प्यारी सहेलियों और यारों,
आप तो होली बहुत खेले होंगे! मैं नहीं खेला... ना मैंने गुलाल को छुआ, ना गुलाल ने मुझे! क्यूँ? क्यूंकि.....
बिन सजनी सूनी है होली!
दूर पिया से है हमजोली!
भाये ना मुझे रंग-अबीर!
ना अच्छी लागे हंसी-ठिठोली!
विरह के प्यासे प्रियतम को,
विरह के प्यासे प्रियतम को,
पिचकारी भी लगती है गोली!
जब तू ही नहीं है पास ए प्यारी!
बूझ बता कैसे खेलें होली?
किन गालों पे रंग लगायें?
किन गालों पे रंग लगायें?
किसकी भिगोयें चुनरी-चोली?
अब खेलेंगे उस होली होली,
जिस होली तू मेरी हो ली!
घर से वापिस आया 21 तारीख को, वही सुपर से. रास्ता काटने के लिए अमूमन मैं कोई-ना-कोई किताब पढ़ता आता हूँ, वैसे अच्छी कम्पनी मिल जाए तो बतियाना प्रेफर करता हूँ. तो साब, किताब पढ़ रहा था, 'इट रेंड ऑल नाईट' (बुद्धदेव बोस, पेंगुइन). नारी-मन को क्या खूब अन्डरलाईन करती है ये किताब! किस तरह एक औरत उपेक्षित महसूस करती है, किस तरह वो इसके बावजूद अपने पति के हिसाब से ढलने की कोशिश करती है, और किस तरह अंतत: वो 'मर्यादाएं' लांघ कर अपनी दबी हुई इच्छाओं को पूरा करती है. अच्छा फिक्शन है..... जब पहली बार 1967 में बंगाली में छपा था तो इसे 'अश्लील' घोषित कर बैन कर दिया गया था.
टिप-टिप बरसा पानी.... |
शायद परसों ही अखबार में आया था, गाँधी पर लिखी एक नयी किताब को बैन किया जाएगा. क्यूँ? आरोप है के लेखक ने गाँधी के बाई-सेक्सुअल (द्वि-लिंगीय?) होने की और इशारा किया है और उनके परम मित्र हर्मन कैलैनबेक के साथ उनके प्रेम-संबंधों को 'उजागर' करने के उद्देश्य से गाँधी द्वारा लिखे कुछ ख़त छापे हैं. मजेदार बात ये है, के हम 2011 में जी रहे हैं, और जिस व्यक्ति से सम्बंधित ये पुस्तक है, उसका जीवन एक खुली किताब है! ना जाने पोलिटिशियंस कब बड़े होंगे?
ख़ैर, मैं खुद को सुधार लूं.... काफ़ी है! सुधरने की बात पे, तुकबंदी आ रही है.... बड़ी ज़ोर से आ रही है....
मुश्किल ज़रूर है, नामुमकिन तो नहीं!
सुना है, उम्मीद पे दुनिया कायम है!
आह! से आहा! तक.... अब रिलैक्स्ड फील रहा हूँ. हा हा हा.... आपका आज आपके कल से बेहतर हो और आपका कल आपके आज से उम्दा! आई लव यू ऑल! (बैन तो नहीं करेंगे?!)
हा हा हा...
29 टिप्पणियां:
किन गालों पे रंग लगायें?
किसकी भिगोयें चुनरी-चोली?
इन पंक्तियों को छोड़ कर बाकी सारा आलेख बैन किया जा सकता है. पुस्तकें मत पढ़ा करो यार केवल चेहरे की पुस्तकें पढ़ा करो. ईश्वर कल्याण करेंगे :))
bain to karna padega poore ek mahine jo intezar karate ho
kavita achchi lagi
love you
रोचक प्रस्तुति।
कमाल करते हो आशीष भाई आप, इतनी मजेदार होली कविता पढ़ के मन खुश हो गया!
खूबसूरत!
अच्छा बता दिया किताब के बारे में...नहीं पढ़ी है अब तक.
एक महीने की अच्छी डोज़ दी है बॉस!
अब जब आपने मेरी 'एक बात' मान ली है तो एक और भी मान ही लेंगे इतना विश्वास है (वो 'एक और बात ' अब बस समझ जाईये)
कविता आपने बहुत अच्छी लिखी है और बात भी सही कही है पहले खुद को देखना चाहिये दुसरे पर ऊँगली उठाने से पहले.
उफ्फ्फ !!!!!!!!अब फिर अगले महीने का इंतज़ार रहेगा.
Love you too :)
बहुत ही रोचक प्रस्तुति| धन्यवाद|
आज फिर से अपने पुराने रंग में दिख रहे हैं आप....
मज़ा आ गया पढ़कर.. पढने का बहुत शौक रखता हूँ, ये किताब भी ढूँढने की कोशिश करूंगा...
काहे जी वैन कहे नहीं करेगें। मैं चाहे ये करू मैं चाहे वो करू मेरी मर्जी।
करारा। अच्छी कटी होली
आपतो किताब के संग हो ली।
Is it freedom of speech which empowers the society or Is it freedom of speech with a sense of responsibilty which
A desperate depiction of bachelors state of mind but never mind...there will be someone soon in ur life to mind this state of mind.
Ban or no Ban..! Not sure
Is it freedom of speech which empowers the society or Is it freedom of speech with responsibilty which distinguish us from anarchy.Freedom can't be enjoyed in isolation. It always have duties to guard n guide it.
हर महीने की पहली तारीख को सैलरी की तरह लगती है आपकी पोस्ट .......कुछ मीठा हो जाता है......बढ़िया है जी ......दुआ है जल्दी से आप 'वर' हो जाएँ......आमीन
अरे अरे कहाँ से स्टार्ट किया और गाडी को कहाँ ले गए ..पहले बताओ दुःख होली का ज्यादा है क्या ..कोई बात नहीं दुआ मेल कर देते है अगली होली घरवाली और साली दोनों के साथ मनाओ ....
प्रतिबन्ध लगाने से तो प्रचार हो जायेगा।
उनका जीवन खुली किताब रहा है हमारे लिए , मगर इस तरह का साहित्य भावी पीढ़ियों के लिए उनकी गलत छवि प्रस्तुत करता है , जिसे महात्मा और राष्ट्रपिता की उपाधि दी गयी हो , उसके चरित्र हनन के प्रयास को रोकना मुझे तो तर्कसंगत ही लगता है ...
कविता अच्छी है!
@ बैन तो नहीं करेंगे ?
बैन बेचारा ? हरदम वो ही क्यों ? ...'ए' सर्टिफिकेट की भी कोई हैसियत होती है ज़नाब :)
वाणी जी की बात से सहमत ...
होली तो २० को थी तब तो घर पर ही होंगे न ...तब होली क्यों नहीं हो ली ?
इसी तरह की एक किताब मैने हिन्दी में पढ़ी थी ... उसमें पति बड़ा सरकारी अधिकारी होता है और पत्नी ऐसी कोशिश करते करते तक जाती है ... वैसे जहाँ तक गाँधी जी के बारे में पुस्तक का सवाल है ... मुझे लगता है पश्चिम के तरफ से ऐसे प्रयास होते रहते हैं क्योंकि वो जानते हैं की हम भारतवासी उन पर ज़्यादा विश्वास करते हैं ... मुझे लगता है ऐसे ही लगातार प्रयासों से भी हम अपनी सांस्कृति पर उतना विश्वास / गर्व नही करते जितना होना चाहिए ...
nce bhaiya....i searchd dis book ol around...in jalandhar..cnt find it...
Bin sajni sooni hai holi...bahut khoob..
Ek banker ka doosre banker ko namaskar...Likhte rahiye...pratibha hai use kunthit mat hone dijiyega..
book padee hai.......ye Ban karna samjh me kuch kum hee aata hai.........
apne girewan me khankne kee to fursat hai nahee politicians ko bus doosaro ka contract le rakha hai.....
गीत भी पसन्द आया और समीक्षा भी।
ना जी ना... बिलकुल बैन नहीं करेगे.. आप लिखते रहिये ऐसी ही......
बहुत दिनों से आपकी नई पोस्ट देखने में नहीं आ रही है । कृपया कम से कम दो पोस्ट का तो महिने में सिलसिला बनाये रखने का प्रयास अवश्य करें । धन्यवाद सहित...
सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली
होनहार
Rochak,mazedar post...badhai....
आपकी पोस्ट पर देरी से आया। इसलिए माफी चाहूंगा।
होली वाला गीत बहुत बहुत अच्छा था। चेहरे पर इस्माइल बढ़ गई। आशा है कि आप मेरी देरी की गलती की सजा टिप्पणी पर नहीं निकालेंगे। इसे बैन तो नहीं करेंगे। छोटी छोटी बातों से आप बेहद हल्के में कितनी बड़ी बातें कह जाते हैं। बेहद शानदार ब्लॉग है आपका।
1st may chali gayi... yaad h naa aapko ya pyar k khumaar me calendar ka panna bhi nahi palta?????
kahan gaayb hai? sab thik thaak
Ha ha..
Nice post.. quite interesting. :)
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