डियर मम्मी,
तुम कहाँ हो? मैं बहुत अकेला पड़ गया हूँ. ये दुनिया एक भीड़ सी मालूम पड़ती है और दूर-दूर तक मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं है कहीं भी. अजीब बात है ना! दूसरों को हिम्मत देने वाला, आज खुद घबरा गया है. तुम्हे पता है, तुम्हारे मूंह से दिन में एक दो बार "मरे, कमबख्त...." ना सुन लूं तो............. जानता हूँ तुम नहीं आओगी, पर दिल है के मानता नहीं.
पिछली पोस्ट में ही तो मैंने फिलोसोफाया था लाईफ के तीन डिफाइनिंग फ़ीचर्स के बारे में:
पहला: अनप्रिडिक्टेबिलिटी,
दूसरा: एक दिन/रात/सुबह/शाम/दोपहर/या और कभी ये ख़त्म हो जाएगी और
तीसरा: जब तक ये है, नो मैटर व्हाट हैपेन्स, इट गोज़ ऑन!
अचानक बैंक में काम करते-करते तुम्हें लेफ्ट-साईडिड वीकनेस महसूस हुई. किस्मत से मैं मेरठ में ही था. तुमने मुझे फ़ोन करवा के बुलाया. मेरा सहारा लेकर तुम चल रही थीं तब तक और बात भी कर रही थीं. डॉ मलिक के यहाँ सारे टेस्ट्स नोर्मल आने पर मैंने मज़ाक में कहा था: "लगता है अबकी बार कोई पैरालिसिस टाईप की बड़ी प्रॉब्लम हुई है तुम्हें!" और तुमने भी मुस्कुरा के कहा था: "मरे, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है!" तुम्हारे-मेरे अनुमान से कहीं बड़ा था ये. और ये आखिरी बार था जब मैंने मज़ाक किया था तुमसे. उसके बाद जैसे अपना शरीर छोड़ दिया था तुमने. धीरे-धीरे तुम मुझसे दूर जाती गयीं. मैंने कोशिश की और मैं नाकाम रहा, फिर से. दो ओपरेशन और एक हफ्ते आई सी यू में रहने के बाद तुमने मुझे भीड़ में भी अकेला कर दिया. जब तुम जूझ रहीं थीं कोमा में रहकर ज़िंदगी और मौत के बीच, अक्सर मेरी आँखें भर आया करती थीं, फूट-फूट के भी रोया दो-ढाई बार. लेकिन जब डॉ ने नौ तारीख को सुबह साढ़े पांच बजे बताया: "शी इज़ नो मोर", तो मैंने बिना किसी हिचक और इमोशनल अत्याचार के कहा: "आई वांट टु डोनेट हर आईज़". टु बी वैरी फ्रैंक, ही वाज़ टेकन अबैक. लेकिन ये बात तो तुम्हारे-मेरे बीच पहले ही डिसाईड हो चुकी थी, सो मैंने उसे अमली जामा पहना दिया.
यू नो दैट आई वाज़ आलवेज़ कम्फर्टेबल विद द आईडिया ऑफ़ डैथ! इन फैक्ट जब हम इंटेलेक्चुअल मोड में बातें करते थे, तो मैं अक्सर कह देता था: "डैथ इज़ द ओनली ट्रुथ अबाउट लाईफ. एक दिन तुम भी मर जाओगी!" तो तुम मज़ाक में कहती थीं, "मरे, तू तो एकदम तैयार है मेरे मरने के लिए." फिर मैं उसे पूरा करता था, "ये जो पैसा जोड़ा है खर्च कर लो खुद पे, और कुछ नहीं तो भारत-भ्रमण कर लो.... नहीं तो सारा मेरे ही काम आएगा!"
क्रिया के समय पहले घर पर, फिर शमशान और फिर गढ़-मुक्तेश्वर में जैसे-जैसे जो बताता रहा, बिना बहस के मैं करता रहा. पंडित वगेहरा के लिए ये रोज़ की बात थी, और रोज़गार की भी. अगर तुम होतीं तो ये सब ड्रामा खामोशी से करते हुए देख यकीन नहीं होता.
ऐसा नहीं के मेरा जी नहीं भरा मम्मी लेकिन अगर मैं पापा के सामने रोता तो उन्हें कौन सम्हालता? मैंने गिलहरी से मिलने का मन बनाया. लेकिन उसने बिना वजह जाने मना कर दिया. ज़ाहिर है के जितनी तकलीफ़ दी है मैंने उसे, सही किया उसने. शायद कुछ दिनों बाद उसे कहीं से पता चल गया होगा. उसने एक नहीं कई फोन किये, मैंने नहीं उठाये. पापा साथ में थे. वो सोचती होगी के रस्सी जल गयी मगर बल नहीं गया! बाद में बात करने के प्रयास नाकाम रहे. अजीब ही थी (?) दोस्ती हमारी, दोनों को लगता था के एक-दूसरे को सॉलिड समझते हैं, और बिलकुल भी नहीं समझे दोनों ही.
मुझे याद है और हमेशा रहेगा तुम्हारा वो स्टेटमेंट: "आशू, तेरे हर काम पर मुझे गर्व है, लेकिन ज़िंदगी का ये बड़ा अहम डिसीज़न ना तुम ठीक से ले पाए, ना निभा पाए!" मुझे पता है तुम दोनों ही बार मुझसे इत्तेफ़ाक नहीं रखती थीं और दोनों ही बार तुमने मेरे डिसीज़न को एज़ "निरूपा रॉय" सपोर्ट किया. इन द प्रोसेस तुम गिलहरी के लिए "ललिता पवार" हो गयीं. पर मुझे पता है के तुम्हें कितना दुःख था इस बात का. शायद इसी वजह से मैंने उसे मिलना चाहा. सोचा था, मेरे आंसुओं में शायद वो कहीं सच्ची नीयत देख पाए. शायद हर गलत सही हो सके.
लेकिन,
भीग गया पैराहन तमाम, दोस्तों के आंसू पोंछने में!
क्यूँ कोई कन्धा हमें रोने के लिए नसीब ना हुआ?
नज़दीक तो आये कई हमसफ़र ज़िंदगी में,
किस्मत है अपनी ऐसी के कोई 'करीब' ना हुआ!
सच तो ये है मम्मी, दुनिया से इमोशंस क्न्सील कर किये हैं सक्सेसफुल्ली, लेकिन भीतर में बहुत कुछ टूट चूका है, बहुत कुछ पिघल गया है, और तुम्हारे आशीष से इसे किसी पर ज़ाहिर नहीं करूंगा अब. इसी दर्द को हिम्मत बनाके कुछ ऐसा करने की कोशिश करूंगा के तुम्हें हमेशा गर्व हो मुझपर. क्यूंकि मुझे पता हे बेशक तुम्हारी आँखें दान कर दी हों, देख तो रहीं होंगी तुम मुझे कहीं से, कैसे ना कैसे!
पापा ठीक हैं. या कहूं जैसे थे, वैसे ही हैं. एक बात जानके तुम्हें आश्चर्य होगा, रोज़ सुबह फोन करने लगे थे मुझे व्हेन आई वाज़ इन फिल्लौर. सी ए आई आई बी का एक्ज़ाम दे दिया है मैंने. उस दिन "बेस्ट ऑफ़ लक" कहने के लिए भी फोन किया था. पेपर तो पता नहीं कैसा हुआ है?! रिज़ल्ट बताएगा. मेरठ ट्रांसफर हो गया है. पापा बहुत पकाते हैं! "इतने आलू ठीक रहेंगे? क्या खाओगे? दूध पी ले बेटा! बादाम खा लिए? जैकेट तो पहन लेता! एक फुल्का और ले ले! भूख लग आएगी!............." धीरे-धीरे रोटी में नरमाई और स्वभाव में गहराई आ रही है. मैं ध्यान रखूंगा उनका, वो तो मेरा रख ही रहे हैं..... ज़रूरत से थोडा ज़्यादा. कभी-कभी झुंझला जाते हैं, तब तुम्हारी और याद आती है.
पुरी साब और टीना मैडम जी ने बहुत सपोर्ट किया था. इन फैक्ट मैडम जी तो दुनिया जहां के टोटके भी बताती थीं, तुम्हें अच्छा करने के लिए. पर तुम तो मेरा नेचर जानती हो! भगवानों से जीते-जी तो तुम्हारा कुछ ख़ास मेलजोल नहीं था मेरी तरह. अब अगर कहीं आस-पड़ोस में हों, तो इन दोनों के लिए हिम्मत माँगना. अच्छे लोग हैं, और मेरे अज़ीज़ भी! गिलहरी भी खुश और सेहतमंद रहे! कितना अजीब होता है सब कुछ! जिससे मुझे इस विपत्ति में उम्मीद थी, उसने सहारा देना सही न समझा और जिसने सहारा दिया, उसे मैं उम्मीद देने से कतरा रहा हूँ!
जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने तो कभी किसी भगवान को तुम्हारे आगे कुछ समझा नहीं. मुझे तो बस इतना आशीष दो के तुम्हारे बताये रास्ते पर तमाम-उम्र बिना रुके, बिना थके चलता रहूँ! मम्मी एक रिक्वेस्ट और है. तुम्हारा नेक्स्ट जनम हो चुका होगा. मेरे इस जनम की डैथ के साथ अपनी प्रेगनेंसी का एडजस्टमेंट कर लेना. आई वुड वांट टु बी योर सन, फोरेवर.
जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने तो कभी किसी भगवान को तुम्हारे आगे कुछ समझा नहीं. मुझे तो बस इतना आशीष दो के तुम्हारे बताये रास्ते पर तमाम-उम्र बिना रुके, बिना थके चलता रहूँ! मम्मी एक रिक्वेस्ट और है. तुम्हारा नेक्स्ट जनम हो चुका होगा. मेरे इस जनम की डैथ के साथ अपनी प्रेगनेंसी का एडजस्टमेंट कर लेना. आई वुड वांट टु बी योर सन, फोरेवर.
आई लव यू!
आशू.
29 टिप्पणियां:
एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है
आशीष, आशीष..।
ओह! निशब्द हूँ!
आई वुड वांट टु बी योर सन, फोरेवर.
आई लव यू!
--रुला कर ही माने.....आगे कुछ नहीं...बस, अम्मा की तस्वीर देख रहा हूँ सूनी दीवार पर....
ashish bhai, kasam se aankhein namm kar dee aapne...kehne ko kuchh nahee rakkha....
ओह...बेहद अफ़सोस ! बहुत दिनों बाद इस तरह से वापसी करेंगे , सोचा ना था !
bahut rula diya ...
AApne to rula hi diya ashish ji.....i m speechless ....ab kya kahu apke liey mai....
आशीष भाई,मेरी माताजी को भी शरीर छोड़े अभी बस एक बरस हुआ जाता है लेकिन वो तो मेरे बड़े से मुंबईया फ्लैट में कभी अकेला छोड़ती ही नहीं। जब भी खुद चाबी लगा कर दरवाज़ा खोलता हूँ तो लगता है कि आप अंदर से कहेंगी कि आ रही हूँ मरा क्यों जा रहा है अंदर आने के लिये....।
अब तो माँ को अपने ही भीतर महसूस करता हूँ बड़े भाई बहन मानने लगे हैं कि मैं मनोरोगी हो चला हूँ लेकिन ये तो माँ के प्रति प्रेम का रोग है अच्छा लगता है उनसे बतियाना, सुबह उन्हें आवाज़ देकर बिस्तर से उठना कि माताराम हो गया एक और सवेरा.... ये रोज का ही नियम था जो कि अब तक चला आ रहा है अब माँ मेरे ही अन्दर से जवाब दे देती हैं।
prashant ki buzz sae yahaan aaii
ab kehaa jaayun ???
saarae rongtae khadae haen
maa ki kami maa kae baad hi jyadaa lagtee haen
ssneh
rachna
सच मे आज तो रुला ही दिया बॉस .....मैं कैसे भूल सकता हूँ वो दिन जब पहली बार आप से और आंटी जी से पी वी एस मॉल मे मिला था।
I too miss her :((((
Take care boss!
जिंदगी का ये भी एक पहलू है जिससे कोई अछूता नहीं रहता, प्रियजनों का वियोग संसार का सबसे बड़ा दुःख है ........आपकी तमाम कोशिशो के बावजूद भीतर का दर्द उभर कर बाहर आ गया है......घाव छुपाने से नहीं छुपते.......अक्सर ऐसा होता है की जिनसे उम्मीद करो वही दुःख देते है..........सच तो ये है की उम्मीदे ही दुःख देती हैं.......हमारे मानने या न माने से ये बात बदल नहीं सकती की एक परम शक्ति सबको व्यवस्थित करती है |
खुदा माँ को जन्नत में आला मक़ाम अता करे.......आमीन|
माँ और पिता का कोई रिप्लेसमेंट नहीं होता .... और वो अचानक जब चले जाते है तब एहसास होता है सब तो बाकी रह गया ..उनकी ये इच्छा बाकी थी उनका वहाँ घूमने का मन था ... बच्चो के लिए माँ -पिता कैसे adjust करते है तुम्हारे पापा के बारे में पढ़कर पता चला ... वो तुम्हारी माँ बन रहे है ताकि माँ की कमी तुम्हे कम से कम महसूस हो ...तो तुम भी उनका अकेलापन बाँट लो ..उन्हें भी तो दोस्त की ज़रुरत है ..टेक केयर
Take care buddy... apna bhi aur uncle ka bhi... shayad lage k jaise the waise hi hain magar jaanne ki koshish karna k kya sach yehi h...
pata nahi kyu mann kar raha h k baat kar pate tumse...jante hain k hamare samjhane ka koi fayda nahi hoga aur ulta hum hi ro padein to tumhe samjhana pade..
Khair.. chhote hain magar aaj hum sach me tumhe ashish dete hain... sab pehle jaisa o nahi magar haan theek ho jayega... fikra mat karo.. aur muskura paao hamari kisi bewakufaana baat pe to muskura dena..
मन नम करती पंक्तियाँ..
आपकी अपनी माताजी को श्रद्धांजली देने से आपकी उनके प्रति और उनकी आपके प्रति भावनाओं का आभास भी मिलता है।
हम दिवंगत की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं।
माँ तो माँ ही होती है।
.......................? ? ? ? ? ? ?
कुछ भी कहना मुमकिन नहीं....सचमुच निशब्द हूँ...
क्या बोलू? तुम अच्छे और बहादुर बेटे हो आशीष!
भावुक करती पोस्ट ... माँ के प्रति श्रद्धा और प्रेम भरा पत्र ...
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्!
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि!!
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च!
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि!!
गीता की शरण में जाकर ही ऐसी विषद परिस्थिति में तनिक शांति मिलती है...! आँखें नम हैं... माँ देख रहीं हैं और आंसू पोंछ भी रही हैं...!!!
take care!!!
Maa jaisa is sansar mein duja koi nahi..apne aulad ke liye kya kya nahi karti maa....
Maa ko samarpit yah post padhkar ankhen nam ho chali...
Uff ....shabd nahi mil rahe hain ...
Aankhe bhar rahi hain ... Itna samvedansheel kyon likhte ho ... Bahut der tak dimaag mein rahegi ye post ...
i'm speechless..and deeply touched.
writing such lines is surely a courageous effort..
may god grant peace to the departed soul.
and strength to u.
Ashish, Take good care of yourself and uncle, you both have to give console each other. You are good and a brave son of your loving mom, and her rare blessings are always with you.
आशीष भाई!
आज कोई शब्द नहीं हैं... कुछ भी नहीं
marmik ....
marmsaprshi ... parents ko khone ke dard se badh koi dard nahi hota .. I also lost my father recently
aashish!
aapka ye roop pahali baar dekha
aur ab apke hasya k peechhe k chahre ko pahchan paayee
sach hai.."our sweetest song are those, which come from our sadest heart...."
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