक्षित: हा हा हा!
72 टिप्पणियां:
हे प्रेमावतार, हे प्रेम विज्ञानी, हे कामावतार, तुम मेरे मूल नगर में गए हो. वहाँ कोई ऐसी हरक़त न करना (तु्म्हें रोकने के लिए मैं वहाँ नहीं रहूँगा). धार्मिक जगह आते-जाते रहना इससे बुज़ुर्गों को तसल्ली मिलती रहती है.
जम्मू..अहा चिन्ता मत कीजिये..वहा पर आप का अकेलापन दूर हो जायेगा..वॆसे कश्मीरी सेब :) बहुत अच्छे होते हॆ..
अच्छा लगा पढना। आभार।
सही दिशा में ले जाती हुई पोस्ट!
निरंतर लिखते रहो!
ब्लॉगिस्ट हो और अकेलेपन की बात कर रहे हो। यह तो पॉसीबल ही नहीं है आशीष जी। ब्लॉगिंग में जो फीलिंग आती है वो भीतर और बाहर दोनों ओर से आती है और टोकरी में से भी लीक नहीं होती है। इसलिए डटे रहो। कुछ बोर हो रहे हो तो जो लिंक दे रहा हूं, उसे पीछे घुमाते जाओ, खूब मजे उड़ाओ, फिर भी अपनी खुशियों की टोकरी को सदा ही भरी पाओ
बेबस बेकसूर ब्लूलाइन बसें
ismein twice upon a time nhi aaya.. Nyhow mast vyatha sunai hai..
बिना शराब जम्मू में ,
कैसे होगा बसर जाने ?
ठंड वहाँ की कातिलाना,
पक्की है ये खबर जाने !
दुआ कीजिये खुदा से,
की दिन अच्छे गुजर जाने !
well....jahan hain enjoy kariya sir!
ब्लागर के लिए क्या जम्मू क्या जोहांसबर्ग
सारा जहान अपना कम्पयूटर
जम्मू अच्छी जगह है मजा किजिए
आशीष सर,
जम्मू का मज़ा लीजिये.हमारे लिए तो वहां जाना अभी सपना ही है.
और हाँ हंसाते हंसाते बहुत ही अच्छा SMS भी पढवा दिया.आप के लिए सिर्फ यही कह सकता हूँ-
कुछ तो बात है तुझ में ,मैं क्या कहूँ क्या नहीं
इतना जानता हूँ कि तुझ सा कोई और नहीं है.
सादर
डरना, मुकरना उसकी मजबूरी है शायद!
ज़माने का कितना है उसे फिकर जाने
वाह क्या बात है ... आपको जम्मू की सर्दी मुबारक ... अब आ ही गए हो जम्मू तो कोई आदत भी पाल लो ... अछा लिखने के अलावा ... बहुत मजेदार्ट पोस्ट है ..
बहुत खूब आशीष जी .. तो आप जम्मू जा पहुंचे ... ये नौकरी चीज़ ही ऐसी है ... हम अभी हाल ही में ढाई साल रह कर आये हैं ... मुझे बहुत पसंद आया .. कुछ जानकारी चाहिए हो तो बताइयेगा ... :).. अगे रब रक्खा ..
भाई बहुत मज़ा आया आपकी पोस्ट और विचारों को पढ़ कर...आपकी विचार धरा मुझसे बहुत मिलती जुलती है और इस विचार धारा वाले लोग मुझे बहुत ही कम मिले हैं...आप पूछेंगे कौनसी विचार धरा...वो ही अंदर से फीलिंग न आने वाली...अब जब अंदर से फीलिंग न आये तो बाहर से किया हर काम खुद को ही ड्रामा जैसा लगता है.
कविता भी माशा अल्लाह...अच्छी खासी कही है आपने...अकेले हैं तब तक मौज कर लें बाद में इन्हीं दिनों के लिए तरसा करेंगे...:-)
नीरज
नौकरी इज़ नौकरी…………बिल्कुल सही कहा।
आशीष जी,
हर महीने की पहली तारीख को आपकी पोस्ट कुछ यूँ लगती है जैसे 'कुछ मीठा हो जाये आज पहली तारीख है; :-)
अजी नौकर तो नौकर है अब चाहें सरकार का हो या जनता का ....नौकर का काम है हुक्म की तालीम करना...जो बीत्री आनंद को जनता है उसके लिए क्या लुधियाना और क्या जम्मू.....बोले तो "वसुधैव कुटुम्बकम"
अजी आपके लिखने का अंदाज़ के हम कायल है....शुरुआत से 'ट्वाईस अपोन ए टाईम'......वाह जी वाह....लगे रहे भाई|
आशीष जी,
हर महीने की पहली तारीख को आपकी पोस्ट कुछ यूँ लगती है जैसे 'कुछ मीठा हो जाये आज पहली तारीख है; :-)
अजी नौकर तो नौकर है अब चाहें सरकार का हो या जनता का ....नौकर का काम है हुक्म की तालीम करना...जो भीतरी (पहली टिप्पणी में बित्री हो गया था) आनंद को जनता है उसके लिए क्या लुधियाना और क्या जम्मू.....बोले तो "वसुधैव कुटुम्बकम"
अजी आपके लिखने के अंदाज़ के हम कायल है....शुरुआत से 'ट्वाईस अपोन ए टाईम'......वाह जी वाह....लगे रहे भाई|
:) hahaha...
Jammu...sahi h.. waise to mushkil h magar aap to aap hain so aish kijiye.. :)
N yeah nice pic :)
मन की बात बहुत स्पष्ट रूप और मनोरंजक तरीके से अभिव्यक्त की है..आभार
हम किसी भी दिन स्कूल जाए या न जाए ...रेनी डे पर ज़रूर जाते थे अगर वापस नहीं भी भेजे गए तो स्कूल में फुल मस्ती ....
बढ़िया लेख
भूषण जी की नसीहतों का ख्याल रखियेगा :)
नौकरी तो नौकरी है !...पर जो तुकबंदी आपने ठेली है , माशाल्लाह हरारतें पैदा कर रही है ! बस किसी खास ख्याल-ओ-मुकाम पर उसे लिंग परिवर्तन की ज़रूरत है ! मुनासिब समझिए तो सर्जरी कर दीजियेगा ...
"ज़माने 'का कितना' है उसे फिकर जाने"
'ज़माने "की कितनी" है उसे फिकर जाने'
अरे भाई ऊपर किसी ने कहा है कश्मीरी सेब खूब स्वादिष्ट होते हैं, सच कह रहे हैं ... पहुँचो और हमें भी बुलाओ.
.
@ भूषण बाऊ जी,
शायद आपको याद हो, आपकी पहली कमेन्ट मेरे चिट्ठे पर कभी वापिस ना आपने की कसम थी! ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया, लेकिन आपने बड़ी-बड़ी संज्ञाएँ दे दी हैं मुझे! और हां, ऐसे कितने ही काम बड़ों की ख़ुशी के लिए कर देता हूँ मैं.
@ दीपाली,
'ट्वाईस अपोन ए टाईम', एक सस्ती ट्रिक है ध्यान आकर्षित करने की. बात यही कोई बीस बरस पुरानी है बस! आपने सही पकड़ा!
@ नासवा बाऊ जी,
समझदार को इशारा काफी होता है, आशीष को नहीं! कैसी आदत? कहीं ऐसी-वैसी तो नहीं?!
@ नीरज बाऊ जी,
माँ-पिताजी की ख़ुशी के लिए कभी-कभी ड्रामा भी कर लेता हूँ, इस समय अकेला हूँ, नहीं करूंगा.
@ मोनाली,
वास्तव में तुम जोहरी हो कन्या. हीरे की पहचान जो है! किसी और ने नाईस पिक नहीं कहा, सिवाय तुम्हारे. खुश रहो! वैसे मैं शर्म से लाल हुआ! लिल्लाह :)
@ अली साहेब,
आदाब!
आप सही कह रहे हैं, फिकर 'होती' है 'होता' नहीं! आई एक्सेप्ट. मैंने फोन चेक किया, सेंट आईटम्स में भी यही गलती है. और चूँकि ये एस एम एस एज़-इट-एस प्रस्तुत है, इसलिए चेंज नहीं कर रहा हूँ. और हां, आपका ये कमेन्ट ख़ास है मेरे लिए, साबित करता है के आप मुझ फूहड़ को भी गहराई से पढ़ते हैं.
स्प्लेंडिड ....क्या गज़ब की रोचक शैली में लिखा है..मजा आ गया पढकर
छोटे वीर, तू है बहुत चालू। मतलब न भी पूछता तो भी मैंने तो कमेंट करना ही था। हा हा हा।
deputation की हिन्दी है ’प्रतिनियुक्ति।’ इन्फ़ार्मल लैंगवेज में इसे कहते हैं ’ऐश विद कैश।’
फ़ीलिंग वाली बात पर दिल लूट लिया है आशीष, साली यही अंधश्रद्धा वाली फ़ीलिंग अपने अंदर भी नहीं आई। टूरिस्टिक वैल्यू और उनमें भी ancient value वाली जगह अपने को भी पसंद है। यार, मैं पंद्रह बीस साल छोटा तो कसम से ’छड़ेयां दा वेहड़ा’ गुलजार कर लेते। और सर्वाधिकार असुरक्षित में सेंध लग गई प्यारे, ले चले हम। थैंक्यू तो ले ही ले।
कहीं-कहीं तू तड़ाक में भी मजा आ जाता है, बुरा लगे तो भाई रिप्लेस कर लेना तू को आप से, और क्या।
"फोन काम नहीं रहा है. ठीक-ठाक ठण्ड है. गरम कपड़े नहीं हैं मेरे पास. दारु मैं पीता नहीं हूँ. और उपर से ये अकेलापन!"
सर जी!! किसने रोका है? ये तो सिर्फ आपकी मर्जी है.. अकेलापन तो रहेगा ही.. मेरे हिसाब से तो बंदिशें तब तक ही रहती हैं जब तक ये बंदा चाहता है.. :P :P :)
सच कहूँ तो इधर भी वही हाल है... सर्दियों का मौसम है.. जम्मू की पार्शियल सर्दी इलाहाबाद में भी आ गयी है.. आप जम्मू क्या गये अपने आशीष के साथ कुछ सर्दी भी भेज दी... अभी दाँत किटकिटाते हुए आपको कमेंटिया रहा हूँ.. दूध उबल रहा है बस रोटी बनानी है.. उपर से अकेलेपन की याद दिला दी आपने.. :(
आज हाजिरी लगा दी है. कल आती हूँ.
.
.
.
"मुहब्बत और खुशियाँ लुटाते हैं हम तो!
दीन की बातें तो कोई पैग़म्बर जाने! "
यों ही लुटातें चलें मोहब्बत और खुशियाँ... जितनी लुटायेंगे, उतनी ही पायेंगे!
अच्छा लगा आपको पढ़ना...
आभार!
...
मजेदार पोस्ट ...नौकरी इज नौकरी भी और तुकबंदी भी ....और जो अंत में पुत्पुताया वो भी ज़बरदस्त
जहाँ भी रहें मस्त रहें .......... क्यूँकी नोकरी इज नोकरी :)
वाकई नौकरी इज नौकरी ...
ईश्वर सब अच्छा करे ...
आशीष को बहुत आशीष !
अनुभव का अंबार,
छलकने को आतुर है,
न जाने क्या रंग,
आज छलक जायेगा।
पूरे तरन्नुम में पढ़ गये आपको, पहली बार पढ़ा पर बस यही लगा कि इतना देर से क्यों आये हम।
जीत कर हारना तकदीर है अपनी!
विसाल-ए-यार? मुक़द्दर जाने!
ज़िन्दगी पिरो लेते हैं लफ़्ज़ों में यूँ तो!
शायरी करना तो कोई सुख़नवर जाने!
... bahut badhiyaa
jammu me hi mera beta bhi hai
नौकरी इज नौकरी कहते हुए हमने भी जीवन के 22 साल निकाले फिर अचानक लगा कि यह भी कोई बंधन है जो हमें बांधे और बस तोड़ भागे। आज एकदम आजाद पंछी हैं। अब हमें कोई नहीं कह सकता कि पैसे के कारण अपना अनमोल जीवन दांव पर लगा रहे हो, बस जो मन आता है वही करते हैं। जम्मू की यात्रा शुभ हो।
रोचक संस्मरण। भाषाशैली मनभावन है।
आशीष भाई मस्त लिखते हो और जबरदस्त लिखते हो आप!और सबसे बड़ी बात के आप मुक्तहस्त लिखते हो!अपने छडेपन की स्मृति हो आई जी सिंगल दम ही!पहले नौकरी वाली पोस्ट पढ़ी फिर उस से पहली वाली,फिर उस से पहले वाली और कई पोस्टे पढ़ डाली जी एक ही सांस में!
वैसे एक बताओ भाई कि आप मेरे ब्लॉग तक कैसे पहुँच गए...?
वहा आपका सदैव स्वागत है जी,बस आते रहना,,,,,!
कुंवर जी,
आशीष भाई मस्त लिखते हो और जबरदस्त लिखते हो आप!और सबसे बड़ी बात के आप मुक्तहस्त लिखते हो!अपने छडेपन की स्मृति हो आई जी सिंगल दम ही!पहले नौकरी वाली पोस्ट पढ़ी फिर उस से पहली वाली,फिर उस से पहले वाली और कई पोस्टे पढ़ डाली जी एक ही सांस में!
वैसे एक बताओ भाई कि आप मेरे ब्लॉग तक कैसे पहुँच गए...?
वहा आपका सदैव स्वागत है जी,बस आते रहना,,,,,!
कुंवर जी,
ਬੱਲੇ ਬੱਲੇ ਫ੍ਪ੍ਟੋ ਫੋਟੋ ਵਿਚ ਤੇ ਬੜੇ ਹੀਰੋ ਲਗ ਰਹੇ ਹੋ ਜੀ ....
ਭਰ ਇਹ ਮੇਰੀਆਂ ਨਜ਼ਮਾਂ ਤੁਹਾਡੇ ਸਮਝ ਕਯੋਂ ਨਹੀਂ ਆਂਦੀਆਂ ਭਲਾ ......?
ਓਏ ਹੋਏ ਤੁਹਾਡਾ ਪਿਤਾਜੀ ਕਿਤਨੇ ਅਛੇ ਨੇ ਜੋ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਰਸਦ ਬਣਾ ਕੇ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ......ਤਦੇ ਤੇ ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਪੋਹਾ ਬਣਾ ਲੇਂਦੇ ਹੋ .....
ਚਲੋ ਫ਼ਿਲਿੰਗ ਨ ਸਹੀ ...ਮਥਾ ਟੇਕ ਲਿਆ ਓਹੀ ਬਹੁਤ ਹੈ ....ਰੱਬ ਦੇ ਹੀ ਦਾਉਗਾ ਕੋਈ ਸੋਹਨੀ ਜੇਹੀ .....
मेरी बातों का उसपे है कोई असर जाने!
कब होगी चाहत की सेहर जाने!
ਬਸ ਲਗੇ ਰਹੋ ਅਸਰ ਵੀ ਹੋ ਹੀ ਜਾਏਗਾ ......
bhai sahab waise to aap achha hi likhte hai, aur ab bhi achha hi likha hai, aise hi likhte rahiye, Rab Rakkhha.
5.5/10
बिंदास पोस्ट
रोचक लेखन
आपको पढना सुखद है
अजी पहले एक देवी जी ले आइये, फिर उनको ले के वैष्णो देवी जाइये, तो ही असली फ़ीलिंग आयेगी. तभी तो आपको आशीर्वाद मिलेगा "अखंड सौभाग्यवान भव" .
आशीष जी
नमस्कार !
नौकरी इज़ नौकरी बहुत मजेदार्ट पोस्ट है
आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
नौकरी इज़ नौकरी… इसके बहाने इतनी मजेदार पोस्ट लिखी आपने ...जिसमें बचपन भी है ...मां-पिताजी भी याद आ गये ...बस आप यूं ही जिन्दगी का सफर तय करते जायें ...शुभकामनायें ..।
sansmaran bahut hi manoranjak andaz me...
'jeetkar harna takdeer hai meri
vsal-a yaar ? mukaddar jaane '
kya kahna....
मुहब्बत और खुशियाँ लुटाते हैं हम तो!
दीन की बातें तो कोई पैग़म्बर जाने!
वाह बेटा जिसने मुहब्बत जान ली समझो उस ने खुदा जान लिया। तो अब पंजाब छोड कर जा रहे हो। भूषण जी की बात पर जरूर गौर करना आँवले के खाये और बडों के----- समझ गये न। शुभकामनायें आशीर्वाद।
बैचलर पोहा के बाद आज आई हूँ आपके ब्लॉग में. नौकरी इज नौकरी अगर होती है तो फिलहाल अभी मुझे पता नहीं और कितने आँवले खाने बाकी है. बड़ों का सुनना तो ज़ारी ही है. फीलिंग वाली बात एकदम सही है, मगर इतना जरूर मानती हूँ कि ऊपर में कोई रहता जरूर है, जिसको ये पता है कि ये यानी कि मैं ऐसे तो आनेवाली नहीं हूँ तो मेरे पीछे मेरी सहेलियों को लगा देता है, और एक से बढ़कर एक मिले है जो सुबह वाली प्यारी नींद तुडवा के मंदिर-मंदिर घुमाते रहते है.
बेमिसाल का एक गाना याद आ गया..... आप जरूर गाने की कोशिश कीजियेगा......
'इस ज़मीन से, आसमान से,
फूलों के इस गुलिस्तान से ,
जाना है मुश्किल इस जहाँ से"...........
पोस्ट तो वैसे भी मजेदार है, अब इसके लिए nice beautiful etc etc....टैग क्या दे? आप को ५ गो इस्टार भेज रहे है.
तो पहले नियुक्ति और अब प्रतिनियुक्ति मुबारक हो। जम्मू में रहो या तम्बू में। प्रेम का साथ न छोड़ना । मेरा मतलब है मोहब्बत का साथ न छोड़ना। शुभकामनाएं।
Wah, umda post as always Ashish.
Welcome back to my blog. I've finally started writing again :)
आशीष भाई,
फीलिंग नहीं आती न, तो वो करते बनता भी नहीं।
और बिना लाग-लपेट के मान लेना,इस पर सच में फीलिंग आयी। :)
हाँ, नौकरी इज नौकरी, इससे तो फ़ीसदी सहमति बनती है।
तो अगली एक को कुछ जम्मू मैटर लौटेगा।
और ....
जीत कर हारना तकदीर है अपनी!
विसाल-ए-यार? मुक़द्दर जाने!
इसे ठेलना कहते हैं तो इस ठेलागोई पे कुर्बान... :)
tere har alfaz m aj bhi unka dedar h..............
ketne jalim h vo jo jan kar bhi anjan h..............
etna unse dur rah - kar alfazo m etne metahs h............
unhe ap se dur hone ka keya n koi malal h...........
Hum to dua bhi nahi de vakte unhe....................
ap ke sath unke nam ka jekra hota jo har bar h ...............
बहुत रोचक लेखनी है। बधाई।
जम्मू में स्कोप नहीं है, किसने कहा। जरा नजर उठा के देखो, ढूंढते कश्मीरी सेब वहीं आ जाएंगे। बट राम लल्ला से मिल लेना। देखना वहीं से बजरंग बली साथ आ जाएंगे, फिर तो समस्या खत्म हो जाएगी। एक बार जाकर देखो और अगले महीने अपनी पोस्ट पर या मेरी पोस्ट पर टिप्पणी करके बता देना..
कम-से-कम एक टिप्पणी ऐसी आई है जिसके बारे में कहूँगा कि 'कुछ समझा करो यार'. वैसे में उन युवाओं को संदेह की नज़र से ज़रूर देखता हूँ जो कीर्तन करते, भजन गाते और धार्मिक स्थानों पर अक़सर जाते हैं. (आपकी शराफ़त पर मुझे नाज़ है). कीप इट अप.
आशीष जी रेनी डे को हम कहते थे रहने दे और स्कूल नहीं जाते वैसे हम उनमें से है जो केवल स्कूल जाते थे
बिना शराब जम्मू में ,
कैसे होगा बसर जाने ?
ठंड वहाँ की कातिलाना,
पक्की है ये खबर जाने !
दुआ कीजिये खुदा से,
की दिन अच्छे गुजर जाने !
सही दिशा में ले जाती हुई पोस्ट!
नौकरी तो नौकरी है ...
पर जो तुकबंदी आपने भिड़ाई है, गजब है हुजूर!!
निरंतर लिखते रहो!
हम तक पहुँचते रहो हम यूँ ही आ आकार पैग पे पैग बना बना कर पिलाते और पीते रहेंगे ....
Very nice post. You're a wonderful blogger. I like your post very much.
लिखते रहो,प्रसन्न रहो.
अच्छा लगा पढके !
nice post...
bhut hi ruchikr likha hai aapne . khushmijaji achchhi lgi . shubhkamnaye .
baap re aashish!!!
koun ho tum!!! rub jaane....
अच्छी रचना , बधाई आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आए //shiva12877.blogspot.com
आंवले का खाया और बड़ों का कहा, बाद में पता चलता है
मस्त लिखा है आपने।
मेरे लिए ऐसे स्थानों की कोई धार्मिक-वैल्यू नहीं है। हां टूरिस्टिक-वैल्यू हो सकती है।
सेम टू सेम फीलिंग है जी।
बाकि नौकरी इज नौकरी।
नौकरी का भी अपना ही मजा है।
uffffffffff!!! masti k jadugar....:)
aapne to ekdum se dil me jagah bana li....kash aapki tarah ki abhivyakti hoti....:)
hello..ap hamare blog pe aye the once upon a time......shukriya ab kubul kare ....apka blog padhne ka avsar ab mila ......khubsurat ..n msg ws awesome
बहुत अच्छा लेख है,खाश के ये .....
मेरी बातों का उसपे है कोई असर जाने!
कब होगी चाहत की सेहर जाने!
उसकी बातों से भी तो झलकता ही है!
पसंद हूँ मैं उसे किस कदर जाने!
डरना, मुकरना उसकी मजबूरी है शायद!
ज़माने का कितना है उसे फिकर जाने!
जीत कर हारना तकदीर है अपनी!
विसाल-ए-यार? मुक़द्दर जाने!
ज़िन्दगी पिरो लेते हैं लफ़्ज़ों में यूँ तो!
शायरी करना तो कोई सुख़नवर जाने!
और ये अभी-अभी पुटपुटा रहा है:
मुहब्बत और खुशियाँ लुटाते हैं हम तो!
दीन की बातें तो कोई पैग़म्बर जाने!
बहुत बहुत शुभ कामना
मजा आ गया. आभार.
अपने बचपन के बेशकीमती साल गुज़रे हैं जम्मू में। रघुनाथ मन्दिर तो अक्सर जाना होता था क्योंकि अपना खास दोस्त उन्हीं गलियों में रहता था।
भाई आशीष.. बड़ा अरसा हुआ आपका ब्लॉग पढ़े.. नौकरी इज़ नौकरी तो पूरा पढ़ा डाला.. मगर आखिर की चंद लाइनों में मज़ा आ गया.. अल्लाह करे आप ऐसा ही लिखते रहें.. आमीन..
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
WONDERFUL EXPRESSION OF FEELINGS(.) FRESH AIR KI TARAH LAGA(.) BAHOOT ACHCHE(.) PLZ KEEP IT UP
M.C.PATHAK
बहुत दिन बाद ब्लागिंग की दुनिया में लौटी हूं, बड़े सारे अपने पसंदीदा ब्लगार्स को पढ रही हूं तो ढूंढते हुए आपके ब्लाग पर भी आ पहुची तो पता चला आप बोरिया बिस्तर उठा कर जम्मू रवाना हो गए, हां लेकिन आपकी ये पोस्ट पढ़ते हुए मेरे चेहरे की मुस्कान लौट आई है
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