केमिकल लोचे के शिकार.....

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मैं कौन हूँ, मैं क्या कहूं? तुझमे भी तो शामिल हूँ मैं! तेरे बिन अधूरा हूँ! तुझसे ही तो कामिल हूँ मैं!

आपको पहले भी यहीं देखा है....!!!

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

मैंगो शेक: बैड लक इन लव कंटीन्यूज़!!!


पिछले महीने जब अन्ना देश की पोलिटिकल क्लास को उलझा रहे थे, मैं अपनी ज़िंदगी को सुलझाने में मसरूफ़ था. सबके अपने-अपने तरीके होते हैं. अन्ना की समस्याओं का हल अनशन से निकलता है, और मेरी मुश्किलें खाने-पीने से आसां होती हैं. उनका फ़ॉर्मूला भी आज़माया हुआ है, और मेरा नुस्ख़ा भी अतीत में कारगर साबित हुआ है. 
अबकी बार जब घर गया तो लाल कुर्ती की जलेबियाँ, गोल मार्केट के समोसे, हरिया जी की लस्सी, चाट बाज़ार की फलूदा कुल्फी, नाथू की राज-कचौड़ी और यहाँ तक की  डोमिनोज़ का लाल पास्ता और लहसुन ब्रैड भी नोश फरमाई! परेशानी का हल ढूँढने निकले दूबे जी, चौबे नहीं छब्बे हो गए हैं! कमर कमरा हो गयी है! अब अन्ना का फ़ॉर्मूला एक ट्रायल बेसिस पर शुरू किया है, सोमवार दोपहर का भोजन त्याग कर! सपने में गाना गाते हैं: "पुरानी जींस और गिटार...." (दोनों ही पेट पर सेट नहीं होते!)
ऐसा नहीं के ज़िन्दगी ने पहली बार जी. के. बढाई हो. पहले भी इश्क की परवाज़ ने अर्श तक का सफ़र कराया और फिर विरह के ज़लज़ले ने फ़र्श पर पटका. और जब दर्द हुआ तो मैं क्या बोला? हाजमोला? नहीं! मैं मुख़ातिब हुआ आपसे, अपने छिछ्डारे को कविता में पिरो के: नदिया: मुकम्मल मुहब्बत, अधूरी वफ़ा!
आज भी वैसा ही कुछ कर रहा हूँ. अबकी बार किसी ने मुझे पटका नहीं, मैंने खुद ही छलांग लगाई है! अबकी बार मैंने किसी को चोट पहुंचाई है. किसी का दिल दुखाया है. इससे बड़ा पाप हो सकता है भला और कोई? जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था और जो अब हो चुका है उसे रिवर्स करना मुमकिन नहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं के मुझे अपने किये पर पछतावा है. कहते हैं के खुदा भी उसी की मदद करता है अपनी मदद खुद करता है.... और मैं तो एक अदना सा बंदा हूँ और वो भी ऐसा जो उसे दूर से ही हाय-हेल्लो कहता है. मैंने एक ईमानदार कोशिश की और मैं नाकामयाब रहा. बस! जो आँसूं मैं बहा न सका, वो लफ़्ज़ों में ब्यान कर रहा हूँ.

मैंने तो दिखाई थी हिम्मत,
दुनिया जहां से लड़ने की!
अंगद का सा है पाँव मेरा,
अपनी आदत है अड़ने की!

थी नीयत नेक और मक़सद भी,
खुशियों का चमन खिलाना था!
प्यार था बेशक नया-नया,
यार तू अपना पुराना था!

दुनिया से लड़कर जीत गया,
तेरी ज़िद के आगे हार गया!
ना प्यार हुआ हासिल मुझको,
हाथ से अपना यार गया!

क्यूँ ना मैं तुझे समझा पाया?
क्यूँ ना तू समझ सकी मुझको?
क्या फिर तनहा था मुझे होना?
फिर तकलीफ़ ही मिलनी थी तुझको?

शायद है सही तेरा कहना कि,
तुझसे भी कमज़ोर हूँ मैं!
वफ़ा से बढ़के चाहे नफ़ा,
एक ऐसा मुनाफ़ाखोर हूँ मैं!

पर तू ही बता ताकत बनके मेरी,
एक बार भी तू उभर पायी?
माज़ी में अपने उलझी रही,
मंजिल तुझे अपनी नज़र आयी?

चल मैं तो हिसाबी बनिया सही,
तू तो दिल की सुनने वाली थी!
क्यूँ मेरी सदायें ना सूनी तुने?
या वो भी दुआओं से खाली थीं?

उलझी ज़ुल्फें, सुलगी साँसें!
महका आँचल, बिखरा काजल!
तेरी यादें करती जाती हैं,
हर लम्हा-लम्हा मुझे घायल!

संजो के रखे हैं मैंने,
प्यार भरे वो सांझे पल!
भरोसे के आकाश पे क्यूँ!
घिर आये घने काले बादल? 

लगता होगा के मेरे लिए,
सब खेल है, केवल क्रीड़ा है!
सच तो है तुझसे बढ़कर, 
मेरे हृदय के भीतर पीड़ा है!

हाथ भले हो छोड़ दिया,
छोड़ा है तेरा साथ नहीं!
जिसकी कभी सुबह ना हो पाए,
इस जहां में ऐसी रात नहीं!



इसलिए,


ज़रा हिम्मत कर, उम्मीद तो रख!
उछल के गगन को छू ले तू!
 घनघोर तमस से बाहर आ,
हो रोशनी से रु-ब-रु!

 घूँट ग़मों का क्यूँ पीना?
सूर्य-किरण को पीले तू!
  यूँ कतरा-कतरा क्या जीना?
जी-भर के ज़रा अब जीले तू!

 और मैं? 

  मैं ज़िंदगी का साथ निभाता जाऊँगा!
हर फ़िक्र को धुंए (तम्बाकू-रहित) में उड़ाता जाऊँगा!
 कभी ज़रूरत पड़े तो ज़रूर याद करना!
  जब साया भी साथ छोड़ दे, शायद मैं ही काम आऊंगा!!
 मगर.....सिर्फ़ एक दोस्त की हैसियत से! 
धुंध के उस पार क्या है? लुधिआना, और क्या? आप भी न!!!
 मंडे टु मंडे दोपहर का अनशन जारी है. लोकपाल तो आएगा ही, इन्श'अल्लाह अगले महीने आपका जोकपाल भी लौटेगा. तब तक ज़िंदगी को सीरियसली नहीं, सिंसियरली लीजिये, खुश रहिये!

24 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

विरह में मोटे होने की बात समझ में आई. परंतु पुरानी पैंटों को दान में देना न भूलना मेरे बैंकर भाई. अन्ना को विरह का कोई तजुर्बा नहीं इसलिए उसे बिल्कुल फॉलो मत करना.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

कई बार कठोर कदम उठाने पड़ते हैं, ये दौर गुजर जायेगा तो शायद इन्हीं फ़ैसलों के लिये थैंक्स मिलेंगे।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विरह में भोजन अधिक हो जाता है, मुँह तो चलते रहना होगा।

उम्मतें ने कहा…

इस बार तो आपकी भूमिका ले डूबी हमें , इससे आगे जितनी बार भी आपकी कविता पढ़ने की कोशिश की , ब्रांडेड जलेबियां,लस्सी ,समोसे ,कुल्फी ,कचौड़ी वगैरह वगैरह के ख्याल जेहन में कौंधते रहे :)

Udan Tashtari ने कहा…

मंडे तू मंडे जारी रहें....:)

Manish ने कहा…

एक गम को भुलाने की कितनी कोशिशें होंगी? :)
मिश्रण है.. स्पेशल आहार है. हँसी और गम का?

खाते रहिये.. हम तो अन शन (:)) पर ही हैं.. अभी तक. :) :)

monali ने कहा…

Take care :)

sonal ने कहा…

मेरठ का कोई ठिकाना नहीं छोड़ा ..चलो अच्छा है जब दिल त्रस्त हो ज़बान व्यस्त रखने में ही भलाई है .... वैसे तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो अपने गम को ही छिपा रहे हो

बेनामी ने कहा…

इस बार सिर्फ इस बार ऐसा लगा..........जैसे जबरन हंसी को ओढ़ने की कोशिश की है आपने..........अन्दर कही बहुत दर्द है जिसे छुपाने का ये बहाना है.......ये दर्द भी जिंदगी का हिस्सा है कोई कितना ही कह ले पर हमेशा कोई खुश नहीं रह सकता.............आपकी कविता बहुत गहरे लिए हुए है और मुझे बहुत पसंद आई............

रचना दीक्षित ने कहा…

मंडे टू मंडे ---चालू रहो ....
ये कमर का कमरा, चौबे का छब्बे
अभी भी गम कम नहीं हुए.यकीं नहीं होता है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कोशिशे जारी रहें.....

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

दुआ है जल्दी सफलता प्राप्त करें और कमर फिर से कमर बने ...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ਓਏ ਹੋਏ ....
ਤੇ ਇਥੇ ਜਲੇਬੀਆਂ ਖਾਦੀਯਾਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਨੇ ....?
ਮੈਂ ਵੀ ਕਿਹਾਂ ਇਹ ਖੁਸ਼ਬੂ ਜੇਹੀ ਕਿਤ੍ਥੋਂ ਆਈ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਸਾਡੀ ਕਬਰ ਵਿਚ ........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आशीष जी ... लाजवाब पोस्ट है ...
दुनिया से लड़कर जीत गया,
तेरी ज़िद के आगे हार गया!
ना प्यार हुआ हासिल मुझको,
हाथ से अपना यार गया ...

ये तो अक्सर होता रहता है ... पर परवा काहे की .. यार गया है तो वापस भी आएगा ... सही फार्मूला अपना लिया है आपने ... हर फ़िक्र को .... उड़ाते चलो ...

इन्दु पुरी ने कहा…

आशीष! लम्बे समय से न दिखने का यह कारन था?
क्या कहूँ? समय छोड़ दो सब कुछ और ईश्वर पर...हम समझ नही पाते किन्तु 'उसके' हर फेसले मे हमारा अपना ही कुछ भला छुपा होता है.
शादी ही तो अंतिम मंजिल नही होती प्यार की?
एक अच्छा दोस्त हर रिश्ते से ऊपर होता है.
तुम समझदार हो,भावुक हो पर कमजोर नही हो.
हर फ़िक्र को धूए मे उड़ा'ने की बात से राहत मिली.क्या लिखते हो ! दुष्ट एक बार मैं सन्न रह गई.फिर..... ज्यादा दिल की नही सुनना क्योंकि तुम्हारे पास तो दिमाग भी है उसे यूज करना .ज्यादा सुखी रहोगे.
और...देख वो धोखा दे जाए तेरी यह गर्ल फ्रेंड तो तुझे छोड़ कर नही जाने वाली हा हा हा चल हँस दे फटाफट.बहुत प्यारा लिखता है तू दोस्त! सचमुच नेक बंदा है '
'हाथ भले हो छोड़ दिया,छोड़ा है तेरा साथ नहीं!जिसकी कभी सुबह ना हो पाए,इस जहां में ऐसी रात नहीं!' एक आशावादी और भला मानस! 'उसने' क्या खोया 'वो' नही जानती. खुश रह और लिखता रह मेरे शेर !

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कविता तो बहुत अच्छी लगी।
भूमिका भी जबर्दस्त है।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कहीं संजीदगी,कहीं हंसी-मज़ाक मिली जुली मज़ेदार पोस्ट,

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

ha ha ha bahut hee badhiyaa!!

Aruna Kapoor ने कहा…

बहुत बढ़िया,मजा आ गया .....धन्यवाद!...अब हम बोले तो क्या बोले?

Asha Joglekar ने कहा…

विरह में लोगों को दुबलाते तो सुना है आपकी कुछ अलग ही कहानी है पर कविता सच्ची कहानी है ।

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

आशीष जी .... कुछ ऐसे ब्लोगर्स हैं जिनके ब्लॉग पर उम्मीद से ज्यादा मिलता है! निसंदेह आप भी उनमें से एक हो! यही कहूंगा कि बस लगे रहो!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

ज़रा हिम्मत कर, उम्मीद तो रख!
उछल के गगन को छू ले तू!
घनघोर तमस से बाहर आ,
हो रोशनी से रु-ब-रु!

आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह जी! बहुत अच्छा लगा आपको पढकर.
बिलकुल अलग अंदाज.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

वाह ! वाह ! वाह !
गज़ब की प्रस्तुति ....बहुत कुछ कहा ...काव्य भी और गद्य भी ...हंसी-मज़ाक और गंभीर भाव भी