नदियों से बलखाते रस्तों पर,
डूबते-उबरते चलते-चलते!
कभी गर्मी की तपती धूपों में,
और सर्दी के घने कोहरे में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
नुसरत की हर क़व्वाली में,
हर तान पे और हर एक ताली में!
कभी अनहद की हद के परे,
हवा में सूफ़ी नक्काशी सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
यूँ तो बेरंग हैं ख़्वाब मेरे!
आँखों से भी है नूर जुदा!
कभी होली के रंगीं मौसम में,
दीवाली के रोशन दीये सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
दुनियावी रिश्तों से दूर कहीं!
रूह के रिश्तों की दुनिया में!
कभी टिमटिमाते तारों में,
रूप बदलते बादल में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
अंतिम शैय्या पर सोयी हुई,
आगोश-ए-आग में खोई हुई!
कभी हाथों की अभागी लकीरों में!
माथे की अधूरी तकदीरों में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
अपने हाथों से तुझे जलाया था!
तेरी राख भी चुन के लाया था!
कभी चलती-फिरती हँसती-खिलती!
मिट्टी के बिखरे फूलों सी कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
तेरे संग जिसमें गोता लगाया था!
उसी गंगा में तुझे मिला आया था!
कभी उसकी निर्मल धारा में!
और उसमें घुले बालू में कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
जो जाते हैं फिर आते नहीं!
पर यादें कहाँ कहीं जाती हैं?
कभी मीठी गालियाँ देती हुई!
और लाड लड़ाती हुई कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
मौजूद नहीं तू ज़ाहिर में!
फिर भी मुझे राह दिखाती है!
कभी नेकी पर मुझे चलाती हुई!
बदी से बचाती हुई कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
यूँ तो तेरी रूह मेरे जिस्म में बसती है!
पर दीदार को जब अँखियाँ तरसती हैं!
कभी देखता हूँ आईने में अक्स तेरा!
आँखें बंद कर लेता हूँ कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
आई लव यू!
आशू
16 टिप्पणियां:
:)...
हर पोस्ट में गुदगुदाने वाले आशीष ने आज रुला दिया.....
इसे रचना कह कर आपकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकती....
बहुत सुन्दर एहसास....
हमने भी महसूस किये..
अनु
राह दिखाती, नेकी पर चलाती, बदी से बचाती हुई हर पल आशू के साथ ही तो हैं।
बहुत प्यारी और कोमल एहसास से भरी रचना ...
माँ को सच्ची श्रद्धांजलि
बहुत अच्छे शब्दों से आंटी को याद किया है।
बॉस सच में दिल को छू गयी यह कविता।
टेक केयर
दिल से निकली भाव-भीनी श्रद्धांजलि....
स्वस्थ रहें!
जज़्बातों में डूबी ये खुबसूरत पोस्ट बहुत उम्दा.....जज़्बात पर भी नज़रे इनायत हो ।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत ही कोमल और प्यारी कविता..
कल 23/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
दिल के करीब बैठ के लिखा सत्य ...
माँ के जाने का गम महसूस कर सकता हूं इस रचना के साथ ... मैंने अभी अभी(२ महीने पहले)माँ को खोया है ... अभी तक व्यवस्थित नहीं हो पाया हूं ... रोज कोशिश करने पे भी मन संयत नहीं हो पा रहा है ...
आपकी रचना पढ़ने के बाद रोक नहीं सका अपने आप को ....
अपने आत्मज को आभासित होती रहेगी, जब भी मन से याद करेगा उसे!वह कहाँ दूर रह सकेगी
मौजूद नहीं तू ज़ाहिर में!
फिर भी मुझे राह दिखाती है!
कभी नेकी पर मुझे चलाती हुई!
बदी से बचाती हुई कभी!
तू मुझको नज़र आ जाती है!
यूँ तो तेरी रूह मेरे जिस्म में बसती है!
पर दीदार को जब अँखियाँ तरसती हैं.....
दिल को छू गई आपकी रचना
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
माँ.....शब्द एक ...मगर कितनी सारी भावनाएं जुडी हैं उससे ......हर भावना छू जाती है .....हर एहसास अपने दिल के करीब लगता है ....हर माँ अपनीसी लगती है ......शायद हर माँ ऐसी ही होती है .....वह नेमत ...जो पास हो या दूर ...हमारे जीवन में वाबस्ता रहती है ......
भाव-भीनी श्रद्धांजलि....!!!
Tera anchal or vo god bhaut yad ati h ma..
Ye srsrati hva aj b teri lori sunati h ma..
Kbi tsvir me to kbi kbita me,kla ki hr nbj me bs tu njr ati h ma..
Sari duniya bhul gai hu me, pr tu bahut yad ati h ma...
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